Saturday, December 18, 2010

क्या भारत को चाहिए एक और गांधी ?

63वीं पुण्य तिथि पर बापू जी को नमन


मोहनदास करमचन्द गांधी यानी महात्मा गांधी के सत्य, अहिंसा और सादगी के दर्शन को आदर्श मानने वालों की भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में बड़ी तादाद है । लेकिन गांधी जहां पैदा हुए और जहां से देश दुनिया को संदेश दिया वहीं पर आज गांधी सिर्फ़ पोस्टर और स्टैट्यू बनकर रह गये हैं  ?

आज गांधी की ६३ वीं पुण्यतिथि पर उनकी समाधि पर नेताओं और मंत्रियों का हुजूम उनके जयंती पर फोटो खिचवाने के लिये इकट्ठा होता है। प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक चंद मिन्टों के लिये उन्हें याद करते हैं लेकिन यह स्वार्थ के तराजू पर किस तरह तौला जाता है इसे आप हम सभी जानते होंगे । इस बार भी कमोबेस गांधी जी की पुण्य तिथि पर यही देखने को मिला । सभी उनकी समाधि पर जूटे थे लेकिन उनका आदर्श कहीं भी दिखाई नहीं दे रहा था। हर कोई महंगी गाड़ियों से सज-धज कर आया था ऐसा लगा कि मानों किसी नेता जी के लाडले की शादी हो ।

  अब आते हैं उनकी जयंती पर 2 अक्टूबर को उनकी जयंती बड़े ही नाटकीय ढंग से मनाई जाती है । मानों गांधी हमारे बीच ही विराजमान हो । यह सही भी है गांधी जी होते तो हैं लेकिन हमारी जेबों में गुलाम बन कर न कि हमारे प्रेरणा श्रोत। 2 अक्टूबर से लेकर 3 महीने तक गांधी जयंती के उपल्क्षय में खादी ग्रामोंद्योग संस्थान भारी छूट भी देता है । मतलब यह है कि गांधी के नाम से सामान भी बिकता है लेकिन गांधी का दर्शन नहीं। गांधी जयंती पर गांधी की प्रतिमा पर फूल मालाएं तो चढ़ाई जातीं हैं लेकिन इसमें भी स्वार्थ होता है । गांधी बिकते हैं, गांधी की तस्वीरें बिकतीं है, उनके चश्में भी बिकते है, लेकिन उनका आदर्श नहीं बिकता ।

        वैसे तो गांधी की तस्वीर जब से पैसों पर छपी उसके पहले से ही गांधी के बिकने का और गांधी को खरीदने का सिलसिला शुरु हो गया था । जवाहरलाल नेहरु ने आज़ादी के पहले ही जान लिया था कि देश में सत्ता की बागडोर पाने के लिये गांधी को अपना बनाना होगा । यही नहीं जवाहरलाल ने तो अपनी बेटी का नाम भी इंदिरा गांधी रखा । ताकी गांधी के नाम का फायदा लिया जा सके । बड़ा सवाल यह है कि क्या आज हमें एक और गांधी की जरूरत आ पड़ी है  ।

जब देश में लोकतंत्र और तानाशाही में कोई अंतर न रह गया हो और कोर्ट से लेकर जांच एजेंसिया गांधी छाप नोट ही हमेशा देखती हों, और गांधी को नहीं बल्कि गांधी छाप नोट की ही ख्वाहिश रखती हों तो ऐसे में सवाल यह है कि क्या गांधी आज की जरुरत बन चुके हैं। जो गांधी छाप नोटों की भूख को कम कर सकें । हमें आप के विचार चाहिए आप गांधी के बारे में क्या सोचते है । क्या आज भारत को एक और गांधी की जरुरत है ???
आप कमेंट जरूर की जिएगा हमें आपकी भावनायुक्त शब्दों का इंतजार रहेगा । 


आप हमें अपने चिंतनशील विचारों से जरूर अवगत कराएं। आप लेख भी भेज सकते है  । आपके विचारों को हम राष्ट्रीय अमर भारती दैनिक में प्रमुखता से प्रकाशित भी करेंगे। आप ईमेल भी कर सकते हैं।
हमारा ईमेल आईडी है: akhileshnews@gmail.com
हमारी वेबसाइट है www.amarbharti.com
अखिलेश कृष्ण मोहन 
लेखक अमर भारती दैनिक के उपसंपादक/संवाददाता हैं।


गैर जिम्मेदार राहुल

गांधी जी को याद करो राहुल

विकिलीक्स के ताजा खुलासे ने भारत की राजनीति में तूफान ला दिया है।
राहुल गांधी के गैर जिम्मेदराना बयानों ने पहले भी खूब सुर्खियां बटोरी
थीं लेकिन इस बार राहुल की हिंदू संगठनों पर टिप्पणी कांग्रेस और राहुल
की निम्न सोच को प्रतिबम्बित कर रही है । खुलासे के मुताबिक राहुल गांधी अपने संसदीय क्षेत्र

Monday, December 13, 2010

भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा



जब सीवीसी के मुखिया और सुप्रीम कोर्ट के जज ही भ्रष्ट हैं जिन पर भ्रष्टाचारियों पर निगरानी रखने की जिम्मेदारी है तो फिर सही जांच और सिस्टम में व्यापत विसंगतियों को दूर होने की उम्मीद कैसे की जाये। राष्ट्रमंडल खेल में हो चुके घोटाले और आदर्श घोटाले जैसे मामलों की जांच का जिम्मा भी सीवीसी के ऊपर है । लेकिन थॉमस के काले कारनामों से यह तय है कि जिस जांच में सही तथ्य सामने आने थे वह नहीं आयेंगे ।

इसके पहले वरिष्ठ अधिवक्ता व कानून मंत्री शांतिभूषण ने भी अपने बयानों से यह खुलासा कर सबको चौंका दिया था कि सुप्रीम कोर्ट के 16 मुख्य न्यायाधीशों में से 6 निश्चित रुप से रिश्वतखोर थे । उनके इस कथन पर उन पर केश भी चल रहा है । कानून मंत्री अगर ऐसा कहते हैं तो यह निश्चित रुप गंभीर मामला है । इस गंभीरता का असर यह हुआ कि शांतिभूषण के ऊपर ही कोर्ट के ऊपर टिप्पणी करने के आरोप में मुकदमा हो गया । शांतिभूषण मोरार जी देसाई सरकार में कानून मंत्री थे । शांतिभूषण ने जो सवाल उठाया उसे कोई दूसरा उठा भी नहीं सकता था । उठाता भी तो उस पर विश्वास शायद ही लोग करते। लेकिन उनके इस दावे के बाद जो हुआ उसकी भी उम्मीद नहीं थी । जिस कोर्ट के फैसले पर देश का लोकतंत्र टिका है उसी संस्था से यह बदबू आ रही है ।

बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद की हाई कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति और हाईकोर्ट से जुडे उनके सगे संबंधियों पर सवाल उठाया था । सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट से बदबू आ रही है । लेकिन सुप्रीमकोर्ट को अपने कनिष्ठ न्यायालयों की गिरती गरिमा पर टिप्पणी करने से पहले खुद को सुधारना होगा, खुद के काम-काज में पारदर्शिता लानी होगी और पहले खुद ईमानदार बनना होगा । न्याय को बिकने से बचाने के लिए आंदोलन करने होंगे । किसी एक संस्था की हालत यह नहीं है । लेकिन न्यायपालिका का काम सभी पर निगरानी रखना है ऐसे में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि न्याय तंत्र में सबसे पहले सुधार हो । यह भी कम चिंता जनक नहीं है कि जब संस्था के मुखिया ही भ्रष्टाचार में गोते लगा रहे हैं तो फिर बाकी कनिष्ठों को शिष्टाचार का पाठ कैसे पढ़ापायेंगे। दूसरों को शिष्टाचार की शिक्षा देने से पहले खुद आदर्श नमूना पेश करना होगा । लेकिन जो हालात दिखाई दे रहें हैं उससे लगता नहीं कि भ्रष्टाचार में डूबने की परंपरा बंद होगी और इसकी नई पौध तैयार नहीं होगी । एक भ्रष्टाचारी को बचाने के लिए दूसरा रिश्वत लेने को तैयार है तो फिर यह उम्मीद कैसे करें कि जल्द ही यह सिलसिला खत्म होगा ।

ऊपरी दर्जें के नेता, मंत्री और नौकरशाह जब मिलकर लूट खसोट की मुहिम चला रहे हों तो हम निचले स्तर पर इमानदार कर्मचारी की उम्मीद कैसे कर सकते हैं । सीवीसी के मुखिया थॉमस और सुप्रीम कोर्ट के जजों पर लग रहें दाग को हटा पाना मुश्किल है । यह भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा है जिसकी दवाई खोजनी ही होगी नहीं तो यह रोग कब कैंसर बन जायेगा कहा नहीं जा सकता ।

खोखला लोकतंत्र



उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने कुछ दिनों पहले ही एक खुलासा किया था कि साल 2004 के लोकसभा चुनाव के पहले कांग्रेस ने उन्हें ब्लैकमेल करने की कोशिश की थी । कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव मिल कर लड़ने के बदले ताज क्वारीडोर व आय से अधिक संपति मामलों में बचाने का लालच दिया था । लेकिन मैने ठुकरा दिया ।

मायावती का यह खुलासा भले ही अखबारी शुर्खियां बन कर रह गया हो लेकिन हमारी राजनीति, जांच प्रणाली और न्यायपालिका को किस तरह प्रभावित हो रही है यह उसी का एक कड़वा सच है । यह वह सच है जो सामने आ गया वो भी 6 साल बाद । सवाल यह है कि ऐसे बयानों को गंभीरता से क्यों नहीं लिया जाता । क्या ये मुद्दे जनहित में नहीं हैं । क्या इनसे आम आदमी का सरोकार नहीं है या ऐसे मामलों की जांच के लिये हमारे पास कोई प्रणाली है ही नहीं । सवाल यह भी है कि मायावती ने यह खुलासा 6 साल बाद क्यों किया ।

6 साल के बाद यह खुलासा दिखाता है कि यह भी किसी बड़ी साजिश के चलते ही किया गया होगा । निश्चित रुप से अगर जांच हो तो न तो मायावती और न ही कांग्रेस का कोई दलाल तैयार होगा यह स्वीकारने के लिये कि ऐसा कभी हुआ था । यानी ऐ सब बयान हवा में ही दिये जाते हैं और हवा में ही गुम हो जाते हैं । आरोप गंभीर होते हैं लेकिन जांच कभी भी नहीं होती । इसका देश व समाज पर गंभीर असर पड़ता है । आम आदमी की यही धारणा बनती जा रही है कि नेता और मंत्री कानून को अपनी जेब़ में रखते हैं । ऐसा होता भी है तो क्या इसका प्रचार करना जरुरी है ।

ऐसे आरोप प्रत्यारोप कई बार लगते रहते है लेकिन इन पर न तो कार्रवाई होती है न ही लगाम लग पा रही है । आज कल सपा से निकले अमर सिंह मुलायम को जेल भेजने की बात कह कर मुलायम को ब्लैकमेल करने की कोशिश में हैं । उनका कहना है कि अगर खुलासे हुए तो मुलायम जेल जायेंगे । इसके क्या मलतब निकाले जायें अमर या तो मुलायम को जेल जाने से बचा रहे हैं या झूठ बोल रहे हैं। ये वो नेता है जिनकी राजनीति में कभी गहरी पैठ थी । इनके शतरंजी चाल से केंद्र में सरकार बहुमत साबित करती थी । बाजपेयी की सरकार कभी गिरा दी तो कभी मनमोहन के खेवन हार बने। कभी खुद दलाली की तो आरोप दूसरों पर लगा दिया और बच दोनों गये ।

राजनीति में अब न्यापालिका और जांच एजेंसियों का दुरुपयोग आम हो चुका है । सभी नेताओं का एक ही मकसद है । सत्ता में बने रहना। क्या ऐसे गंभीर आरोपों की जांच-पड़ताल और उस पर लगाम लगाने की क्षमता वाली कोई एजेंसी है । ये केवल नमूने मात्र हैं ऐसे न जाने कितने आरोप-प्रत्यारोप है जिनकी प्राथमिकी दर्ज कराने वाला कोई नहीं । या पुलिस भी प्रथमिकी दर्ज नहीं करेगी । सत्ता इन नेताओं की जागीर बन चुकी है और लोकतंत्र एक नाटक मंच। क्या हम इस सत्ता के यथार्थ को बदल पायेंगे जो हमारी सोच को, हमारे विचार को खोखला कर रही है और देश की नई पौध इन नेताओं की नकल कर रही है ।

शोहरत का अश्लील धंधा ?

याना गुप्ता की वह तस्वीर जिसने की करोड़ों की कमाई

अश्लील शब्द को बोलना कभी अक्षम्य माना जाता था और शालीनता हर व्यापार की कुंजी हुआ करती थी । लेकिन अब अश्लीलता खुद तो व्यापार है ही साथ ही साथ हर धंधे को तेजी से फलने फूलने का मौका भी दे रही है । फ़ैशन भी इस नकारात्मक बदलाव का अहम हिस्सा बनता जा रहा है लेकिन सबसे अहम जो है वह है कि हम चाहते क्या हैं ?

बीते दिनों अभिनेत्री याना गुप्ता की एक तस्वीर सुर्खियों में आ गयी। जिसमें था कुछ भी नहीं लेकिन कहने को अश्लीलता थी । या कहें कि अब अश्लीलता एक दिमागी बीमारी भी होती जा रही है । हम ऐसा इस लिये कह रहें है कि हमारे तमाम साधु संत, जैन बंधु नंगे विचरण करते है लेकिन वो अश्लील नहीं लगते बल्कि पूजे जाते हैं । यानी कि अश्लीलता देखने वालों की आँखों में होती है । वही हाल यहां था उस तस्वीर में क्या है इससे मतलब नहीं है मतलब है कि आप देखना क्या चाहते हैं।

याना गुप्ता की अंत:वस्त्र विहीन यानी शुद्ध अंग्रेज़ी में कहें तो (panti less image) एक तस्वीर का हंगामा रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है । यहां तक कि एक विदेशी पत्रिका ने उस तस्वीर को करोड़ों में खरीदने की कोशिश की है और ऐसी तस्वीरें उससे करारा करने के बाद खिंचवाने पर मोटी कामाई का भरोसा भी दिया है।  यानी याना की बल्ले-बल्ले । एक कथित रुप से अश्लील तस्वीर किस तरह कमाई का जरिया बन जाती है वो भी करोड़ों की यह अपने आप में बदलाव का ही संकेत नहीं है तो फिर क्या है । यह  लोगों की नंगी सोच को ही दर्शाता है । नंगी देह हो या न हो लेकिन आंखों में तस्वीर नंगी बनने लगती है । यह भी दिखाता है कि अब अश्लीलता व्यापार का अहम हिस्सा हो चुकी है । इसे व्यापार से अलग कर पाना आसान नहीं होगा । यही नहीं वयस्कों के लिए किताबें छापने वाले पब्लिकेशन और वेबसाइटों ने याना से कुछ ऐसी ही तस्वीरें खिंचवाने की मांग कर रहे हैं | मतलब साफ़ है कि यह सिलसिला रूकने वाला नहीं है ।

चर्चा तो यह भी है कि पिछले दिनों हुआ विवाद अकस्मात न होकर पूर्व नियोजित था,  यानी सब कुछ पहले से तय, क्योंकि इससे याना का डूबता कॅरियर ट्रैक पर आ सकता है। इस वक्त आकार ले रहे हालात तो कम से कम यही दर्शाते हैं, कि याना को फायदा पहुंचा है। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है, इसके पहले भी विदेशी अभिनेत्रियों के ड्रेस रैम्प पर खिसकने और सुर्खियों में आने की घटनाएं तो कई बार आ चुकीं हैं । पामेला एंडरसन और जैक्सन की ड्रेस ही नहीं हमारे बॉलीवुड की मलाईका अरोरा और नेहा धूपिया की पोशाक भी गिर चुकी है। इस पर कई बार सवाल उठे हैं लेकिन इससे इन अभिनेत्रियों और माडलों को फायदा ही हुआ नुकसान नहीं, तो फिर इसे क्या माना जाए शोहरत के लिये अब अश्लीलता जरुरी हो चुकी है ? क्या अश्लीलता रैम्प से लेकर सड़क तक व्यवसाय का हिस्सा हो चुकी है ? हिस्स की किस्स सुर्खियों में रहती है तो मल्लिका शहरावत की डिमांड बढ़ जाती है । तो फिर क्या यह सही नहीं है कि अब अश्लीलता तगड़ा व्यवसाय करने की एक सीड़ी का रुप लेता जा रहा है और अश्लील तस्वीर से उत्पाद बिकने लगे हैं ।

