Saturday, December 18, 2010

क्या भारत को चाहिए एक और गांधी ?

63वीं पुण्य तिथि पर बापू जी को नमन


मोहनदास करमचन्द गांधी यानी महात्मा गांधी के सत्य, अहिंसा और सादगी के दर्शन को आदर्श मानने वालों की भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में बड़ी तादाद है । लेकिन गांधी जहां पैदा हुए और जहां से देश दुनिया को संदेश दिया वहीं पर आज गांधी सिर्फ़ पोस्टर और स्टैट्यू बनकर रह गये हैं  ?

आज गांधी की ६३ वीं पुण्यतिथि पर उनकी समाधि पर नेताओं और मंत्रियों का हुजूम उनके जयंती पर फोटो खिचवाने के लिये इकट्ठा होता है। प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक चंद मिन्टों के लिये उन्हें याद करते हैं लेकिन यह स्वार्थ के तराजू पर किस तरह तौला जाता है इसे आप हम सभी जानते होंगे । इस बार भी कमोबेस गांधी जी की पुण्य तिथि पर यही देखने को मिला । सभी उनकी समाधि पर जूटे थे लेकिन उनका आदर्श कहीं भी दिखाई नहीं दे रहा था। हर कोई महंगी गाड़ियों से सज-धज कर आया था ऐसा लगा कि मानों किसी नेता जी के लाडले की शादी हो ।

  अब आते हैं उनकी जयंती पर 2 अक्टूबर को उनकी जयंती बड़े ही नाटकीय ढंग से मनाई जाती है । मानों गांधी हमारे बीच ही विराजमान हो । यह सही भी है गांधी जी होते तो हैं लेकिन हमारी जेबों में गुलाम बन कर न कि हमारे प्रेरणा श्रोत। 2 अक्टूबर से लेकर 3 महीने तक गांधी जयंती के उपल्क्षय में खादी ग्रामोंद्योग संस्थान भारी छूट भी देता है । मतलब यह है कि गांधी के नाम से सामान भी बिकता है लेकिन गांधी का दर्शन नहीं। गांधी जयंती पर गांधी की प्रतिमा पर फूल मालाएं तो चढ़ाई जातीं हैं लेकिन इसमें भी स्वार्थ होता है । गांधी बिकते हैं, गांधी की तस्वीरें बिकतीं है, उनके चश्में भी बिकते है, लेकिन उनका आदर्श नहीं बिकता ।

        वैसे तो गांधी की तस्वीर जब से पैसों पर छपी उसके पहले से ही गांधी के बिकने का और गांधी को खरीदने का सिलसिला शुरु हो गया था । जवाहरलाल नेहरु ने आज़ादी के पहले ही जान लिया था कि देश में सत्ता की बागडोर पाने के लिये गांधी को अपना बनाना होगा । यही नहीं जवाहरलाल ने तो अपनी बेटी का नाम भी इंदिरा गांधी रखा । ताकी गांधी के नाम का फायदा लिया जा सके । बड़ा सवाल यह है कि क्या आज हमें एक और गांधी की जरूरत आ पड़ी है  ।

जब देश में लोकतंत्र और तानाशाही में कोई अंतर न रह गया हो और कोर्ट से लेकर जांच एजेंसिया गांधी छाप नोट ही हमेशा देखती हों, और गांधी को नहीं बल्कि गांधी छाप नोट की ही ख्वाहिश रखती हों तो ऐसे में सवाल यह है कि क्या गांधी आज की जरुरत बन चुके हैं। जो गांधी छाप नोटों की भूख को कम कर सकें । हमें आप के विचार चाहिए आप गांधी के बारे में क्या सोचते है । क्या आज भारत को एक और गांधी की जरुरत है ???
आप कमेंट जरूर की जिएगा हमें आपकी भावनायुक्त शब्दों का इंतजार रहेगा । 


आप हमें अपने चिंतनशील विचारों से जरूर अवगत कराएं। आप लेख भी भेज सकते है  । आपके विचारों को हम राष्ट्रीय अमर भारती दैनिक में प्रमुखता से प्रकाशित भी करेंगे। आप ईमेल भी कर सकते हैं।
हमारा ईमेल आईडी है: akhileshnews@gmail.com
हमारी वेबसाइट है www.amarbharti.com
अखिलेश कृष्ण मोहन 
लेखक अमर भारती दैनिक के उपसंपादक/संवाददाता हैं।


गैर जिम्मेदार राहुल

गांधी जी को याद करो राहुल

विकिलीक्स के ताजा खुलासे ने भारत की राजनीति में तूफान ला दिया है।
राहुल गांधी के गैर जिम्मेदराना बयानों ने पहले भी खूब सुर्खियां बटोरी
थीं लेकिन इस बार राहुल की हिंदू संगठनों पर टिप्पणी कांग्रेस और राहुल
की निम्न सोच को प्रतिबम्बित कर रही है । खुलासे के मुताबिक राहुल गांधी अपने संसदीय क्षेत्र

Monday, December 13, 2010

भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा



जब सीवीसी के मुखिया और सुप्रीम कोर्ट के जज ही भ्रष्ट हैं जिन पर भ्रष्टाचारियों पर निगरानी रखने की जिम्मेदारी है तो फिर सही जांच और सिस्टम में व्यापत विसंगतियों को दूर होने की उम्मीद कैसे की जाये। राष्ट्रमंडल खेल में हो चुके घोटाले और आदर्श घोटाले जैसे मामलों की जांच का जिम्मा भी सीवीसी के ऊपर है । लेकिन थॉमस के काले कारनामों से यह तय है कि जिस जांच में सही तथ्य सामने आने थे वह नहीं आयेंगे ।

