Sunday, October 10, 2010


खिलाड़ियों का संदेश

राष्ट्रमंडल में अब तक पदकों का अर्ध शतक लगाकर भारत के खिलाड़ियों ने यह दिखा दिया कि शेरा भले ही भ्रष्ट्राचार का शिकार हो गया हो लेकिन खिलाड़ियों का मनोबल कम नहीं हुआ । निःसंदेह अब भारतीय खिलाड़ियों पर उगली नहीं उठाई जा सकती । भारतीय खिलाड़ियों को विदेशी तो दोयम दर्जे का समझते ही रहे हैं । लेकिन भारतीय खेल मंत्रालय भी हर खेल स्पर्धा का खेल संघ बनाकर ठेकेदारी प्रथा शुरु कर दी और खेल संघ ने खिलाड़ियों के कैरियर की परवाह न कर अपनी दुकानदारी चलाना ही बेहतर समझी । हर खेल संघ में माफियागिरी अपना घर बना चुकी है । खिलाड़ियों ने दिखा दिया कि संसाधनों की मौजूदगी में खिलाड़ियों में पदक जीतने का जो जज़बा है वह काबिले तारीफ है । हमें नहीं भूलना चाहिये कि हॉकी खिलाड़ियों को हॉकी विश्वकप से पहले किस तरह अपने वेतन भत्तों के लिये अनशन करना पड़ा था और खिलाड़ी हॉकी विश्व कप में अपने राष्ट्रीय खेल में ही आठवें पायदान पर रही। यहां एक बात और ध्यान देने की है कि खिलाड़ी उन्हीं विधाओं में ज़्यादा पदक जीतते हैं जिसमें एकल या डबल स्पर्धा थी । कारण वही कि हॉकी जैसे मुकाबले जिसमें खिलाड़ियों और चयन समिति के अलावा खिलाड़ियों में आपसी एक जुटता की कमी घातक सिद्ध होती है । ठीक इसके विपरीत एकल या डबल स्पर्धा में खिलाड़ियों को अपना ध्यान गुटबाजी से अलग अपने खेल पर केंद्रित करने का मौका होता है । यह एक बड़ा संदेश है खिलाड़ियों के उपर संदेह करने वालों के लिये । हमारे देश में खिलाड़ियों से उम्मीदें तो बहुत की जाती हैं लेकिन सुविधाओं के नाम पर उनको आधार भूत जरुरतें भी नहीं दी जाती । खेल मंत्रालय कभी -कभी खिलाड़ियों को पहचानता तो है लेकिन खिलाड़ियों को निखारने वाले गुरु पीछे छूट जाते हैं । अभी हाल ही में गुरु द्रोणाचार्य के सम्मान से सम्मानित पहलवान सुशील कुमार के गुरु सतपाल को खेल मंत्री ने दूर हटो कह कर सुशील कुमार के सामने ही निराश किया था इसके पहले बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल के गुरु पुलेला गोपी चंद को भी खेल मंत्री एमएस गिल ने पहचानने से ही इनकार कर दिया था । यह महज संयोग नहीं बल्कि यह हक़ीक़त है । खेल मंत्रालय खिलाड़ियों को और उनके गुरुओं को अनमोल रत्न नहीं मानता बल्कि खुद राजा की तरह बनकर खिलाड़ियों और प्रशिक्षकों के सामने पेश आता है । यह धारणा हमें बदलनी होगी हमें खिलाड़ियों और उनके गुरुओं को ही पदक का असली हकदार मानना होगा । उम्मीद है कि खेल मंत्रालय अब खिलाड़ियों और उनके गुरुओं पर संदेह न कर प्रोत्साहित करेंगे ताकि भविष्य में होने वाले किसी भी मुकाबले में पदक तालिका में भारत की तस्वीर अच्छी हो।

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महिलाओं का दबदबा

महिलाओं का दबदबा
राष्ट्रमंडल खेल में जिस मुकाबले की उम्मीद पुरुषों से की जा रही थी महिलाएं उससे भी आगे निकलती जा रहीं हैं । निशानेबाजी से लेकर भारोतोल्लक और पुरुष का खेल माना जा रहे कुस्ती में भी महिलाओं ने हैरत अंगेज प्रदर्शन कर सबको चौका दिया । महिलाओं के हैसले का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि केवल कुस्ती में 3 गोल्ड महिलाओं ने ही जीते हैं । पांचवे दिन राष्ट्रमंडल में पूरा खेल महिलाओं के ही नाम रहा । सानिया मिर्जा का जहां फाइनल में पहुंचने से मेडल मिलना तय है वहीं महिला कुस्ती 67 किलो में अनीता ने गोल्ड जीता । 59 किलो फ्री स्टाईल कुस्ती में अलका तोमर ने भी सोना ही जीता, 25 मीचर एयर पिस्टल में गोल्ड और सिल्वर दोनों ही भारत की महिलाओं के नाम ही रहा। पहले स्थान पर अनीसा सय्यद रहीं पर दूसरे स्थान पर कब्जा किया राही सरनोबत ने । भारोतोल्लन में भी भारत का खाता सबसे पहले सोनिया चानू के सिल्वर मेडल से ही खुला था । संध्या रानी ने 48 किलो वर्ग में ब्रांज मेडल जीता निशानेबाजी में भारत को महिला निशानेबाजों से कभी भी उतनी उम्मीद नहीं थी जितनी इन महिला खिलाड़ियों ने कर दिखाया । तेजस्विनी सावंत और लज्जा गोस्वामी ने भारत को 50 मीटर डबल मुकाबले में सिल्वर मेडल जीता । महिला पहलवानों में गीता ने भारत को 55 किलो वर्ग में गोल्ड दिला कर दिखा दिया कि महिलाओं के हौसले कम नहीं है बल्कि सुविधाएं और प्रोत्साहन मिले तो देश की ये युवा महिलाएं उभरते भारत की उपलब्धियों को चार चांद लगा सकती है । (09-10-2010 अमर भारती के अंक में प्रकाशित)