लेकिन इस अश्लीलता की भी एक सीमा होनी चाहिये । यह कौन तय करेगा यह पता नहीं । फिल्म निर्माता और रैम्प शोज करने वालों के लिए सस्ते प्रचार और कमाई का हिस्सा हो चुकी है अश्लीला और बाद में संयोग से ऐसा हो गया कह कर बचने की आदत तो पुरानी है ही लेकिन क्या सेंसरबोर्ड का डंडा इधर भी चलेगा जिससे जानूबझ कर की गयी इस व्यवसायिक गलती की सजा तय की जा सके । यानी की नो पैंटी सीन के बाद तो लगातार मॉडल विना उसके ही नज़र आ रहीं है । नाम नहीं बताऊंगा क्यों कि पाठकगण खुद यह तय करें कि यह कौन है ? और यह क्या हो रहा है ?  इस खूबसूरत गलती पर आप के विचार क्या हैं ? आप ब्लॉग पाठकों को जरूर बताइयेगा |
अखिलेश कृष्ण मोहन
लेखक अमर भारती दैनिक के उपसंपादक/संवाददाता हैं। 



Saturday, December 4, 2010

रियलिटी का गोरखधंधा



रियलिटी शो का मापदंड क्या है । रियलिटी शो कि परिभाषा क्या है और रियलिटी शो के कंटेन्ट पर निगरानी कौन रखता है यह कोई नहीं जानता । रियलिटी शो गलत नहीं हैं और न ही इससे किसी को आपत्ति ही है लेकिन यह सब कुछ एक दायरें में ही होने चाहिये जो हक़ीक़त में रियल हो और रियलिटी शो लगे । लेकिन ऐसा नहीं है । रियलिटी शो का तमगा लिये कई शो आज आम आदमी के घर में टीवी कार्यक्रमों के प्रति नफ़रत पैदा कर रहें हैं । ऐसा नहीं है कि सभी रियलिटी शो एक जैसे हैं लेकिन अधिकतर कार्यक्रमों में कंटेंट घटिया हैं तो सीन किसी ए श्रेणी की फिल्म की तरह । क्या यही है रियलिटी की परिभाषा और असली जिंदगी का नाटक। रियलिटी शो का मतलब होता है असल जिंदगी का नाटक । यानी जो दिखाया जा रहा है वह हमारे जिंदगी का हिस्सा है । राखी का इंसाफ नाम के रियलिटी शो में राखी ने कई ऐसे कंटेंट का उपयोग किया जो टीवी पर सुनने लायक नहीं थे लेकिन हमने जम कर देखा । मारपीट और जूतम-पैजार भी हुई । यहां तक की राखी ने जज की भूमिका का बेजा इस्तेमाल करते हुये झांसी के एक परिवार के साथ कुछ इस तरह इंसाफ किया कि उस कार्यक्रम का एक युवक कथित रुप से सदमे से मर गया । राखी ने उसके इज्जत पर कीचड़ उछालते हुये उसे नामर्द कहा था । इतना ही नहीं राखी ने तो खुद रियलिटी शो के नाम पर शादी की ही दूसरों की शादियां भी करवा दी । बाद में पता चला कि वे जोड़े तो पहले से ही शादी कर चुके थे। राखी ने उन शब्दों का भी कई बार उपयोग किया जिसे हम शायद घर परिवार के साथ नहीं सुन सकते। तो क्या यही है रियल जिंदगी । टीवी अब आम आदमी के घर का जरुरी हिस्सा बन चुका है । हर घर में टीवी देखा जाता है और उस का अनुसरण भी होता है । लोगों को चटपटा परोसने के चक्कर में ये रियलिटी शो के नाम पर ये शो पूरा का पूरा विष ही परोसने में लगे है । एक दूसरा रियलिटी शो बिग बॉस भी अब फूहड़ और ए ग्रेड का सीरियल हो चुका है । शो में बीप-बीप की आवाज यह बताती है कि इसे सुनाया नहीं जा सकता । लेकिन जा सुनाया जा रहा है उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन बीप में कितनी गालियां होंगी। शो बच्चों पर बुरा असर तो डाल ही रहा है साथ ही साथ परिवार में बातचीत के स्तर को भी बिगाड़ रहा है । रियल जिंदगी की हक़ीक़त दिखाने का दावा करने के नाम पर फूहड़ जिंदगी को क्यों दिखाया जा रहा है दिखाना है। दिखाना ही है तो जिस तरह ए ग्रेड की फिल्में दिखाई जाती हैं उसी तरह दिखाया जायें, जो देखना चाहता है वह आसानी से देखे लेकिन छलावा करके लेवल कुछ और अंदर कुछ और करके क्यों दिखाया जा रहा है । क्या हम बच्चों को खाने वाले बिस्किट की पैकेट में तंबाकू या कोकीन रख कर शहंशाही से बेच सकते हैं ? अगर ऐसा नहीं तो फिर रियलिटी शो के नाम पर काल्पनिक शो क्यों दिखाये जा रहें है । यह रियलिटी शो के नाम पर गोरखधंधा नहीं है तो फिर क्या है ?

सामान्य ज्ञान और मनोरंजन


सामान्य ज्ञान को मनोरंजन न समझे यह जरुरी है और ज्ञान की पूर्णता के लिये अनिवार्य है । अमूमन जीवन में दो तरह के ज्ञान की जरुरत होती है। सामान्य ज्ञान और विशेषज्ञता की । कुछ बुद्धिजीवियों का विचार है कि एक्सपर्टीज ज़रुरी है । यानी किसी भी एक विषय या क्षेत्र में माहिर होना जरुरी है और हर विषय का ज्ञान विशेषज्ञता के लिए ख़तरा है ।

बहुत सारी चीजों के प्रति उत्साह आप की किसी एक विषय के प्रति गंभीरता को ख़त्म कर देती है । लेकिन इस धारणा के विपरीत सोच रखने वाले लोगों की भी कमी नहीं है । कई वरिष्ठ पत्रकारों का मानना है जैक ऑफ आल मास्टर आफ नन यानी सब कुछ जानों किसी एक क्षेत्र विषेश में सिमट कर ही न रह जाओ। इस मुद्दे पर चर्चा करते हुये एक स्मरण याद आ रहा है एक बार पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय विश्वनाथ प्रताप का फ़ैजाबाद के जनमोर्चा अख़बार के कार्यालय पर भूमण्डलीकरण को लेकर कोई कार्यक्रम में जाना हुआ जब कार्यक्रम ख़त्म हुआ तो वहां के वरिष्ठ पत्रकार केसी मिश्रा से जब हमने युवा पत्रकार की हैसियत से आशिर्वाद लेना चाहा तो उन्होंने कहा पत्रकारिता में जैक ऑफ ऑल, मास्टर ऑफ नन के सिद्धांत का पालन करो यही मूलमंत्र है । तब से मेरी धारणा बदल गयी हमने मान लिया सब कुछ जानना ही पत्रकारिता का पहला वसूल है और जीवन का भी । आज जीवन के किसी भी क्षेत्र में सर्वज्ञ होना जरुरी ही नहीं अनिवार्य भी है ।

विकास के लिये हर क्षेत्र की जानकारी जरुरी है और यही विकसित राष्ट्र के लिये अहम है । सामान्य ज्ञान को सिर्फ़ मनोरंजन समझना गलत होगा । यह सही है कि मनोरंजन सामान्य ज्ञान है लेकिन सामान्य ज्ञान मनोरंजन नहीं। आज की भागती दौड़ती जिंदगी में किसी के पास समय भले ही नहीं है लेकिन जानकारी हर क्षेत्र की है । तेज भागती युवा पीढ़ियों को तो देखो आज वह नाच गाने से लेकर खेल कूद और केबीसी में पैसे कमा रहा है ।

हर मुद्दे पर वाजिब तर्क के साथ वार्ता को तैयार युवा सर्वगुण सम्पन्न है । अब यह धारणा गलत साबित हो रही है कि पढ़ोंगे लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे होगे ख़राब । इतना ही नहीं काम करने की ललक में और जिज्ञासा ने आज तमाम बेड़ियों को तोड़ दिया है। सर्वगुणे शक्ति कलियुगे।

लोकतंत्र बिकता है

कभी जनसेवा और देश सेवा से शुरु हुई राजनीति आज अपना लक्ष्य किस तरह खोती जा रही है यह हर पार्टी के राजनेताओं की गतिविधि में दिखाई दे रहा है । किसी एक दल का नाम लेना गलत होगा। ग्राम सभा की राजनीति से लेकर लोक सभा और राज्य सभा की राजनीति दूषित हुई है । हर सीट पर कब्जा होता जा रहा है । परिवारवाद, जातिवाद, धर्मवाद और साम्प्रदायवाद की बदबू हर राजनीतिक दल में देखी जा रही है यही नहीं अब तो हर जाति विशेष के दल भी बनने लगे हैं। राजनीति की गरिमा दिनों-दिन गिरती जा रही है इसके बारे में कुछ जानकारियां तो सभी को हैं लेकिन अब राजनेता खुद अपनी महत्वाकांक्षाओं को बताने से नहीं चूकते चाहे वह समाज के लिये, देश के लिये कलंक ही क्यों न हो। समाजवादी पार्टी से अमर सिंह निकाले गये या निकल गये मुद्दा यह नहीं सिर्फ यह है कि अमर सिंह सपा में नहीं हैं। लेकिन अब अमर का यह बयान कि सपा की सरकार बनवाने के लिये बसपा के विधायकों को तोड़ा था इसके बाद भी सपा ने बाहर का रास्ता दिखा दिया, यह दिखाता है लोकतंत्र का कलंक यानी विधायकों को तोड़ना भी अमर सिंह को एक पुरस्कार योग्य लगता है । आजकल अमर सिंह सपा को पटखनी देने की ही नियत से पूर्वांचल की मांग को लेकर विगुल फूंकने वाले हैं। इस महत्वाकांक्षा को आखिर जनता क्या समझे। जो विधायकों की खरीद फरोख्त और जोड़ तोड़ में ही माहिर है वह खुद सत्ता में बने रहने के लिये क्या नहीं कर सकता । तरकीबन यही रोग हर राजनीतिक दल में लगने लगे हैं । राज्यसभा से लेकर ग्राम पंचायत चुनावों तक एक-एक वोट खरीदे जाते हैं। जोड़ तोड़ की राजनीति होती है । कभी अधिवक्तता, अपराधी रहे लोग सदन में कब घुस जाते है किसी को पता ही नहीं चलता । उद्योगपतियों की लोकतंत्र में भरमार है । पैसा ही लोकतंत्र का आधार बनता रहा है । राजनीतिक दल चुनावों में पैसे वाले बाहुबलियों को ही टिकट देते है । हर राजनीतिक दल को अमर सिंह सरीखे बड़बोले और हर काम में माहिर उद्योगपतियों की जरुरत है तो फिर असल लोकतंत्र का सपना साकार कैसे हो । लोकतंत्र अब कहने को है लेकिन हक़ीक़त में यह नोट तंत्र में तबदील होता जा रहा है । क्या इसके लिये भी संयुक्त संसदीय समिति की मांग होगी जो सबसे जरुरी है ।

Wednesday, December 1, 2010

सब्र कीजिए खुलासे बाकी हैं



विकीलीक्स के कई खुलासों से अमेरिका पहले ही परेशान था लेकिन इस बार के खुलासे से अमेरिका ही नहीं बल्कि आतंकवाद के खात्में और मद्द का ढोंग करने वाले राष्ट्रों की कलई भी खुल चुकी है। खुलासे से साफ हुआ है कि अमेरिका ने संयुक्तराष्ट्र में भारत के राजनयिकों की जासूसी के आदेश दिए थे। संदेशों से साफ है कि अमेरिका ने इसके अलावा चीन और पाकिस्तान के राजनयिकों की जासूसी करवाई है। हालांकि, अब तक सामने आए संदेशों से में इस बारे में ज़्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। विकीलीक्से ने इस बार अमरीकी दूतावासों की ओर से भेजे गए जिन करीब ढाई लाख संदेशों को सार्वजनिक किया है, उनमें से 3038 संदेश नई दिल्लीं स्थित अमेरिकी दूतावास से भेजे गए हैं।
विकीलीक्स द्वारा जारी किए गए संदेशों में पाकिस्तान और ईरान से होकर गुजरने वाली गैस पाइपलाइन परियोजना को लेकर भी अमेरिका ने आशंका जाहिर की है। अमेरिकी संदेशों के मुताबिक पाकिस्तान और ईरान द्वारा गैस परियोजना पर हस्ताक्षर करने के बावजूद इस पूरे परिजनाओं पर संकट छाया हुआ है। यह आशंका पहले ही थी कि इस परियोजना के पूरे होने पर भारत को काफी फायदा हो सकता है।
विकीलीक्सस के खुलासे के मुताबिक पाकिस्ता न को खुश करने के लिए तुर्की ने इस साल की शुरुआत में अपने यहां आयोजित अहम बैठक में भारत को नहीं बुलाया। आतंकवाद के मसले पर आपसी सहयोग के लिए बातचीत के लिए इस्तांकबुल में बुलाई गई इस बैठक में पाकिस्तािन के राष्ट्र पति आसिफ अली जरदारी, अफगानिस्तािन के राष्ट्ररपति हामिद करजई के अलावा अमेरिका के प्रतिनिधियों ने हिस्सात लिया था।

हमारे विदेश मंत्री एस। एम। कृष्णाक ने कहा है कि विकीलीक्सि के खुलासे से भारत को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन उन्हों ने यह जरूर कहा कि हमारी उत्सुहकता इस बात को लेकर है कि आखिर अमेरिकी प्रशासन भारत के बारे में क्यात सोचता है। इन खुलासों से अमेरिका को भारत के साथ रिश्ते खराब होने का डर सता रहा है। अमेरिका की यह चिंता वाजिब भी है और हैरान करदेने वाली भी कि जिस देश के राष्ट्राध्यक्ष के आगमन को दीवाली की तरह मनाया जाता हो और उसके हर शब्द को ब्रम्हा का वाक्य मानकर विश्वास किया जाता हो वह देश जब इस तरह की गतिविधियों में संलग्न है तो फिर यह दीवाली किस काम की, और ऐसी कोरी भाषणबाजी क्यों हो ।

श्रीलंका दौरे से नई दिल्लीक लौटते हुये हमारे विदेश मंत्री कृष्णास ने पत्रकारों से कहा, ' भारत सरकार इन दस्तातवेजों को लेकर वाकई चिंतित नहीं है लेकिन यह रोचक होगा कि इनमें क्यात खुलासा होता है क्यों कि विकीलीक्सम ने चार लाख संदेश जारी करने को कहा है।' विदेश राज्य मंत्री परिणीत कौर कहा कि अमेरिका ने सतर्क किया था कि इस तरह के दस्तावेज जारी होने वाले हैं और अमेरिका के साथ हमारे अच्छे द्विपक्षीय संबंध हैं। यह काफी संवेदनशील मामला है । अभी सब्र की जिए विकीलीक्स के खुलासे से अमेरिका की नीति और राजनीति ही नहीं उसकी अर्थव्यवस्था भी हिल जायेगी।

मजाक कब तक



अमेरिका विकीलीक्स के खुलासे में भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध होने के हालात में पाकिस्तान को भी दोयम दर्ज़े का नहीं मान रहा है। यह वही अमेरिका है जो हमेशा पाकिस्तान को आतंक पर लगाम लगाने की झूठी गुजारिश करता है । भारत पहले भी अमेरिका की पाकिस्तानी नीति पर सवाल उठा चुका है कि अमेरिका से मिली मदद का पाक सैन्य ताकत बढ़ाने और आतंकवाद को पालने पोसने में कर रहा है लेकिन यह अमेरिका की नीति का ही हिस्सा था कि उसे मदद की भारी खेप जारी रही और पाक की आतंकियों और दहशतगर्दों को हर तरह से समर्थन । विकीलीक्स के खुलासे की माने तो अमेरिका भारत-पाक के बीच के तनाव से वाकिफ था और उसे युद्ध की स्थिति में पाक को भी मजबूत माना । विदेशमंत्री और सरकार भले ही कहे कि विकीलीक्स के खुलासों से भारत और अमेरिका के संबंधों पर असर पड़ने वाला नहीं है लेकिन सही मायने में यह भारत की वास्तविक हालात को नकारना ही है । अमेरिका विकीलीक्स के खुलासे के बाद बैकफुट पर आ चुका है । उसकी हर चाल उल्टी पड़ती जा रही है । भारत और बाकी देशों के खिलाफ़ अमेरिका और अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन की नीति का खुलासा हो चुका है । इसे भारत को गंभीरता से लेना चाहिए । विकीलीक्स की सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता । अगर खुलासे गलत हैं तो फिर अमेरिका गुप्त दस्तावेजों को लीक करने वालों पर कार्रवाई करने का मन क्यों बना रहा है। गलत खुलासे की सजा तो विकीलीक्स के मालिक को मिलनी चाहिए । यह भारत के लिये सुनहरा मौका है । जब अमेरिका की घेरा बंदी कर उसे संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद् में बेनकाब किया जा सकता है । जिस अमेरिका के साथ भारत आतंकवाद समेत कई मुद्दों पर खुल कर चर्चा करता है । उस अमेरिका के ही विदेश मंत्री ने भारत की सुरक्षा परिषद् में दावेदारी का मजाक उड़ाया। भारत को समझना होगा, हमें अमेरिका की मजाकेदार घोषणाओं पर तालियां बजाने और खुश होने की वजाय स्थिति को समझना होगा नहीं तो फिर कोई ओबामा भारत आयेगा और हमारे संसद में भाषणबाजी कर चला जायेगा और हम सालों खुश होते रहेंगे और अमेरिका हमारा मजाक उड़ाता रहेगा ।

मजाक कब तक



मजाक कब तक
अमेरिका विकीलीक्स के खुलासे में भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध होने के हालात में पाकिस्तान को भी दोयम दर्ज़े का नहीं मान रहा है। यह वही अमेरिका है जो हमेशा पाकिस्तान को आतंक पर लगाम लगाने की झूठी गुजारिश करता है । भारत पहले भी अमेरिका की पाकिस्तानी नीति पर सवाल उठा चुका है कि अमेरिका से मिली मदद का पाक सैन्य ताकत बढ़ाने और आतंकवाद को पालने पोसने में कर रहा है लेकिन यह अमेरिका की नीति का ही हिस्सा था कि उसे मदद की भारी खेप जारी रही और पाक की आतंकियों और दहशतगर्दों को हर तरह से समर्थन । विकीलीक्स के खुलासे की माने तो अमेरिका भारत-पाक के बीच के तनाव से वाकिफ था और उसे युद्ध की स्थिति में पाक को भी मजबूत माना । विदेशमंत्री और सरकार भले ही कहे कि विकीलीक्स के खुलासों से भारत और अमेरिका के संबंधों पर असर पड़ने वाला नहीं है लेकिन सही मायने में यह भारत की वास्तविक हालात को नकारना ही है । अमेरिका विकीलीक्स के खुलासे के बाद बैकफुट पर आ चुका है । उसकी हर चाल उल्टी पड़ती जा रही है । भारत और बाकी देशों के खिलाफ़ अमेरिका और अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन की नीति का खुलासा हो चुका है । इसे भारत को गंभीरता से लेना चाहिए । विकीलीक्स की सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता । अगर खुलासे गलत हैं तो फिर अमेरिका गुप्त दस्तावेजों को लीक करने वालों पर कार्रवाई करने का मन क्यों बना रहा है। गलत खुलासे की सजा तो विकीलीक्स के मालिक को मिलनी चाहिए । यह भारत के लिये सुनहरा मौका है । जब अमेरिका की घेरा बंदी कर उसे संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद् में बेनकाब किया जा सकता है । जिस अमेरिका के साथ भारत आतंकवाद समेत कई मुद्दों पर खुल कर चर्चा करता है । उस अमेरिका के ही विदेश मंत्री ने भारत की सुरक्षा परिषद् में दावेदारी का मजाक उड़ाया। भारत को समझना होगा, हमें अमेरिका की मजाकेदार घोषणाओं पर तालियां बजाने और खुश होने की वजाय स्थिति को समझना होगा नहीं तो फिर कोई ओबामा भारत आयेगा और हमारे संसद में भाषणबाजी कर चला जायेगा और हम सालों खुश होते रहेंगे और अमेरिका हमारा मजाक उड़ाता रहेगा ।

Tuesday, November 30, 2010

विकीलीक्स की गिरफ्त में अमेरिकी दोहरापन


विकीलीक्स के नए दस्तावेज़ों ने फिर से हंगामा खड़ा कर दिया है विकीलीक्स पर दस्तावेज़ जारी किए जाने को 'आपराधिक कार्रवाई' बताकर उसकी निंदा की गई है लेकिन खोजी पत्रकारिता के भविष्य के रुप में उसकी तारीफ़ भी उतनी ही की गई है। विकीलीक्स के काम करने का तरीक़ा भविष्य की पत्रकारिता और पारदर्शिता को रेखांकित करता है तो अमेरिका की हक़ीक़त भी बयान करता है। अमेरिका की जो चाल हम कभी समझ ही नहीं पाये उसे विकीलीक्स के एक खुलासे ने पूरी दुनिया के सामने रख दिया । लोगों की आँखें फटी की फटी रह गयी । अमेरिका की नीयति के बारे में बात करने से पहले विकीलीक्स के बारे में जान ले जिसने अमेरिका के दोहरापन को उजागर किया है । विकीलीक्स वह वेबसाइट है जो वैसे तो हर विषय पर टिप्पड़ी करती रही है दुनिया भर में अपने खुलासों से खलबली मचाने वाली विकीलीक्स एक ऐसी वेबसाइट है जो विभिन्न देशों और उनकी सरकारों के बारे में ऐसी महत्वपूर्ण खुफिया सूचनाएं इंटरनेट पर उपलब्ध कराती है जो अमूमन लोगों को पता नहीं होती । विकीलीक्स उस समय सुर्खियों में आई जब उसने अफगानिस्तान युद्ध महत्वपूर्ण सूचनाएं लीक कीं । इन दस्तावेजों में खुलासा किया गया था कि पाक अफगानिस्तान में तालिबानियों को मदद देता रहा है। जुलाई में विकीलीक्स ने अफगान वार डायरी को जारी किया था जिसमें 76,900 पृष्ठों को उपलब्ध कराया गया था विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांज हैं। इसी साल अप्रैल में विकीलीक्स ने एक वीडियो जारी किया था जिसमें दिखाया गया था कि बगदाद में 2007 में अमरीकी सैन्य हेलिकॉप्टर से नागिरकों की मौत हुई थी। अफ़ग़ानिस्तान के युद्ध के बारे में वर्ष 2004 से 2009 तक के क़रीब 90 हज़ार दस्तावेज़ विकीलीक्स पर जारी किए गए हैं लेकिन जनहित में मुखबिर का काम करने वाली यह वेबसाइट अपने किसी स्रोत की पहचान ज़ाहिर नहीं करेगा । विकीलीक्स की नीति है कि वह अपने स्रोत के बारे में कोई जानकारी नहीं देती। न तो यह कि कितने लोगों से यह जानकारी मिली और न ये कि ये जानकारियाँ उन्हें कब मिलीं। अभी तक मीडिया अनुमान लगा रहा है कि इसके पीछे 22 वर्षीय ब्रैडली मैनिंग है जो सेना के लिए ख़ुफ़िया सामग्री का विश्लेषण करते रहे हैं और उन पर गोपनीय दस्तावेज़ों के साथ छेड़छाड़ करने और उन्हें लीक करने का आरोप है। उन्हें इराक़ में काम करने के दौरान गिरफ़्तार किया गया था और इस समय वे क़ुवैत के बंदी गृह में हैं। लेकिन विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांज कहते हैं, "जहाँ तक हमारी जानकारी में है इनमें से कोई भी सूचना स्पेशलिस्ट मैनिंग के ज़रिए प्राप्त नहीं हुई हैं।" इतिहास में पहली बार इतनी जानकारियाँ सार्वजनिक हुई हैं लेकिन यह तय है कि यह जानने की उत्सुकता सिर्फ़ अमरीका को नहीं बल्कि हर देश यह जानना चाहता है कि आखिर अमेरिका दोहरेपन की किस हद तक जा सकता है । तमाम जानकारियों को सार्वजनिक करने से पहले विकीलीक्स ने तीन अख़बारों को ये दस्तावेज़ उपलब्ध करवा दिए थे, न्यूयॉर्क टाइम्स, डेर स्पीजेल और द गार्डियन। सूचनाएँ लीक करने वाले तो हर समय रहे हैं लेकिन तकनीक ने इसे बहुत आसान कर दिया है प्रिंट मीडिया से ज्यादा तो इलेक्ट्रानिक और वेबमीडिया ने इन दस्तावेज़ों के आधार पर ताबड़तोड़ ख़बरें प्रकाशित किया लेकिन साथ में ये सवाल भी पूछे गए कि इन जानकारियों का स्रोत कौन है ? विकीलीक्स ने हर जानकारी को घर-घर तक पहुंचा दिया है । इन दस्तावेज़ों के लीक होने में सबसे बड़ी भूमिका टेक्नॉलॉजी या तकनीक की है इससे इनकार नहीं किया जा सकता लेकिन यह भी तय है ये खुलासे पत्रकारिता की रीढ़ हैं ही साथ ही अपनी धार खोती पत्रकारिता के लिये अहम भी । विकीलीक्स की इसके लिए जितनी भी प्रसंशा की जाये उतनी कम है । इसे दुनिया का पहला समाचार संस्थान कहा गया है जो किसी देश का नहीं है। विकीलीक्स के सर्वर स्वीडन और बेल्ज़ियम जैसे देशों में हैं क्योंकि वहाँ के प्रेस गोपनीयता क़ानून के तहत उसे सुरक्षा की गारंटी मिलती है। इस वेबसाइट को शुरु करने के पीछे उद्देश्य था पारदर्शिता को बढ़ावा देना। इस बेससाइट पर कोई भी व्यक्ति कुछ भी सामग्री अपलोड कर सकता है। इन सामग्रियों की कुछ कार्यकर्ता जाँच करते हैं फिर इसे वेबसाइट पर प्रकाशित किया जाता है। ये सभी कार्यकर्ता पत्रकार हैं। और इन्हीं पत्रकारों ने आज अमेरिका के लिये सिरदर्द खड़ा कर दिया है । विकीलीक्स के गोपनीय दस्तावेज के खुलास से अमेरिका का दोहरापन उजागर हो चुका है । हालात तो यह है कि अमेरिका अब सफाई देने की हालत में भी नहीं है । कुल मिलाकर देखे तो भारत के संयुक्त सुरक्षा परिषद् में सदस्यता से लेकर आतंकवाद समेत हर मसले पर अमेरिका भारत का मजाक उड़ाता रहा है । इन सबका खुलासा भी विकीलीक्स में किया गया है । विकीलीक्स ने जो काम किया है उसका सभी तो स्वागत करना चाहिए और विकीलीक्स पर गर्व भी क्योंकि पादर्शिता की चमक को बढ़ाने वाली ऐसी मिसाले कम ही मिलेंगी ।

Wednesday, November 24, 2010

बिहार की आंधी

बिहार विधानसभा की 243 सीटों में 206 सीटें जीत कर जो करिश्मा दिखाया वह अभी तक किसी भी राज्य में शायद नहीं देखने को मिला होगा । नीतीश कुमार के 5 साल के नाकामी को विपक्ष मुद्दा बना कर सत्ता में आना चाहता था तो नीतीश कुमार विकास के नाम पर एक बार फिर मौका दिये जाने की दर्खवास्त कर रह रहें थे। नीतीश गठबंधन के सत्ता में आने की उम्मींद तो थी लेकिन वह बिहार में आंधी की तरह आएंगे और बाकी राजनीतिक पार्टियां सूखे पत्ते की तरह उड़ जायेंगी यह किसी ने नहीं सोचा था । खुद नीतीश को भी शायद यह उम्मींद नहीं रही होगी कि वह विपक्ष को उसके ही गढ़ में मात देकर 206 सीटें जीत लेंगे। बिहार में लालू के चुटकुलों को जनता अब सुनना नहीं चाहती तभी तो उनकी पत्नी और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को राघोपुर और सोनपुर दोनों सीटों से हार को सामना करना पड़ा। लालू का साथ छोड़ कर कांग्रेस की शरण में गये साधु यादव भी गोपाल गंज से चुनाव हार गये । यही नहीं बिहार को पिछड़ा और गरीब राज्य बताने वाले राहुल गांधी और सोनिया गांधी को भी बिहार की जनता ने नकार दिया है । कांग्रेस को दहाई का अंक मिलना तो दूर 5 सीटें भी नहीं मिल सकीं । कांग्रेस की यह सबसे शर्मनाक हार है उसे प्रधानमंत्री के अपील के बाद भी 4 सीटें मिली हैं । राहुल का युवा फैक्टर भी काम नहीं आया जिस युवा को राहुल अपना समझ रहें थे उसने कांग्रेस को नकार दिया । बिहार में लालू का लगातार जनाधार घटता जा रहा है । इसके पहले 2005 के विधानसभा में लालू को मात मिली ही थी । लोकसभा में भी लालू अपने आप को साबित नहीं कर पाये और अब विधान सभा में सरकार का विरोध करने के लिये उनके विधायकों की संख्या केवल 22 होगी । लोक जनशक्ति पार्टी से गठबंधन करने के बाद लालू का यह हाल है गठबंधन न होने पर तो स्थिति और भी खराब होती। कभी दलित तो कभी मुस्लिम को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने का दावा करने वाले राम विलास पासवान को तो जनता ने पूरी तरह सबक ही सिखा दिया । पिछली बार खुद लोकसभा सीट हारने के बाद लालू के साथ समझौता कर राज्यसभा पहुंचने वाले पासवान को सिर्फ 3 सीटें ही मिली हैं। बिहार विधान सभा चुनाव के नतीजों ने यह साबित कर दिया की बिहार की जनता अब विकास को ही पसंद करती है । लालू की रेल पर बैठ कर बिहार छोड़ने को कभी मजबूर होती आम जनता की पसंद अब लालू नहीं नीतीश हैं। यह एक बड़ा बदलाव है जो हर राज्य में होना ही चाहिये लेकिन नीतीश को विकास के नाम पर मिले विशाल जनाधार का गलत अर्थ नहीं लगाना चाहिए। जनता विकल्प तलाशती है । आज नीतीश विक्लप है तो कल कोई और हो सकता है । लिहाजा विकास के लिये भूखे बिहार का पेट भरना ही इस आंधी का असली मकसद होना चाहिये ।

भड़ास blog: समाजवादी आन्दोलन,संघर्ष और मुलायम सिंह यादव

भड़ास blog: समाजवादी आन्दोलन,संघर्ष और मुलायम सिंह यादव

Saturday, November 20, 2010

मौन धारण क्यों

प्रधानमंत्री किसी पार्टी के नेता बाद में हैं लेकिन पहले वह देश के जिम्मेदार मालिक हैं । प्रधानमंत्री की एक चुप्पी पर सवाल उठना लाजमी है लेकिन बाकी चुप्पियों का क्या होगा जो मौन ब्रत देश में भ्रष्टाचार को लेकर जितना हो हल्ला विपक्ष मचा रहा है उसमें कितनी सच्चाई है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब भी विश्वबैंक में जमा काले धन को लाने की बात की जाती है तो सभी पार्टियों के नेता एक सुर हो जाते हैं । विश्वबैंक में जमा रुपया किसी का भी हो वापस आए या न आए लेकिन यह खुलासा होना तो जरुरी है ही कि आखिर क्यों देश का पैसा विदेशों में जमा किया गया । अगर विपक्ष इस मांग पर अड़ती और संसद ठप करती तो शायद सरकार गिर भी सकती है और देश में हो रहे भ्रष्टाचार की असली तस्वीर भी साफ हो जायेगी । विश्वबैंक में जमा काले धन के उजागर होने से कई राजा सामने आने तय हैं। लेकिन ऐसा नहीं होगा। विपक्ष को पता है कि विश्वबैंक में जमा धन किसी एक पार्टी का नहीं है बल्कि सभी पार्टी के नेताओं ने विश्वबैंक में धन जमा किया है । स्विस बैंक की एक चिट्ठी की माने तो सबसे ज्यादा पैसा भारत का है दूसरे नंबर पर रुस है। काफी गुजारिश के बाद स्विस बैंक असोसिएशन ने इस बात का खुलासा किया है । भारतीयों के कुल 65,223 अरब रुपये जमा हैं। दूसरे नंबर पर रूस है जिसके करीब 21,235 अरब रुपये जमा हैं। हमारा पड़ोसी चीन पांचवें स्थान पर है, उसके मात्र 2154 अरब रुपये जमा हैं। भारतीयों का जितना धन स्विस बैंक में जमा है, तकनीकी रूप से वह हमारे जीडीपी का 6 गुना है। तकनीकी रूप से यह ब्लैक मनी है। अगर यह धन देश में वापस आ गया तो देश की इकोनॉमी और आम आदमी की बल्ले-बल्ले हो सकती है। अमेरिकी एक्सपर्ट का अनुमान है कि स्विस बैंकों में भारतीयों का जितना धन जमा है, अगर वह उसका 50 पर्सेंट भी भारत को मिल गया तो हर साल प्रत्येक भारतीय को 2000 रुपये मुफ्त में दिए जा सकते हैं। यह सिलसिला 30 साल तक जारी रहा सकता है। यानी देश में गरीबी दूर हो जाएगी। देश में कोई भी बेरोजगार नहीं रहेगा। जितना धन स्विस बैंक में भारतीयों का जमा है, उससे उसका 30 पर्सेंट भी देश को मिल जाए तो करीब 20 करोड़ नई नौकरियां पैदा की जा सकती है। 50 पर्सेंट धन मिलेगा तो 30 करोड़ नौकरियां मार्केट में आ सकती हैं। स्विस बैंकों में भारतीयों का जितना ब्लैक मनी जमा है, अगर वह सारी राशि भारत को मिल जाती है तो देश को चलाने के लिए बनाया जाने वाला बजट बिना टैक्स के 30 साल के लिए पर्याप्त होगा। यानी बजट ऐसा होगा कि जिसमें कोई टैक्स नहीं होगा। आम आदमी को इनकम टैक्स नहीं देना होगा और किसी भी वस्तु पर कस्टम या सेल टैक्स नहीं देना होगा। तो क्या इस स्विस बैंक के काले धन पर जांच और भारत लाने की मुहिम की अगुवाई करने वाला कोई सत्ता पक्ष या विपक्ष का नेता है । प्रधानमंत्री और विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज भी ऐसे मुद्दों पर मौन धारण कर लेती हैं। तो इन चुप्पियों का क्या होगा ।

दस्तक नए कवियों की…

दस्तक नए कवियों की…

Tuesday, November 9, 2010

खुदकुशी की इजाज़त

यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि किसानों के देश में किसान ही खुदकुशी करने को मजबूर है । जहां एक ओर झारखंड में हज़ारीबांग ज़िले के जराड़ गांव के 2000 किसान सूखे से बेहाल राष्ट्रपति को पत्र लिख कर इच्छा मृत्यु की मांग कर रहे है वहीं दूसरी ओर हमारे देश भर के सांसद अपनी सैलरी के 300 फीसदी बढ़ोत्तरी से नाखुश है और 500 फीसदी के लिये सदन में हंगामा कर रहे है । जनप्रतिनिधि का तमगा लेकर हमारे सांसदों ने साबित कर दिया कि जनता नहीं उनके लिये उनका हित ही सर्वोपरि है । पिछले 2 साल से राज्य में पर्याप्त बारिश न होने हालात खराब है । किसानों का कहना है कि दो साल से कोई फ़सल नहीं उगी है अब लोगों को खाने के लाले पड़ने लगे है । हालात इतने खराब है कि बच्चे कुपोष्ण के शिकार हो रहे है और सरकारी मदद ऊंट के मुंह में जीरा है । ऐसे में हम भूखे कब तक रहेंगे। खनिज संपदा से भरपूर झारखंड राज्य बना तो था इस लिये कि यहां पर खुशहाली होगी और लोगों के विकास के रास्ते खुलेंगे लेकिन हुआ इसके उलट । 10 साल में झारखंड ने सात सरकारें देखी और तीन बार राष्ट्रपति शासन का दंश झेलने के बाद इस बार फिर वहां राष्ट्रपति शासन ही है । सत्ता किसी की भी रही हो लेकिन विकास की गंगा का फायदा सिर्फ नेताओं को ही मिला और आज भी वहां पर हालात जस के तस है । ऐसा नहीं कि यह दास्तांन झारखंड के कुछ जिलों की हो, बल्कि हर ज़िले में कमोबेश यही हालात है । केंद्र सरकार की एक टीम झारखंड राज्य का दौरा करने के बाद रिपोर्ट भी सरकार को सौंप चुकी है । रिपोर्ट में लिखा है कि राज्य में हालात बेहद खराब है और लोग भुखमरी से बेहाल है । लेकिन मॉनसून सत्र में पौने तीन करोड़ जनता के दर्द को सरकार के सामने रखने कोशिश किसी जनप्रतिनिधि ने नहीं की । हज़ारीबांग ज़िले के दो हज़ार लोग सरकार से पर्याप्त मदद न मिलने से आहत, राज्यपाल एमओएच फारुक के जरिये राष्ट्रपति को पत्र लिख कर आत्महत्या की इज़ाज़त मांगी है । किसानों का कहना है कि हो सकता है कि लोग हमारे इस कदम को सस्ती लोकप्रियता पाने का जरिया समझे लेकिन हालात इतने खराब हैं कि जीना दुश्वार है। क्षेत्र में भीषण सूखा पड़ रहा है और किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं।हमारे पास बच्चों को शिक्षा दिलाना तो दूर खाने तक के लिए कुछ भी नहीं है। लोकसभा में ऊंची तनख्वाह और सहूलियत के लिये लड़ रहे सांसदों के के सफेद पोशाक पर यह यह कलंक है, और कलंक है सरकार की उपलब्धियों पर जिसकी सरकार दावे करती है ।

क्या ओबामा से कुछ सीखेंगे नेता ?


क्या ओबामा से कुछ सीखेंगे नेता ?

ओबामा की भारत यात्रा और ख़ास कर मुम्बई में उनके डेढ़ दिन की गतिविधियों से क्या हमारे नेता मंत्री और प्रशासक कुछ सीख लेंगे या नहीं यह एक बड़ा सवाल है । वैसे तो कई राजनेता भारत आते है और राजनेता ही बने रहते है लेकिन ओबामा ने मुम्बई की धरती पर जो छाप छोड़ी है वह अदभुद है और सीख लेने योग्य है । सीखने योग्य क्या है यह शायद नेतागण समझ पाये हो या न लेकिन हमारे बड़े नेताओं में भी वो सरलता और सहजता खास कर आम लोगों से बात करते समय या मीडिया के सवालों को जवाब देते समय कभी भी देखने को नहीं मिलती
ओबामा का पहला भारत दौरा है। लेकिन मुम्बई के सेंट जेवियर स्कूल में अपने संबोधन में ओबामा ने कभी भी मुम्बई को बंबई नहीं कहा यानी कभी भी जबान नहीं फिसली । जब की रास्ट्रमंडल खेलों के उद्धाटन और समापन समारोह में आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी की जुबान कई बार फिसली थी यहा तक की महारानी कैमिला पारकर को दिवंगत महारानी डायनद्म ही नहीं बल्कि अपने ही देश के पूर्व राष्टऊपति अब्दुल कलाम आजाद को अबुल कलाम कह कर संबोधित किया था। इसके अलावा कई नेता गलत उच्चारण कर सुर्खियों में रहे है लेकिन भाषा और शहर से अंजान ओबामा ने न केवल मुम्बई को मुम्बई कहा बल्कि आम मुम्बई वालों को मुम्बईकर कहकर भी उनका दिल जीता ।
क्या इसे हमारे नेता समझ सकेंगे आम लोगों को संबोधित करते समय सवाल जवाब में सबसे बड़ा भय यह होता है कि कौन क्या सवाल कर दे जिसका जवाब देना मुश्किल हो लेकिन ओबामा की पत्नी ने तो लोगों से बाकायदा अनुरोध किया कि सबसे कठिन सवाल पूछियेगा । यह एक यह एक गज़ब का आत्मविश्वास है ।
जो शायद भारतीय नेताओं में देखने को नहीं मिलेगा । सवाल जवाब में ओबामा ने हर किसी के सवालों का माकूल जवाब भी दिया । हमारे चिट्टा छाप नेताओं को उनसे कुछ सीख तो लेनी ही चाहिये । जब अयोध्या मुद्दे पर जमीनी मालिकाना हक़ का फैसला आना था तो गृहमंत्री पी.चिदंबरम ने अपने अभिभाषण में गांधी की एक सूक्ति की चर्चा की थी कि गांधी जी ने कहा था कि ईश्वर अल्ला तेरो नाद्ग सब को समति दे भगवान । लेकिन इस एक पंक्ति को भी चिदंबरम ने स्क्रिपट पढ़ कर ही दिया ।
ऐसा लगा की यह सूक्ति भी उन्हें पहली बार मिल रही है । इसके अलावा वित्त मंत्री या तमाम मंत्रीगण प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों के साथ आत्मीय संबंध बनाना और सवाल पूछने को प्रोत्साहित करना तो दूर उनके सवालों का सामना भी करना नहीं चाहते । जब कि ओबामा ने मुम्बई में न केवल कठिन सवालों को दिया बल्कि सरल भाषा में नमस्ते कर सभी को चौंका दिया । आध्यात्म से लेकर पाकिस्तान संबंधों पर और गांधी दर्शन से लेकर भारत के विकास तक हर मुद्दे पर ओबामा की राय पहले से तय थी । यही है एक मझे हुये और कुशल नेता के गुण और यही है असल में नेतागिरी भी जिसे जनता चाहती है । 5० साल के ओबामा से हमारे उम्रदराज नेताओं को कुछ सीख तो लेनी ही चाहिएं । मसलन कठिन सवालों का आसान जवाब देने की कला । हर मुद्दे पर सटीक राय देने का गुण और सहजता ।
क्या हमारे यहां कोई नेता सर्ट की बांह मरोड़ कर आम लोगों से मुखातिब हो सकता है यह कहना शायद मुस्किल हो सकता है। क्या हमारे नेता किसी रणनीति के तहत कोई यात्रा करते है । शायद यह जान कर हर किसी को हैरानी हो कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ही अब तक के सबसे ज्यादा यात्रा करने वाले पीएम हैं । अमेरिका समेत कई देशों की यात्राएं मनमोहन सिंह ने कई बार की है लेकिन न तो वहा कोई छाप छोड सके और न ही अपने यहां कुछ बता सके की आखिर कौन से समझौते और मसौदे को पु[ता कर वापस आये है । यह है हमारे नेताओं की कमजोरी जो शायद आईने में न दिखे लेकिन अमेरिकी राष्टपति ओबामा ने उन्हें अपनी नेतागिरी के तौर तरीकों पर फिर विचार करने की जरुरत की ओर इशारा तो कर ही दिया है ।
(akhileshnews@gmail.com)

क्या ओबामा से कुछ सीखेंगे नेता

क्या ओबामा से कुछ सीखेंगे नेता

ओबामा की भारत यात्रा और ख़ास कर मुम्बई में उनके डेढ़ दिन की गतिविधियों से क्या हमारे नेता मंत्री और प्रशासक कुछ सीख लेंगे या नहीं यह एक बड़ा सवाल है । वैसे तो कई राजनेता भारत आते है और राजनेता ही बने रहते है लेकिन ओबामा ने मुम्बई की धरती पर जो छाप छोड़ी है वह अदभुद है और सीख लेने योग्य है । सीखने योग्य क्या है यह शायद नेतागण समझ पाये हो या न लेकिन हमारे बड़े नेताओं में भी वो सरलता और सहजता खास कर आम लोगों से बात करते समय या मीडिया के सवालों को जवाब देते समय कभी भी देखने को नहीं मिलती
ओबामा का पहला भारत दौरा है। लेकिन मुम्बई के सेंट जेवियर स्कूल में अपने संबोधन में ओबामा ने कभी भी मुम्बई को बंबई नहीं कहा यानी कभी भी जबान नहीं फिसली । जब की रास्ट्रमंडल खेलों के उद्धाटन और समापन समारोह में आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी की जुबान कई बार फिसली थी यहा तक की महारानी कैमिला पारकर को दिवंगत महारानी डायनद्म ही नहीं बल्कि अपने ही देश के पूर्व राष्टऊपति अब्दुल कलाम आजाद को अबुल कलाम कह कर संबोधित किया था। इसके अलावा कई नेता गलत उच्चारण कर सुर्खियों में रहे है लेकिन भाषा और शहर से अंजान ओबामा ने न केवल मुम्बई को मुम्बई कहा बल्कि आम मुम्बई वालों को मुम्बईकर कहकर भी उनका दिल जीता ।
क्या इसे हमारे नेता समझ सकेंगे आम लोगों को संबोधित करते समय सवाल जवाब में सबसे बड़ा भय यह होता है कि कौन क्या सवाल कर दे जिसका जवाब देना मुश्किल हो लेकिन ओबामा की पत्नी ने तो लोगों से बाकायदा अनुरोध किया कि सबसे कठिन सवाल पूछियेगा । यह एक यह एक गज़ब का आत्मविश्वास है ।
जो शायद भारतीय नेताओं में देखने को नहीं मिलेगा । सवाल जवाब में ओबामा ने हर किसी के सवालों का माकूल जवाब भी दिया । हमारे चिट्टा छाप नेताओं को उनसे कुछ सीख तो लेनी ही चाहिये । जब अयोध्या मुद्दे पर जमीनी मालिकाना हक़ का फैसला आना था तो गृहमंत्री पी.चिदंबरम ने अपने अभिभाषण में गांधी की एक सूक्ति की चर्चा की थी कि गांधी जी ने कहा था कि ईश्वर अल्ला तेरो नाद्ग सब को समति दे भगवान । लेकिन इस एक पंक्ति को भी चिदंबरम ने स्क्रिपट पढ़ कर ही दिया ।
ऐसा लगा की यह सूक्ति भी उन्हें पहली बार मिल रही है । इसके अलावा वित्त मंत्री या तमाम मंत्रीगण प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों के साथ आत्मीय संबंध बनाना और सवाल पूछने को प्रोत्साहित करना तो दूर उनके सवालों का सामना भी करना नहीं चाहते । जब कि ओबामा ने मुम्बई में न केवल कठिन सवालों को दिया बल्कि सरल भाषा में नमस्ते कर सभी को चौंका दिया । आध्यात्म से लेकर पाकिस्तान संबंधों पर और गांधी दर्शन से लेकर भारत के विकास तक हर मुद्दे पर ओबामा की राय पहले से तय थी । यही है एक मझे हुये और कुशल नेता के गुण और यही है असल में नेतागिरी भी जिसे जनता चाहती है । 5० साल के ओबामा से हमारे उम्रदराज नेताओं को कुछ सीख तो लेनी ही चाहिएं । मसलन कठिन सवालों का आसान जवाब देने की कला । हर मुद्दे पर सटीक राय देने का गुण और सहजता ।
क्या हमारे यहां कोई नेता सर्ट की बांह मरोड़ कर आम लोगों से मुखातिब हो सकता है यह कहना शायद मुस्किल हो सकता है। क्या हमारे नेता किसी रणनीति के तहत कोई यात्रा करते है । शायद यह जान कर हर किसी को हैरानी हो कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ही अब तक के सबसे ज्यादा यात्रा करने वाले पीएम हैं । अमेरिका समेत कई देशों की यात्राएं मनमोहन सिंह ने कई बार की है लेकिन न तो वहा कोई छाप छोड सके और न ही अपने यहां कुछ बता सके की आखिर कौन से समझौते और मसौदे को पुखता कर वापस आये है । यह है हमारे नेताओं की कमजोरी जो शायद आईने में न दिखे लेकिन अमेरिकी राष्टपति ओबामा ने उन्हें अपनी नेतागिरी के तौर तरीकों पर फिर विचार करने की जरुरत की ओर इशारा तो कर ही दिया है ।
(akhileshnews@gmail.com)

Sunday, November 7, 2010

सप्ताह का विचार


(पुरालेख)
(1)
* सारा जगत स्वतंत्रता के लिए लालायित रहता है फिर भी प्रत्येक जीव अपने बंधनो को प्यार करता है। यही हमारी प्रकृति की पहली दुरूह ग्रंथि और विरोधाभास है।
- श्री अरविंद
* सत्याग्रह की लड़ाई हमेशा दो प्रकार की होती है। एक ज़ुल्मों के खिलाफ़ और दूसरी स्वयं की दुर्बलता के विरुद्ध।
- सरदार पटेल
* कष्ट ही तो वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और आगे बढ़ाती है।
- सावरकर
* तप ही परम कल्याण का साधन है। दूसरे सारे सुख तो अज्ञान मात्र हैं।
- वाल्मीकि
* संयम संस्कृति का मूल है। विलासिता निर्बलता और चाटुकारिता के वातावरण में न तो संस्कृति का उद्भव होता है और न विकास।
- काका कालेलकर
* जो सत्य विषय हैं वे तो सबमें एक से हैं झगड़ा झूठे विषयों में होता है।
-सत्यार्थप्रकाश
* जिस तरह एक दीपक पूरे घर का अंधेरा दूर कर देता है उसी तरह एक योग्य पुत्र सारे कुल का दरिद्र दूर कर देता है
- कहावत
* सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही महान फल देता है।
- कथा सरित्सागर
* चाहे गुरु पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए। क्यों कि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं।
- समर्थ रामदास
* यदि असंतोष की भावना को लगन व धैर्य से रचनात्मक शक्ति में न बदला जाए तो वह ख़तरनाक भी हो सकती है।
- इंदिरा गांधी
* प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजाओं के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिए। आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है, प्रजाओं की प्रियता में ही राजा का हित है।
- चाणक्य
* द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है।
- विनोबा
* साहित्य का कर्तव्य केवल ज्ञान देना नहीं है परंतु एक नया वातावरण देना भी है।
- डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
* लोकतंत्र के पौधे का, चाहे वह किसी भी किस्म का क्यों न हो तानाशाही में पनपना संदेहास्पद है।
- जयप्रकाश नारायण
* बाधाएँ व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिए, मंद नहीं पड़ना चाहिए।
- यशपाल
* सहिष्णुता और समझदारी संसदीय लोकतंत्र के लिए उतने ही आवश्यक है जितने संतुलन और मर्यादित चेतना।
- डॉ. शंकर दयाल शर्मा
* जिस प्रकार रात्रि का अंधकार केवल सूर्य दूर कर सकता है, उसी प्रकार मनुष्य की विपत्ति को केवल ज्ञान दूर कर सकता है।
- नारदभक्ति
* धर्म करते हुए मर जाना अच्छा है पर पाप करते हुए विजय प्राप्त करना अच्छा नहीं।
- महाभारत
* दंड द्वारा प्रजा की रक्षा करनी चाहिए लेकिन बिना कारण किसी को दंड नहीं देना चाहिए।
- रामायण
* शाश्वत शांति की प्राप्ति के लिए शांति की इच्छा नहीं बल्कि आवश्यक है इच्छाओं की शांति।
- स्वामी ज्ञानानंद
* धर्म का अर्थ तोड़ना नहीं बल्कि जोड़ना है। धर्म एक संयोजक तत्व है। धर्म लोगों को जोड़ता है।
- डॉ. शंकरदयाल शर्मा
* त्योहार साल की गति के पड़ाव हैं, जहाँ भिन्न-भिन्न मनोरंजन हैं, भिन्न-भिन्न आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीडास्थल हैं।
- बरुआ
* दुखियारों को हमदर्दी के आँसू भी कम प्यारे नहीं होते।
- प्रेमचंद
* अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही अधिक दुख और पतन की बारी आती है।
-जयशंकर प्रसाद
* अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से
उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं।
- महर्षि अरविंद
* जंज़ीरें, जंज़ीरें ही हैं, चाहे वे लोहे की हों या सोने की, वे समान रूप से तुम्हें गुलाम बनाती हैं।
- स्वामी रामतीर्थ
* जैसे अंधे के लिए जगत अंधकारमय है और आँखों वाले के लिए प्रकाशमय है वैसे ही अज्ञानी के लिए जगत दुखदायक है और ज्ञानी के लिए आनंदमय।
- संपूर्णानंद
* नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के आभूषण होते हैं। शेष सब नाममात्र के भूषण हैं।
- संत तिरुवल्लुर
* वही उन्नति करता है जो स्वयं अपने को उपदेश देता है।
- स्वामी रामतीर्थ
* अपने विषय में कुछ कहना प्राय: बहुत कठिन हो जाता है क्यों कि अपने दोष देखना आपको अप्रिय लगता है और उनको अनदेखा करना औरों को।
- महादेवी वर्मा
* करुणा में शीतल अग्नि होती है जो क्रूर से क्रूर व्यक्ति का हृदय भी आर्द्र कर देती है।
- सुदर्शन
* हताश न होना ही सफलता का मूल है और यही परम सुख है।
- वाल्मीकि
* मित्रों का उपहास करना उनके पावन प्रेम को खंडित करना है।
- राम प्रताप त्रिपाठी
* नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हँस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है।
- संत तिरुवल्लुवर
* जय उसी की होती है जो अपने को संकट में डालकर कार्य संपन्न करते हैं। जय कायरों की कभी नहीं होती।
- जवाहरलाल नेहरू
* कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है।
- डॉ. रामकुमार वर्मा
* जीवन का महत्व तभी है जब वह किसी महान ध्येय के लिए समर्पित हो। यह समर्पण ज्ञान और न्याययुक्त हो।
- इंदिरा गांधी
* तलवार ही सब कुछ है, उसके बिना न मनुष्य अपनी रक्षा कर सकता है और न निर्बल की।
- गुरु गोविंद सिंह
* मनुष्य क्रोध को प्रेम से, पाप को सदाचार से लोभ को दान से और झूठ को सत्य से जीत सकता है।
- गौतम बुद्ध
* स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है!
- लोकमान्य तिलक
* सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन और एकांत साधना में होता है।
- अनंत गोपाल शेवडे
* कुटिल लोगों के प्रति सरल व्यवहार अच्छी नीति नहीं।
- श्री हर्ष
* अनुभव, ज्ञान उन्मेष और वयस् मनुष्य के विचारों को बदलते हैं।
- हरिऔध
* जो अपने ऊपर विजय प्राप्त करता है वही सबसे बड़ा विजयी हैं।
- गौतम बुद्ध
* अधिक अनुभव, अधिक सहनशीलता और अधिक अध्ययन यही विद्वत्ता के तीन महास्तंभ हैं।
- अज्ञात
* जो दीपक को अपने पीछे रखते हैं वे अपने मार्ग में अपनी ही छाया डालते हैं।
- रवींद्र
* जहाँ प्रकाश रहता है वहाँ अंधकार कभी नहीं रह सकता।
- माघ्र
* मनुष्य का जीवन एक महानदी की भाँति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में राह बना लेती है।
- रवींद्रनाथ ठाकुर
* प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है।
- रवींद्रनाथ ठाकुर
* कविता का बाना पहन कर सत्य और भी चमक उठता है।
- अज्ञात
* हताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्मो में प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनता है।
- वाल्मीकि
* अनुराग, यौवन, रूप या धन से उत्पन्न नहीं होता। अनुराग, अनुराग से उत्पन्न होता है।
- प्रेमचंद
* जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिए।
- वेदव्यास
..................................................................................................................
सप्ताह का विचार


(पुरालेख)
(2)

* फल के आने से वृक्ष झुक जाते हैं, वर्षा के समय बादल झुक जाते हैं, संपत्ति के समय सज्जन भी नम्र होते हैं। परोपकारियों का स्वभाव ही ऐसा है।
- तुलसीदास
* प्रकृति, समय और धैर्य ये तीन हर दर्द की दवा हैं।
- अज्ञात
* कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण हैं। जो साहस के साथ उनका सामना करते हैं, वे विजयी होते हैं।
- लोकमान्य तिलक
* कविता गाकर रिझाने के लिए नहीं समझ कर खो जाने के लिए है।
- रामधारी सिंह दिनकर
* विद्वत्ता अच्छे दिनों में आभूषण, विपत्ति में सहायक और बुढ़ापे में संचित धन है।
- हितोपदेश
* ख़ातिरदारी जैसी चीज़ में मिठास ज़रूर है, पर उसका ढकोसला करने में न तो मिठास है और न स्वाद।
- शरतचंद्र
* पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती लेकिन मानव के सदगुण की महक सब ओर फैल जाती है।
- गौतम बुद्ध
* कलाकार प्रकृति का प्रेमी है अत: वह उसका दास भी है और स्वामी भी।
- रवींद्रनाथ ठाकुर
* रंग में वह जादू है जो रंगने वाले, भीगने वाले और देखने वाले तीनों के मन को विभोर कर देता है।
- मुक्ता
* जो भारी कोलाहल में भी संगीत को सुन सकता है, वह महान उपलब्धि को प्राप्त करता है।
- डॉ. विक्रम साराभाई
* मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो उतना ही कर्म के रंग में रंग जाता है।
- विनोबा
* लगन और योग्यता एक साथ मिलें तो निश्चय ही एक अद्वितीय रचना का जन्म होता है।
- मुक्ता
* बिना कारण कलह कर बैठना मूर्ख का लक्षण हैं। इसलिए बुद्धिमत्ता इसी में है कि अपनी हानि सह ले लेकिन विवाद न करें।
- हितोपदेश
* मुस्कान पाने वाला मालामाल हो जाता है पर देने वाला दरिद्र नहीं होता।
- अज्ञात
* आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है और उद्यम सबसे बड़ा मित्र, जिसके साथ रहने वाला कभी दुखी नहीं होता।
- भर्तृहरि
* क्रोध ऐसी आँधी है जो विवेक को नष्ट कर देती है।
- अज्ञात
* चंद्रमा अपना प्रकाश संपूर्ण आकाश में फैलाता है परंतु अपना कलंक अपने ही पास रखता है।
- रवींद्र
* आपत्तियाँ मनुष्यता की कसौटी हैं। इन पर खरा उतरे बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता।
- पं. रामप्रताप त्रिपाठी
* मेहनत करने से दरिद्रता नहीं रहती, धर्म करने से पाप नहीं रहता, मौन रहने से कलह नहीं होता और जागते रहने से भय नहीं होता।
- चाणक्य
* जल में मीन का मौन है, पृथ्वी पर पशुओं का कोलाहल और आकाश में पंछियों का संगीत पर मनुष्य में जल का मौन पृथ्वी का कोलाहल और आकाश का संगीत सबकुछ है।
- रवींद्रनाथ ठाकुर
* कविता वह सुरंग है जिसमें से गुज़र कर मनुष्य एक विश्व को छोड़ कर दूसरे विश्व में प्रवेश करता है।
- रामधारी सिंह दिनकर
* चरित्रहीन शिक्षा, मानवता विहीन विज्ञान और नैतिकता विहीन व्यापार ख़तरनाक होते हैं।
- सत्यसाई बाबा
* भाग्य के भरोसे बैठे रहने पर भाग्य सोया रहता है पर हिम्मत बाँध कर खड़े होने पर भाग्य भी उठ खड़ा होता है।
- अज्ञात
* ग़रीबों के समान विनम्र अमीर और अमीरों के समान उदार ग़रीब ईश्वर के प्रिय पात्र होते हैं।
- सादी
* जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिंब नहीं पड़ सकता।
- रामकृष्ण परमहंस
* मिलने पर मित्र का आदर करो, पीठ पीछे प्रशंसा करो और आवश्यकता के समय उसकी मदद करो।
- अज्ञात
* जैसे छोटा-सा तिनका हवा का रुख बताता है वैसे ही मामूली घटनाएँ मनुष्य के हृदय की वृत्ति को बताती हैं।
- महात्मा गांधी
* साँप के दाँत में विष रहता है, मक्खी के सिर में और बिच्छू की पूँछ में किंतु दुर्जन के पूरे शरीर में विष रहता है।
- कबीर
* देश-प्रेम के दो शब्दों के सामंजस्य में वशीकरण मंत्र है, जादू का सम्मिश्रण है। यह वह कसौटी है जिसपर देश भक्तों की परख होती है।
- बलभद्र प्रसाद गुप्त 'रसिक'
* सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा एक बड़ा राष्ट्रीय अपराध है।
- स्वामी विवेकानंद
* दरिद्र व्यक्ति कुछ वस्तुएँ चाहता है, विलासी बहुत-सी और लालची सभी वस्तुएँ चाहता है।
- अज्ञात
* भय से ही दुःख आते हैं, भय से ही मृत्यु होती है और भय से ही बुराइयाँ उत्पन्न होती हैं।
- विवेकानंद
* निराशा के समान दूसरा पाप नहीं। आशा सर्वोत्कृष्ट प्रकाश है तो निराशा घोर अंधकार है।
- रश्मिमाला
* विश्वास हृदय की वह कलम है जो स्वर्गीय वस्तुओं को चित्रित करती है।
- अज्ञात
* नाव जल में रहे लेकिन जल नाव में नहीं रहना चाहिए, इसी प्रकार साधक जग में रहे लेकिन जग साधक के मन में नहीं रहना चाहिए।
- रामकृष्ण परमहंस
* जिस राष्ट्र में चरित्रशीलता नहीं है उसमें कोई योजना काम नहीं कर सकती।
- विनोबा
* उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं। संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं।
- चीनी कहावत
* वे ही विजयी हो सकते हैं जिनमें विश्वास है कि वे विजयी होंगे।
- अज्ञात
* जीवन की जड़ संयम की भूमि में जितनी गहरी जमती है और सदाचार का जितना जल दिया जाता है उतना ही जीवन हरा भरा होता है और उसमें ज्ञान का मधुर फल लगता है।
- दीनानाथ दिनेश
* जहाँ मूर्ख नहीं पूजे जाते, जहाँ अन्न की सुरक्षा की जाती है और जहाँ परिवार में कलह नहीं होती, वहाँ लक्ष्मी निवास करती है।
- अथर्ववेद
* उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं।
- अज्ञात
* जीवन में कोई चीज़ इतनी हानिकारक और ख़तरनाक नहीं जितना डाँवाँडोल स्थिति में रहना।
- सुभाषचंद्र बोस
* विवेक जीवन का नमक है और कल्पना उसकी मिठास। एक जीवन को सुरक्षित रखता है और दूसरा उसे मधुर बनाता है।
- अज्ञात
* आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है पर महत्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें।
- महात्मा गांधी
* पाषाण के भीतर भी मधुर स्रोत होते हैं, उसमें मदिरा नहीं शीतल जल की धारा बहती है।
- जयशंकर प्रसाद
* आँख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता।
- चाणक्य
...............................................................................................................................
सप्ताह का विचार



(पुरालेख)
२००५

* एकता का किला सबसे सुरक्षित होता है। न वह टूटता है और न उसमें रहने वाला कभी दुखी होता है।
- अज्ञात
* किताबें ऐसी शिक्षक हैं जो बिना कष्ट दिए, बिना आलोचना किए और बिना परीक्षा लिए हमें शिक्षा देती हैं।
- अज्ञात
* ऐसे देश को छोड़ देना चाहिए जहाँ न आदर है, न जीविका, न मित्र, न परिवार और न ही ज्ञान की आशा।
- विनोबा
* विश्वास वह पक्षी है जो प्रभात के पूर्व अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करता है और गाने लगता है।
- रवींद्रनाथ ठाकुर
* कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सदव्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुआब दिखाने से नहीं।
- प्रेमचंद
* अनुभव की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों और विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते।
- अज्ञात
* जिस प्रकार थोड़ी-सी वायु से आग भड़क उठती है, उसी प्रकार थोड़ी-सी मेहनत से किस्मत चमक उठती है।
- अज्ञात
* अपने को संकट में डाल कर कार्य संपन्न करने वालों की विजय होती है, कायरों की नहीं।
- जवाहरलाल नेहरू
* सच्चाई से जिसका मन भरा है, वह विद्वान न होने पर भी बहुत देश सेवा कर सकता है।
- पं. मोतीलाल नेहरू
* स्वतंत्र वही हो सकता है जो अपना काम अपने आप कर लेता है।
- विनोबा
* जिस तरह रंग सादगी को निखार देते हैं उसी तरह सादगी भी रंगों को निखार देती है। सहयोग सफलता का सर्वश्रेष्ठ उपाय है।
- मुक्ता
* दुख और वेदना के अथाह सागर वाले इस संसार में प्रेम की अत्यधिक आवश्यकता है।
- डॉ. रामकुमार वर्मा
* डूबते को तारना ही अच्छे इंसान का कर्तव्य होता है।
- अज्ञात
* सबसे अधिक ज्ञानी वही है जो अपनी कमियों को समझकर उनका सुधार कर सकता हो।
- अज्ञात
* अनुभव-प्राप्ति के लिए काफ़ी मूल्य चुकाना पड़ सकता है पर उससे जो शिक्षा मिलती है वह और कहीं नहीं मिलती।
- अज्ञात
* जिसने अकेले रह कर अकेलेपन को जीता उसने सबकुछ जीता।
- अज्ञात
* अच्छी योजना बनाना बुद्धिमानी का काम है पर उसको ठीक से पूरा करना धैर्य और परिश्रम का।
- कहावत
* जो पुरुषार्थ नहीं करते उन्हें धन, मित्र, ऐश्वर्य, सुख, स्वास्थ्य, शांति और संतोष प्राप्त नहीं होते।
- वेदव्यास
* नियम के बिना और अभिमान के साथ किया गया तप व्यर्थ ही होता है।
- वेदव्यास
* जैसे सूर्योदय के होते ही अंधकार दूर हो जाता है वैसे ही मन की प्रसन्नता से सारी बाधाएँ शांत हो जाती हैं।
- अमृतलाल नागर
* जैसे उल्लू को सूर्य नहीं दिखाई देता वैसे ही दुष्ट को सौजन्य दिखाई नहीं देता।
- स्वामी भजनानंद
* लोहा गरम भले ही हो जाए पर हथौड़ा तो ठंडा रह कर ही काम कर सकता है।
- सरदार पटेल
* एकता का किला सबसे सुदृढ़ होता है। उसके भीतर रह कर कोई भी प्राणी असुरक्षा अनुभव नहीं करता।
- अज्ञात
* फूल चुन कर एकत्र करने के लिए मत ठहरो। आगे बढ़े चलो, तुम्हारे पथ में फूल निरंतर खिलते रहेंगे।
- रवींद्रनाथ ठाकुर
* सौभाग्य वीर से डरता है और कायर को डराता है।
- अज्ञात
* प्रकृति अपरिमित ज्ञान का भंडार है, परंतु उससे लाभ उठाने के लिए अनुभव आवश्यक है।
- हरिऔध
* प्रकृति अपरिमित ज्ञान का भंडार है, पत्ते-पत्ते में शिक्षापूर्ण पाठ हैं, परंतु उससे लाभ उठाने के लिए अनुभव आवश्यक है।
- हरिऔध
* जिस मनुष्य में आत्मविश्वास नहीं है वह शक्तिमान हो कर भी कायर है और पंडित होकर भी मूर्ख है।
- राम प्रताप त्रिपाठी
* मन एक भीरु शत्रु है जो सदैव पीठ के पीछे से वार करता है।
- प्रेमचंद
* असत्य फूस के ढेर की तरह है। सत्य की एक चिनगारी भी उसे भस्म कर देती है।
- हरिभाऊ उपाध्याय
* समय परिवर्तन का धन है। परंतु घड़ी उसे केवल परिवर्तन के रूप में दिखाती है, धन के रूप में नहीं।
- रवींद्रनाथ ठाकुर
* संतोष का वृक्ष कड़वा है लेकिन इस पर लगने वाला फल मीठा होता है।
- स्वामी शिवानंद
* विचारकों को जो चीज़ आज स्पष्ट दीखती है दुनिया उस पर कल अमल करती है।
- विनोबा
* विश्वविद्यालय महापुरुषों के निर्माण के कारख़ाने हैं और अध्यापक उन्हें बनाने वाले कारीगर हैं।
- रवींद्र
* हज़ार योद्धाओं पर विजय पाना आसान है, लेकिन जो अपने ऊपर विजय पाता है वही सच्चा विजयी है।
- गौतम बुद्ध
* जबतक भारत का राजकाज अपनी भाषा में नहीं चलेगा तबतक हम यह नहीं कह सकते कि देश में स्वराज है।
- मोरारजी देसाई
* मुठ्ठी भर संकल्पवान लोग जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं।
- महात्मा गांधी
* सत्याग्रह बलप्रयोग के विपरीत होता है। हिंसा के संपूर्ण त्याग में ही सत्याग्रह की कल्पना की गई है।
- महात्मा गांधी
* दूसरों पर किए गए व्यंग्य पर हम हँसते हैं पर अपने ऊपर किए गए व्यंग्य पर रोना तक भूल जाते हैं।
- रामचंद्र शुक्ल
* धन उत्तम कर्मों से उत्पन्न होता है, प्रगल्भता (साहस, योग्यता व दृढ़ निश्चय) से बढ़ता है, चतुराई से फलता फूलता है और संयम से सुरक्षित होता है।
- विदुर
* वाणी चाँदी है, मौन सोना है, वाणी पार्थिव है पर मौन दिव्य।
- कहावत
* मुहब्बत त्याग की माँ है। वह जहाँ जाती है अपने बेटे को साथ ले जाती है।
- सुदर्शन
* मुस्कान थके हुए के लिए विश्राम है, उदास के लिए दिन का प्रकाश है तथा कष्ट के लिए प्रकृति का सर्वोत्तम उपहार है।
- अज्ञात
* जिस तरह घोंसला सोती हुई चिड़िया को आश्रय देता है उसी तरह मौन तुम्हारी वाणी को आश्रय देता है।
- रवींद्रनाथ ठाकुर
* साफ़ सुथरे सादे परिधान में ऐसा यौवन होता है जिसमें अधिक उम्र छिप जाती है।
- अज्ञात
* ज्ञानी जन विवेक से सीखते हैं, साधारण मनुष्य अनुभव से, अज्ञानी पुरुष आवश्यकता से और पशु स्वभाव से।
- कौटिल्य
* जो काम घड़ों जल से नहीं होता उसे दवा के दो घूँट कर देते हैं और जो काम तलवार से नहीं होता वह काँटा कर देता है।
- सुदर्शन

................................................................................................................................................................
सप्ताह का विचार


(पुरालेख)
२००६

* जिस काम की तुम कल्पना करते हो उसमें जुट जाओ। साहस में प्रतिभा, शक्ति और जादू है। साहस से काम शुरु करो पूरा अवश्य होगा।
- अज्ञात
* मनुष्य मन की शक्तियों के बादशाह हैं। संसार की समस्त शक्तियाँ उनके सामने नतमस्तक हैं।
- अज्ञात
* सबसे उत्तम विजय प्रेम की है। जो सदैव के लिए विजेताओं का हृदय बाँध लेती है।
- सम्राट अशोक
* महान व्यक्ति महत्वाकांक्षा के प्रेम से बहुत अधिक आकर्षित होते हैं।
- प्रेमचंद
* बिना जोश के आज तक कोई भी महान कार्य नहीं हुआ।
- सुभाष चंद्र बोस
* नेकी से विमुख हो बदी करना निस्संदेह बुरा है। मगर सामने मुस्काना और पीछे चुगली करना और भी बुरा है।
- संत तिरुवल्लुवर
* अधर्म की सेना का सेनापति झूठ है। जहाँ झूठ पहुँच जाता है वहाँ अधर्म-राज्य की विजय-दुंदुभी अवश्य बजती है।
- सुदर्शन
* पृथ्वी पर तीन रत्न हैं। जल, अन्न और सुभाषित लेकिन अज्ञानी पत्थर के टुकड़े को ही रत्न कहते हैं।
- कालिदास
* जैसे जीने के लिए मृत्यु का अस्वीकरण ज़रूरी है वैसे ही सृजनशील बने रहने के लिए प्रतिष्ठा का अस्वीकरण ज़रूरी है।
- डॉ. रघुवंश
* ईश्वर बड़े-बड़े साम्राज्यों से ऊब उठता है लेकिन छोटे-छोटे पुष्पों से कभी खिन्न नहीं होता।
- रवींद्रनाथ ठाकुर
* सबसे उत्तम विजय प्रेम की है जो सदैव के लिए विजेताओं का हृदय बाँध लेती है।
- अशोक
* जीवन में दो ही व्यक्ति असफल होते हैं- एक वे जो सोचते हैं पर करते नहीं, दूसरे जो करते हैं पर सोचते नहीं।
- आचार्य श्रीराम शर्मा
* कर्म, ज्ञान और भक्ति- ये तीनों जहाँ मिलते हैं वहीं सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ जन्म लेता है।
- अरविंद
* उत्तम पुरुषों की संपत्ति का मुख्य प्रयोजन यही है कि औरों की विपत्ति का नाश हो।
- रहीम
* विद्वत्ता युवकों को संयमी बनाती है। यह बुढ़ापे का सहारा है, निर्धनता में धन है, और धनवानों के लिए आभूषण है।
मनस्वी पुरुष पर्वत के समान ऊँचे और समुद्र के समान गंभीर होते हैं। उनका पार पाना कठिन है।
- माघ
* सपने हमेशा सच नहीं होते पर ज़िंदगी तो उम्मीद पर टिकी होती हैं।
- रविकिरण शास्त्री
* अकेलापन कई बार अपने आप से सार्थक बातें करता है। वैसी सार्थकता भीड़ में या भीड़ के चिंतन में नहीं मिलती।
- राजेंद्र अवस्थी
* विश्व के निर्माण में जिसने सबसे अधिक संघर्ष किया है और सबसे अधिक कष्ट उठाए हैं वह माँ है।
- हर्ष मोहन
* पुरुष है कुतूहल व प्रश्न और स्त्री है विश्लेषण, उत्तर और सब बातों का समाधान।
- जयशंकर प्रसाद
* जो मनुष्य एक पाठशाला खोलता है वह एक जेलखाना बंद करता है।
- अज्ञात
* यशस्वियों का कर्तव्य है कि जो अपने से होड़ करे उससे अपने यश की रक्षा भी करें।
- कालिदास
* कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
- हरिवंश राय बच्चन
* जब पैसा बोलता है तब सत्य मौन रहता है।
- कहावत
* मनुष्य अपना स्वामी नहीं, परिस्थितियों का दास है।
-भगवतीचरण वर्मा
* उदय होते समय सूर्य लाल होता है और अस्त होते समय भी। इसी प्रकार संपत्ति और विपत्ति के समय महान पुरुषों में एकरूपता होती है।
- कालिदास
* वृक्ष अपने सिर पर गरमी सहता है पर अपनी छाया में दूसरों का ताप दूर करता है।
- तुलसीदास
* प्रत्येक कार्य अपने समय से होता है उसमें उतावली ठीक नहीं, जैसे पेड़ में कितना ही पानी डाला जाय पर फल वह अपने समय से ही देता है।
- वृंद
* चापलूसी का ज़हरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुँचा सकता जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझ कर पी न जाएँ।
- प्रेमचंद
* दुनिया का अस्तित्व शस्त्रबल पर नहीं, सत्य, दया और आत्मबल पर है।
- महात्मा गांधी
* संपदा को जोड़-जोड़ कर रखने वाले को भला क्या पता कि दान में कितनी मिठास है।
- आचार्य श्रीराम शर्मा
* मानव का मानव होना ही उसकी जीत है, दानव होना हार है, और महामानव होना चमत्कार है।
- डॉ. राधाकृष्णन
* केवल अंग्रेज़ी सीखने में जितना श्रम करना पड़ता है उतने श्रम में भारत की सभी भाषाएँ सीखी जा सकती हैं।
- विनोबा
* अवसर तो सभी को ज़िंदगी में मिलते हैं किंतु उनका सही वक्त पर सही तरीक़े से इस्तेमाल कितने कर पाते हैं?
- संतोष गोयल
* विजय गर्व और प्रतिष्ठा के साथ आती है पर यदि उसकी रक्षा पौरुष के साथ न की जाय तो अपमान का ज़हर पिला कर चली जाती है।
- मुक्ता
* धैर्यवान मनुष्य आत्मविश्वास की नौका पर सवार होकर आपत्ति की नदियों को सफलतापूर्वक पार कर जाते हैं।
- भर्तृहरि
* केवल प्रकाश का अभाव ही अंधकार नहीं, प्रकाश की अति भी मनुष्य की आँखों के लिए अंधकार है।
- स्वामी रामतीर्थ
* कलियुग में रहना है या सतयुग में यह तुम स्वयं चुनो, तुम्हारा युग तुम्हारे पास है।
- विनोबा
* प्रलय होने पर समुद्र भी अपनी मर्यादा को छोड़ देते हैं लेकिन सज्जन लोग महाविपत्ति में भी मर्यादा को नहीं छोड़ते।
- चाणक्य
* भूख प्यास से जितने लोगों की मृत्यु होती है उससे कहीं अधिक लोगों की मृत्यु ज़्यादा खाने और ज़्यादा पीने से होती है।
- कहावत
* बच्चे कोरे कपड़े की तरह होते हैं, जैसा चाहो वैसा रंग लो, उन्हें निश्चित रंग में केवल डुबो देना पर्याप्त है।
- सत्यसाई बाबा
* धन तो वापस किया जा सकता है परंतु सहानुभूति के शब्द वे ऋण हैं जिसे चुकाना मनुष्य की शक्ति के बाहर है।
- सुदर्शन
* शत्रु के साथ मृदुता का व्यवहार अपकीर्ति का कारण बनता है और पुरुषार्थ यश का।
- रामनरेश त्रिपाठी
* श्रद्धा और विश्वास ऐसी जड़ी बूटियाँ हैं कि जो एक बार घोल कर पी लेता है वह चाहने पर मृत्यु को भी पीछे धकेल देता है।
- अमृतलाल नागर
..............................................................................................................................................
सप्ताह का विचार

(पुरालेख)
२००७

* जैसे रात्रि के बाद भोर का आना या दुख के बाद सुख का आना जीवन चक्र का हिस्सा है वैसे ही प्राचीनता से नवीनता का सफ़र भी निश्चित है। — भावना कुँअर
* धन के भी पर होते हैं। कभी-कभी वे स्वयं उड़ते हैं और कभी-कभी अधिक धन लाने के लिए उन्हें उड़ाना पड़ता है। —कहावत
* प्रसिद्ध होने का यह एक दंड है कि मनुष्य को निरंतर उन्नतिशील बने रहना पड़ता है।
—अज्ञात
* प्रत्येक व्यक्ति की अच्छाई ही प्रजातंत्रीय शासन की सफलता का मूल सिद्धांत है।
—राजगोपालाचारी
* अपने अनुभव का साहित्य किसी दर्शन के साथ नहीं चलता, वह अपना दर्शन पैदा करता है।
—कमलेश्वर
* मैं ने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा जिसमें पुरुष स्त्री से कह रहा हो कि यह साड़ी या स्नो खरीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर टायर तक में वह दखल देती है।
—हरिशंकर परसाई
* 'शि' का अर्थ है पापों का नाश करने वाला और 'व' कहते हैं मुक्ति देने वाले को। भोलेनाथ में ये दोनों गुण हैं इसलिए वे शिव कहलाते हैं।
—ब्रह्मवैवर्त पुराण
* काम की समाप्ति संतोषप्रद हो तो परिश्रम की थकान याद नहीं रहती।
—कालिदास
* रंगों की उमंग खुशी तभी देती है जब उसमें उज्जवल विचारों की अबरक़ चमचमा रही हो।
—मुक्ता
* नारी की करुणा अंतरजगत का उच्चतम विकास है, जिसके बल पर समस्त सदाचार ठहरे हुए हैं।
—जयशंकर प्रसाद
* चंद्रमा, हिमालय पर्वत, केले के वृक्ष और चंदन शीतल माने गए हैं, पर इनमें से कुछ भी इतना शीतल नहीं जितना मनुष्य का तृष्णा रहित चित्त।
—वशिष्ठ
* इस संसार में प्यार करने लायक दो वस्तुएँ हैं-एक दुख और दूसरा श्रम। दुख के बिना हृदय निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता।
—आचार्य श्रीराम शर्मा
* बैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है। –आचार्य रामचंद्र शुक्ल
* संवेदनशीलता न्याय की पहली अनिवार्यता है।
–कुमार आशीष
* शब्द पत्तियों की तरह हैं जब वे ज़्यादा होते हैं तो अर्थ के फल दिखाई नहीं देते।
–अज्ञात
* अपने दोस्त के लिए जान दे देना इतना मुश्किल नहीं है जितना मुश्किल ऐसे दोस्त को ढूँढ़ना जिस पर जान दी जा सके। -- मधूलिका गुप्ता
* जिस साहित्य से हमारी सुरुचि न जागे, आध्यात्मिक और मानसिक तृप्ति न मिले, हममें गति और शक्ति न पैदा हो, हमारा सौंदर्य प्रेम न जागृत हो, जो हममें संकल्प और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की सच्ची दृढ़ता न उत्पन्न करे, वह हमारे लिए बेकार है वह साहित्य कहलाने का अधिकारी नहीं है।
-प्रेमचंद
* आकाश में उड़ने वाले पंछी को भी अपने घर की याद आती है।
--प्रेमचंद
* किताबें समय के महासागर में जलदीप की तरह रास्ता दिखाती हैं।
-- अज्ञात
* देश कभी चोर उचक्कों की करतूतों से बरबाद नहीं होता बल्कि शरीफ़ लोगों की कायरता और निकम्मेपन से होता है।
--शिव खेड़ा
* बीस वर्ष की आयु में व्यक्ति का जो चेहरा रहता है, वह प्रकृति की देन है, तीस वर्ष की आयु का चेहरा जिंदगी के उतार-चढ़ाव की देन है लेकिन पचास वर्ष की आयु का चेहरा व्यक्ति की अपनी कमाई है।
--अष्टावक्र
* यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहनेवाले नहीं, मगर किनारे पर खड़े रहनेवाले कभी तैरना भी नहीं सीख पाते।
-- वल्लभ भाई पटेल
* ऐ अमलतास किसी को भी पता न चला तेरे कद का अंदाज जो आसमान था पर सिर झुका के रहता था, तेज़ धूप में भी मुसकुरा के रहता था।
--मधूलिका गुप्ता
* बेहतर ज़िंदगी का रास्ता बेहतर किताबों से होकर जाता है।
- शिल्पायन
* दस गरीब आदमी एक कंबल में आराम से सो सकते हैं, परंतु दो राजा एक ही राज्य में इकट्ठे नहीं रह सकते।
— मधूलिका गुप्ता
* राष्ट्र की एकता को अगर बनाकर रखा जा सकता है तो उसका माध्यम हिंदी ही हो सकती है।
- सुब्रह्मण्यम भारती
* मानव हृदय में घृणा, लोभ और द्वेष वह विषैली घास हैं जो प्रेम रूपी पौधे को नष्ट कर देती है।
-सत्य साईं बाबा
* बिखरना विनाश का पथ है तो सिमटना निर्माण का।
--कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर
* समझौता एक अच्छा छाता भले बन सकता है, लेकिन अच्छी छत नहीं।
--मधूलिका गुप्ता
* सज्जन पुरुष बादलों के समान देने के लिए ही कोई वस्तु ग्रहण करते हैं।
--कालिदास
* सतत परिश्रम, सुकर्म और निरंतर सावधानी से ही स्वतंत्रता का मूल्य चुकाया जा सकता है।
--मुक्ता
* दुख को दूर करने की एक ही अमोघ ओषधि है- मन से दुखों की चिंता न करना।
-- वेदव्यास
*

बिना ग्रंथ के ईश्वर मौन है, न्याय निद्रित है, विज्ञान स्तब्ध है और सभी वस्तुएँ पूर्ण अंधकार में हैं।
-- अज्ञात
*

पराजय से सत्याग्रही को निराशा नहीं होती बल्कि कार्यक्षमता और लगन बढ़ती है।
--महात्मा गांधी
*

अंग्रेज़ी माध्यम भारतीय शिक्षा में सबसे बड़ा विघ्न है। सभ्य संसार के किसी भी जन समुदाय की शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है।"
-- महामना मदनमोहन मालवीय
*

हँसमुख व्यक्ति वह फुहार है जिसके छींटे सबके मन को ठंडा करते हैं।
--अज्ञात
*

मुट्ठी भर संकल्पवान लोग जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं।
--महात्मा गांधी
*

रामायण समस्त मनुष्य जाति को अनिर्वचनीय सुख और शांति पहुँचाने का साधन है।
--मदनमोहन मालवीय
*

उजाला एक विश्वास है जो अँधेरे के किसी भी रूप के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजाने को तत्पर रहता है। ये हममें साहस और निडरता भरता है।
--डॉ. प्रेम जनमेजय
*

वही पुत्र हैं जो पितृ-भक्त है, वही पिता हैं जो ठीक से पालन करता हैं, वही मित्र है जिस पर विश्वास किया जा सके और वही देश है जहाँ जीविका हो।
-चाणक्य
*

हिंदी ही हिंदुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है। हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक ख़रीदें! मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी लेखकों को प्रोत्साहन देंगे?
--शास्त्री फ़िलिप
*

यह सच है कि कवि सौंदर्य को देखता है। जो केवल बाहरी सौंदर्य को देखता है वह कवि है, पर जो मनुष्य के मन के सौंदर्य का वर्णन करता है वह महाकवि है।
--रामनरेश त्रिपाठी
*

अत्याचार और अनाचार को सिर झुकाकर वे ही सहन करते हैं जिनमें नैतिकता और चरित्र का अभाव होता है।
--कमलापति त्रिपाठी
*

समय और बुद्धि बड़े से बड़े शोक को भी कम कर देते हैं।
--कहावत
* स्वयं प्रकाशित दीप भी प्रकाश के लिए तेल और बत्ती का जतन करता है, विकास के लिए निरंतर यत्न ही बुद्धिमान पुरुष के लक्षण है।

Sunday, October 10, 2010


खिलाड़ियों का संदेश

राष्ट्रमंडल में अब तक पदकों का अर्ध शतक लगाकर भारत के खिलाड़ियों ने यह दिखा दिया कि शेरा भले ही भ्रष्ट्राचार का शिकार हो गया हो लेकिन खिलाड़ियों का मनोबल कम नहीं हुआ । निःसंदेह अब भारतीय खिलाड़ियों पर उगली नहीं उठाई जा सकती । भारतीय खिलाड़ियों को विदेशी तो दोयम दर्जे का समझते ही रहे हैं । लेकिन भारतीय खेल मंत्रालय भी हर खेल स्पर्धा का खेल संघ बनाकर ठेकेदारी प्रथा शुरु कर दी और खेल संघ ने खिलाड़ियों के कैरियर की परवाह न कर अपनी दुकानदारी चलाना ही बेहतर समझी । हर खेल संघ में माफियागिरी अपना घर बना चुकी है । खिलाड़ियों ने दिखा दिया कि संसाधनों की मौजूदगी में खिलाड़ियों में पदक जीतने का जो जज़बा है वह काबिले तारीफ है । हमें नहीं भूलना चाहिये कि हॉकी खिलाड़ियों को हॉकी विश्वकप से पहले किस तरह अपने वेतन भत्तों के लिये अनशन करना पड़ा था और खिलाड़ी हॉकी विश्व कप में अपने राष्ट्रीय खेल में ही आठवें पायदान पर रही। यहां एक बात और ध्यान देने की है कि खिलाड़ी उन्हीं विधाओं में ज़्यादा पदक जीतते हैं जिसमें एकल या डबल स्पर्धा थी । कारण वही कि हॉकी जैसे मुकाबले जिसमें खिलाड़ियों और चयन समिति के अलावा खिलाड़ियों में आपसी एक जुटता की कमी घातक सिद्ध होती है । ठीक इसके विपरीत एकल या डबल स्पर्धा में खिलाड़ियों को अपना ध्यान गुटबाजी से अलग अपने खेल पर केंद्रित करने का मौका होता है । यह एक बड़ा संदेश है खिलाड़ियों के उपर संदेह करने वालों के लिये । हमारे देश में खिलाड़ियों से उम्मीदें तो बहुत की जाती हैं लेकिन सुविधाओं के नाम पर उनको आधार भूत जरुरतें भी नहीं दी जाती । खेल मंत्रालय कभी -कभी खिलाड़ियों को पहचानता तो है लेकिन खिलाड़ियों को निखारने वाले गुरु पीछे छूट जाते हैं । अभी हाल ही में गुरु द्रोणाचार्य के सम्मान से सम्मानित पहलवान सुशील कुमार के गुरु सतपाल को खेल मंत्री ने दूर हटो कह कर सुशील कुमार के सामने ही निराश किया था इसके पहले बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल के गुरु पुलेला गोपी चंद को भी खेल मंत्री एमएस गिल ने पहचानने से ही इनकार कर दिया था । यह महज संयोग नहीं बल्कि यह हक़ीक़त है । खेल मंत्रालय खिलाड़ियों को और उनके गुरुओं को अनमोल रत्न नहीं मानता बल्कि खुद राजा की तरह बनकर खिलाड़ियों और प्रशिक्षकों के सामने पेश आता है । यह धारणा हमें बदलनी होगी हमें खिलाड़ियों और उनके गुरुओं को ही पदक का असली हकदार मानना होगा । उम्मीद है कि खेल मंत्रालय अब खिलाड़ियों और उनके गुरुओं पर संदेह न कर प्रोत्साहित करेंगे ताकि भविष्य में होने वाले किसी भी मुकाबले में पदक तालिका में भारत की तस्वीर अच्छी हो।

Reader Comments
Allow
Don't allow
Post date and time

महिलाओं का दबदबा

महिलाओं का दबदबा
राष्ट्रमंडल खेल में जिस मुकाबले की उम्मीद पुरुषों से की जा रही थी महिलाएं उससे भी आगे निकलती जा रहीं हैं । निशानेबाजी से लेकर भारोतोल्लक और पुरुष का खेल माना जा रहे कुस्ती में भी महिलाओं ने हैरत अंगेज प्रदर्शन कर सबको चौका दिया । महिलाओं के हैसले का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि केवल कुस्ती में 3 गोल्ड महिलाओं ने ही जीते हैं । पांचवे दिन राष्ट्रमंडल में पूरा खेल महिलाओं के ही नाम रहा । सानिया मिर्जा का जहां फाइनल में पहुंचने से मेडल मिलना तय है वहीं महिला कुस्ती 67 किलो में अनीता ने गोल्ड जीता । 59 किलो फ्री स्टाईल कुस्ती में अलका तोमर ने भी सोना ही जीता, 25 मीचर एयर पिस्टल में गोल्ड और सिल्वर दोनों ही भारत की महिलाओं के नाम ही रहा। पहले स्थान पर अनीसा सय्यद रहीं पर दूसरे स्थान पर कब्जा किया राही सरनोबत ने । भारोतोल्लन में भी भारत का खाता सबसे पहले सोनिया चानू के सिल्वर मेडल से ही खुला था । संध्या रानी ने 48 किलो वर्ग में ब्रांज मेडल जीता निशानेबाजी में भारत को महिला निशानेबाजों से कभी भी उतनी उम्मीद नहीं थी जितनी इन महिला खिलाड़ियों ने कर दिखाया । तेजस्विनी सावंत और लज्जा गोस्वामी ने भारत को 50 मीटर डबल मुकाबले में सिल्वर मेडल जीता । महिला पहलवानों में गीता ने भारत को 55 किलो वर्ग में गोल्ड दिला कर दिखा दिया कि महिलाओं के हौसले कम नहीं है बल्कि सुविधाएं और प्रोत्साहन मिले तो देश की ये युवा महिलाएं उभरते भारत की उपलब्धियों को चार चांद लगा सकती है । (09-10-2010 अमर भारती के अंक में प्रकाशित)

Friday, August 27, 2010

कौन झूठा कौन सच्चा

आज जब न्यायपालिका के फैसले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देना चाहता या कहे कि किसी को यह अधिकार ही नहीं है कि वह न्यायालय के फैसलों उपर अगुली उठाये लेकिन रोहित शेखर बनाम पूर्व राज्यपाल नारायण दत्त तिवारी के मामले में जिसमें रोहित नारायण दत्त को अपना पिता बता रहा है और वो भी ऐसे समय में जब दोनों आमने सामने है लेकिन रोहित अपने आप को साबित करने के लिये दर-दर भटक रहा है । रोहित की मां उज्ज्वला शर्मा कांग्रेसी नेता है और नारायण दत्त तिवारी के साथ उनकी दोस्ती रही है । रोहित नारायण दत्त तिवारी को अपना पिता बताते रहे है । यह मामला नया नहीं है जब नरायण दत्त तिवारी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे उस समय से ही यह मामला उठता रहा है लेकिन एक तरफ राजनेता हैं तो दूसरी तरफ एक युवा जो अपने को यह साबित करने की कोशिश में है उसके पिता कौन हैं। हमारे देश में यह अपने आप में यह पहला मामला है जब एक पुत्र अपने पिता के डीएनए टेस्ट के लिये कोर्ट से गुहार लगा रहा है और कोर्ट से भी उसे कोई न्याय मिलता नहीं दिख रहा । हाई कोर्ट ने एक बार तो रोहित की अर्जी को खारिज़ भी कर दिया था लेकिन अब मामला सुप्रीम कोर्ट में है और हो सकता है नारायण दत्त तिवारी को डीएनए टेस्ट कराने पर बाध्य होना ही पड़े । अभी तो अदालत ने 84 वर्षीय तिवारी को 75 हज़ार का जुर्माना लगाया है, जो रकम रोहित को दी जायेगी, सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश के साथ 21 सितंबर को फिर तारीख दे दी है, लेकिन यह एक ऐसा मामला है जिसे हल करना बेहद आसान है । रोहित की मांग को किसी भी लिहाज से गलत नहीं करार दिया जा सकता । रोहत का दावा है कि तिवारी रोहित के जैविक पिता है । अगर हक़ीक़त को जनना है तो डीएनए टेस्ट ही एक मात्र विकल्प है जो गलत नहीं हो सकता लिहाजा टेस्ट किया जाना चाहिये था लेकिन एनडी तिवारी का टेस्ट आज तक नहीं हो पाया । अगर तिवारी जी स्वर्गवासी हो जाते है तो फिर यह तय कौन करेगा कि क्या हक़ीक़त थी । 84 साल के नारायण दत्त तिवारी इस पूरे मामले के असली सबूत है लिहाजा डीएनए टेस्ट जल्द हो और यह साफ होना चाहिये कि कौन झूठा कौन सच्चा । डीएनए टेस्ट से इनकार करना नारायण दत्त तिवारी के उपर अंगुलिया ही उठायेगा। बेहतर होता नारायण दत्त तिवारी सच्चाई को स्वीकार करते और जो भी सच है वह सामने आता ।

राजधानी में डेंगू

राजधानी में डेंगू
दिल्ली में यमुना नदी का पानी जितनी तेजी से बढ़ रहा है उससे तेज दिल्ली में रहने वाले लोगों की परेशानिया बढ़ रही है ।
दिल्ली की सड़कों पर 3 घंटे की बारिश में ही पानी जमा हो जाता है और कहीं कहीं तो नाव भी चलने लगी है । पिछले 10 दिन से दिल्ली निवासियों को जल जमाव, वारिश और जाम इन तीन समस्याओं से जूझना पड़ रहा है । दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पहले तो वारिश की परेशानियों को मानने को तैयार ही नहीं थी लेकिन जब सड़कों पर नाव भी दौड़ने लगी तो शीला ने भी मान ही लिया कहीं न कहीं लापरवाहियां हुई है । इसे ठीक करने की कोशिश की जायेगी । पिछले 12 साल से दिल्ली में शीला सरकार को बारह बारिशों के मौसम से दो चार होना पड़ा होगा और हर बार बारिश में यही दिक्कतें देश की राजधानी के सामने होती है । दिल्ली में जल जमाव से होने वाली दिक्कतें केवल दिल्ली वासियों को ही नहीं बल्कि विदेशी पर्यटक मेहमानों को भी इससे दो चार होना पड़ता है । ऐसा नहीं है कि यह पहली बार है और मुख्यमंत्री अपनी जिम्मेदारियों का ठीकरा दूसरों के उपर फोड़ कर सफाई दे देंगी। हर साल होने वाले जल जमाव से निपटने के कोई प्रबंध नहीं किये गये । इतना ही नहीं दिल्ली में हर साल सैकड़ों लोंग बारिश में जल जमाव से पैदा होने वाले मच्छरों से फैलने वाले डेंगू से मर जाते है जिसका न तो कोई सरकार के पास सही आंकड़ा है न ही सरकार ने कोई उपाय किये जिससे राजधानी दिल्ली में डेंगू से निपटा जा सके । आज भी बारिश से उतना डर लोगों को नहीं है जितना बारिश से जमा होने वाले पानी से फैलने वाले डेंगू से । दिल्ली सरकार का स्वास्थ्य अमला भले ही हर साल करोंड़ों रुपये डेंगू की रोकथाम के नाम पर खर्च कर देता हो लेकिन डेंगू न फैलने के इंतजामों में हमेशा कोताही बरती जाती रही है । न तो पानी के जल जमाव न होने का उचित बंदोबस्त किया गया और न ही नालियों की साफ सफाई पर ही ध्यान दिया जाता रहा, कुल मिलाकर जो समस्या 10 साल पहले थी वह आज भी है और राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों को लेकर हो रहे निर्माण कार्य के कारण खुदायी से जल जमाव से यह समस्या और बढ़ी ही है । दिल्ली नगर निगम के मेयर पृथ्वीराज साहनी तो बारिश से हो रही समस्या को दिल्ली सरकार के ही सिर फोड़ते हुये इसे समस्या से निपटना भगवान भरोसे बताया है । कुल मिलाकर देश की राजधानी दिल्ली का यह हाल है तो फिर दूर-दराज के इलाकों में विकास का क्या हाल होगा । दिल्ली में डेंगू, जल जमाव और लोगों की परेशानियां दिल्ली ही नहीं केंद्र सरकार की ग्रामीण नीतियों की भी पोल खोलती है ।

कहां गये बारुद से लदे ट्रक ?

देश में हथियार बारुद और सेना के उपकरण कितने महफूज है और इनकी निगरानी किस तरह की जाती है इसकी पोल खोलने के लिये राजस्थान के धौलपुर से मध्यप्रदेश के लिये चले विस्फोटकों से लदे 164 ट्रक का गायब होना ही काफी है । डेढ़ महीने पहले चले इन ट्रकों में पुलिस के मुताबिक कुल 848 मीट्रिक टन विस्फोटक है और लाखों की संख्या में डेटोनेटर । पहले तो इनकी संख्या को लेकर ही सही आंकड़ा नहीं लगाया जा सका और यह संख्या 61 बतायी गयी लेकिन अब तफतीश करने पर यह पता चल रहा है कि गायब ट्रकों की यह संख्या 164 है । पुलिस खोज- बीन के बाद भी कोई सुराग नहीं लगा सकी है । 164 ट्रकों का विस्फोटकों के साथ गायब हो जाना यह बताता है कि हमारा सुरक्षा तंत्र किस तरह हमारी हिफाजत कर सकता है । हमारा खुफिया तंत्र कितना चौकस है और हम कितने महफूज । छोटे पैमाने पर विस्फोटकों की खेप बरामद होने पर पुलिस वाहवाही लूटने पहुंच जाती है, मीडिया को बुलाकर फोटो खिचवाई जाती है और पूरा पुलिस महकमा पुरस्कार देने और लेने की दौड़ में शामिल हो जाता है । लेकिन इतने बड़े पैमाने पर लापरवाही के बाद भी किसी विभाग को कोई ख़बर न हो यह कैसे हो सकता है । सैकड़ों मीट्रिक टन विस्फोटक और लाखों की संख्या में डेटोनेटरों का लापता होना न केवल पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाते है बल्कि देश की सुरक्षा के लिये बड़ा खतरा भी बन सकते है । गृहमंत्रालय की निगरानी में बाकायदा लाइसेंसिग प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही ऐसे सौदों को रवाना किया जाता है तथा पूरी तरह सावधानी और गोपनीयता भी बरकार रखी जाती है ऐसे में यह वाकया अपने आप में सुरक्षा तंत्र और षणयंत्रकारी तत्वों की मिली भगत की ओर ही इशारा करता है । ट्रक नंबरों और ट्रक मालिकों से भी कोई जानकारी अभी नहीं मिल सकी है । मई जून महीने में 61 ट्रक रवाना किये गये और इसके बाद 103 ट्रक की रवानगी की गयी, कुल मिलाकर 164 ट्रकों का न मिलना यह भी सवाल उठाते है कि एक महीने तक यह संख्या ही तय नहीं हो पा रही थी कि आखिर में गायब संख्या कितनी है । यानी इस पूरे विस्फोटकों के ट्रांस्पोर्टेशन में किसी माफिया का ही हाथ है । यह भी हो सकता है कि ये हथियार आतंकवादियों या नक्सलियों के हाथ लग गये हो जो एक बड़ा खतरा हो सकता है । सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में भी दो महीने बाद भी विस्फोटकों से लदे 164 ट्रकों का न मिलना हमारे देश की चौकस सुरक्षा इंतजामों के पोल ही खोलता है । ( अमर भारती दैनिक संपादकीय 28 अगस्त 2010)

"नकलची न्यायमूर्ति"


हैदराबाद हाई कोर्ट ने आंध्र प्रदेश के पांच जजों को निलंबित कर दिया है । जजों को यह सजा नकल करने के जुर्म में दी गयी है । वारंगल जिले के पांच जजों को कानून की स्नातकोत्तर परीक्षा के दौरान नकल करते पकड़ा गया । कुल आठ नकलची पकड़े गये थे जिनमें वारंगल के सीनियर जिला जज हनुमंतराव, बापतला के सीनियर सिविल जज निवास चारी ,रंगारेड्डी ज़िले के सेकेंड सिविल जज विज्येंद्र रेड्डी,सीनियर सिविल जज अजीत सिंह राव और अनंतपुर के सिविल जज एम कृष्णप्पा शामिल है बाकी 3 कोर्ट के ही कर्मचारी है जिन्हें परीक्षा के दौरान नकल करते पकड़ा गया । यह परीक्षा वारंगल ज़िलें में काकातियां विश्वविद्यालय के ऑर्टस कालेज में चल रही थी। देश के इतिहास में यह पहला मौका है जब जजों को रंगे हाथ पकड़ा गया हो। हमारे देश में नौकरशाही और नेतानगरी तो भ्रष्टचार में डूबी ही है न्यायपालिका पर भी आरोप लगते रहे है कि जज बिकते है और न्याय खरीदा जाता है । पूर्व मुख्य न्यायाधीश के.जी.बालाकृष्णन ने भी इस बात को माना था कि न्यायपालिका में अब भ्रष्टाचार की बू आने लगी है लेकिन उन्होंने यह कहा था कि यह जिला अदालतों में ही अधिक है । लेकिन यहां तो वरिष्ठ जज ही नकल कर रहे है तो फिर न्याय के मामले में वो कहा तक पारदर्शिता बरतते होंगे। जब जज ही जुर्म कर रहे है तो फिर न्यायपालिका और न्यायाधीशों पर विश्वास कैसे किया जा सकता है । लोकतंत्र का सबसे मजबूत खंभा आज भ्रष्टाचार के किस दलदल में डूबा है यह बताने के लिये यह वाक्या काफी है । जब जज नकल कर रहे है तो फिर समाज और देश के सामने ऐसे न्यायधीश क्या आदर्श प्रस्तुत कर पायेंगे। जजों का यह रवैया उनकी योग्यता और पद पर भी सवाल खड़ा करता है । जो खुद ही नकल करते पकड़े जा रहे है वो अहम मुक्दमों में कैसे फैसले लेते होंगे। यह गिरते न्यायाधीशों के चरित्र का नमूना है। कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पी.डी दिनाकरण के उपर भ्रष्टाचार के कई आरोप भी लगे यहां तक की उनको महाभियोग की कार्रवाई का समना भी करना पड़ा लेकिन बाद में मुख्य न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट एच.एस कपाड़िया ने राष्ट्रपति प्रतिभा सिंह पाटिल से परामर्श कर दिनाकरण को सिक्किम हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया । ऐसे कई नाम है जो न्याय व्यवस्था से जुड़े लोग है जो न्यायपालिका को बदनाम करते रहे है । सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता आर.के. आनंद को संजीव नंदा केस में पैसा लेते हुये स्टिंग ऑपरेशन भी हुआ आनंद दोषी भी पायेगये । लेकिन क्या न्याय के बिक्रेताओं पर लगाम लगी। हमेशा स्थानीय अदलतों में ही भ्रष्टाचार का आरोप लगाया जाता है जब की इसकी जड़े गहरी है और जो नकल और अकल का हर काम करते है हमारी न्यायपालिका के गिरते स्तर का यह एक छोटा उदाहरण है हक़ीक़त इससे भी भयावह है । (अमर भारती दैनिक में 28 अगस्त 2010 को प्रकाशित )

Thursday, August 5, 2010

अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार की घातक मांग।

अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार की घातक मांग।

पूर्व मुख्य न्यायाधीश और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष केजी बाला कृष्णन के फांसी की सज़ा पर व्यक्तिगत टिपप्ड़ी से अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार महकमें में खलबली मचीं है । के.जी बालाकृष्णन ने डेथ पेनाल्टी को वर्तमान परिद्रश्य के मुताबिक सही ठहराया था और यह भी कहा था कि अपराध रोकने में फांसी की सजा का योगदान है । ह्युमन राइट्स लॉ नेटवर्क (एचआरएलएन) के संस्थापक ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट के इस वक्तव्य पर खेद प्रकट करते हुए कहा है कि जब दुनियां भर में मानवाधिकार की मुहिम का एक मुख्य मुद्दा डेथ पेनाल्टी को ख़त्म करना है। ऐसे में भारतीय मानवाधिकार आयोग के मुखिया का यह कथन हैरान कर देने वाला है । मानवाधिकार आयोग और मानवाधिकार की खुले दिल से पैरवी करने वाले सदष्यों को यह सोचना होगा कि अभी तक के इतिहास में कितने लोगों को फांसी की सज़ा से समाज को ख़मियाजा उठाना पड़ा है । मानवाधिकार मानव के अधिकारों की रक्षा करता है लेकिन जहां समाज के लिये ख़तरे की आशंका हो यानी कई मानव के अधिकारों पर चोट पहुंचाने की साजिश हो वहां पर अपराधी को फांसी क्यों नहीं दी जा सकती । मानवाधिकार संगठनों को यह नहीं भूलना चाहिये कि भारत में फांसी दिये जाने की दर बहुत कम है इसका भारत ख़ामियाजा भी भुगतना पड़ा है । अगर आतंकवादियों को फांसी दे दी गयी होती तो 1999 में कांधार विमान अपहरण और 20 साल पहले मुफ़्ती मुहम्मद सईद की बेटी रुबिया सईद के अपहरण की दास्तान न रची गयी होती और जिसके बदले आतंकवादियो की रिहाई न होती । कांधार विमान अपहरण कांड में रुपेन कत्याल समेत आधा दर्जन निर्दोष लोगों की हत्याये आतंकवादियों ने की थी, इसके बाद भारतीय ज़ेलों में बंद आतंकी सरगनाओं को छोड़ने पर भारत को मजबूर होना पड़ा । क्या मानवाधिकर आयोग इन सब घटनाओं पर गौर करेगा ।जिसका ख़ामियाजा भारत आज भी उठा रहा है । फांसी का अपना खौफ़ आज भी है । जिसे नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता । मानवाधिकार की दलील है कि डेथ पेनाल्टी को आजीवन कारावास में बदला जाये लेकिन इसकी क्या गारंटी है कि आजीवन कारावास की सजा काटने के बाद अपराधी में सुधार आयेगा ही और अपराधी अपराध की दुनियां में तेजी से पदार्पण नहीं करेगा, समाज में वापसी के बाद वह अपराध नहीं करेगा और समाज के लिये ख़तरा नहीं होगा । कई ऐसे अपराधी है जो जमानत पर बाहर आते ही आतंक का नया रुप ले लेते है और पुलिस की पकड़ से बाहर हो जाते है । क्या इसका कोई कारगर उपाय मानवाधिकार आयोग के पास है । हमारी न्यायिक प्रक्रिया काफी धीमी है कई मामलों में आरोप सिद्ध होने और दोष साबित होने में इतना वक्त लग जाता है कि दोषी अपनी सजा का एक बड़ा हिस्सा जेल में पहले ही काट चुका होता है । ऐसे में अगर दोषी को हर मामले में आजीवन कारावास की सज़ा देने का नियम बन जायेगा तो कई दोषी सजा मिलने के तुरंत बाद ही जेल की सलाखों के बाहर होगें और समाज में अपराध की दुनिया बनायेंगे। क्या कभी मानवाधिकार की दलील देने वालों ने इसकी फिक्र की । तब यह भी होगा कि अपराधी अपराध करने से पहले ही अपनी आजीवन कारावास के बाद की ज़िंदगी का पूरा खाका तैयार कर लेगा और धड़ल्ले से अपराध करेगा, इससे अपराध की बाढ़ आ जायेगी और देश के सामने संकट पैदा होगा । अभी हमारे देश में कई ऐसे अपराधी ज़ेलों में बंद हैं जिनकी फांसी होनी है लेकिन फाईल प्रदेश सरकार से लेकर महामहिम राष्ट्रपति के पास ही अटकी है । आमिर अजमल कसाब और अफ़जल गुरु देश के लिये कितने ख़तरनाक है इसकी परवाह मानवाधिकार अयोग को शायद नहीं है । अगर होती तो ऐसी मांग न उठती ।
मानवाधिकार के पैरोकारों को देश समाज और आम आदमी को सुरक्षित रखने के लिये डेथ पेनाल्टी को खत्म करने की मांग नहीं बल्कि प्रक्रिया को तेज करने की मांग करनी चाहिये नहीं तो एक और कांधार और मुफ़्ती मुहम्मद सईद की बेटी रुबिया सईद की कहानी को दोहराते देर नहीं लगेगा । मानवाधिकार उनकी रक्षा के लिये होते है जो मानवता के अर्थ को समझते हो न कि उनके लिये जो मानवता को नष्ट करना चाहते है । मानवाधिकार आयोग और न्यायपालिका को मिलकर समाज को अपराध मुक्त बनाना है न कि अपराध को जिंदा रख कर कई अपराध पैदा करने की। राष्ट्रीय मानवाधिकार के अध्यक्ष के.जी बालाकृष्णन के कथन पर बखेड़ा खड़ा करने की जरुरत नहीं अक्षरसः पालन करने की जरुरत है । हमे नहीं भूलना चाहिये कि हमारा क़ानून अभी भी दुर्लभत्म मामलों में ही फांसी की सज़ा देता है । ऐसे में फांसी की सज़ा ख़त्म होने से हर हाल में अपराध बढ़ेगा ही ।

अखिलेश पाठक
पत्रकार
अमर भारती (दैनिक हिंदी समाचार पत्र में प्रकाशित)
दिल्ली
Mail. ID. akhileshnews@gmail.com