इसके पहले वरिष्ठ अधिवक्ता व कानून मंत्री शांतिभूषण ने भी अपने बयानों से यह खुलासा कर सबको चौंका दिया था कि सुप्रीम कोर्ट के 16 मुख्य न्यायाधीशों में से 6 निश्चित रुप से रिश्वतखोर थे । उनके इस कथन पर उन पर केश भी चल रहा है । कानून मंत्री अगर ऐसा कहते हैं तो यह निश्चित रुप गंभीर मामला है । इस गंभीरता का असर यह हुआ कि शांतिभूषण के ऊपर ही कोर्ट के ऊपर टिप्पणी करने के आरोप में मुकदमा हो गया । शांतिभूषण मोरार जी देसाई सरकार में कानून मंत्री थे । शांतिभूषण ने जो सवाल उठाया उसे कोई दूसरा उठा भी नहीं सकता था । उठाता भी तो उस पर विश्वास शायद ही लोग करते। लेकिन उनके इस दावे के बाद जो हुआ उसकी भी उम्मीद नहीं थी । जिस कोर्ट के फैसले पर देश का लोकतंत्र टिका है उसी संस्था से यह बदबू आ रही है ।

बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद की हाई कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति और हाईकोर्ट से जुडे उनके सगे संबंधियों पर सवाल उठाया था । सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट से बदबू आ रही है । लेकिन सुप्रीमकोर्ट को अपने कनिष्ठ न्यायालयों की गिरती गरिमा पर टिप्पणी करने से पहले खुद को सुधारना होगा, खुद के काम-काज में पारदर्शिता लानी होगी और पहले खुद ईमानदार बनना होगा । न्याय को बिकने से बचाने के लिए आंदोलन करने होंगे । किसी एक संस्था की हालत यह नहीं है । लेकिन न्यायपालिका का काम सभी पर निगरानी रखना है ऐसे में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि न्याय तंत्र में सबसे पहले सुधार हो । यह भी कम चिंता जनक नहीं है कि जब संस्था के मुखिया ही भ्रष्टाचार में गोते लगा रहे हैं तो फिर बाकी कनिष्ठों को शिष्टाचार का पाठ कैसे पढ़ापायेंगे। दूसरों को शिष्टाचार की शिक्षा देने से पहले खुद आदर्श नमूना पेश करना होगा । लेकिन जो हालात दिखाई दे रहें हैं उससे लगता नहीं कि भ्रष्टाचार में डूबने की परंपरा बंद होगी और इसकी नई पौध तैयार नहीं होगी । एक भ्रष्टाचारी को बचाने के लिए दूसरा रिश्वत लेने को तैयार है तो फिर यह उम्मीद कैसे करें कि जल्द ही यह सिलसिला खत्म होगा ।

ऊपरी दर्जें के नेता, मंत्री और नौकरशाह जब मिलकर लूट खसोट की मुहिम चला रहे हों तो हम निचले स्तर पर इमानदार कर्मचारी की उम्मीद कैसे कर सकते हैं । सीवीसी के मुखिया थॉमस और सुप्रीम कोर्ट के जजों पर लग रहें दाग को हटा पाना मुश्किल है । यह भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा है जिसकी दवाई खोजनी ही होगी नहीं तो यह रोग कब कैंसर बन जायेगा कहा नहीं जा सकता ।

खोखला लोकतंत्र



उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने कुछ दिनों पहले ही एक खुलासा किया था कि साल 2004 के लोकसभा चुनाव के पहले कांग्रेस ने उन्हें ब्लैकमेल करने की कोशिश की थी । कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव मिल कर लड़ने के बदले ताज क्वारीडोर व आय से अधिक संपति मामलों में बचाने का लालच दिया था । लेकिन मैने ठुकरा दिया ।

मायावती का यह खुलासा भले ही अखबारी शुर्खियां बन कर रह गया हो लेकिन हमारी राजनीति, जांच प्रणाली और न्यायपालिका को किस तरह प्रभावित हो रही है यह उसी का एक कड़वा सच है । यह वह सच है जो सामने आ गया वो भी 6 साल बाद । सवाल यह है कि ऐसे बयानों को गंभीरता से क्यों नहीं लिया जाता । क्या ये मुद्दे जनहित में नहीं हैं । क्या इनसे आम आदमी का सरोकार नहीं है या ऐसे मामलों की जांच के लिये हमारे पास कोई प्रणाली है ही नहीं । सवाल यह भी है कि मायावती ने यह खुलासा 6 साल बाद क्यों किया ।

6 साल के बाद यह खुलासा दिखाता है कि यह भी किसी बड़ी साजिश के चलते ही किया गया होगा । निश्चित रुप से अगर जांच हो तो न तो मायावती और न ही कांग्रेस का कोई दलाल तैयार होगा यह स्वीकारने के लिये कि ऐसा कभी हुआ था । यानी ऐ सब बयान हवा में ही दिये जाते हैं और हवा में ही गुम हो जाते हैं । आरोप गंभीर होते हैं लेकिन जांच कभी भी नहीं होती । इसका देश व समाज पर गंभीर असर पड़ता है । आम आदमी की यही धारणा बनती जा रही है कि नेता और मंत्री कानून को अपनी जेब़ में रखते हैं । ऐसा होता भी है तो क्या इसका प्रचार करना जरुरी है ।

ऐसे आरोप प्रत्यारोप कई बार लगते रहते है लेकिन इन पर न तो कार्रवाई होती है न ही लगाम लग पा रही है । आज कल सपा से निकले अमर सिंह मुलायम को जेल भेजने की बात कह कर मुलायम को ब्लैकमेल करने की कोशिश में हैं । उनका कहना है कि अगर खुलासे हुए तो मुलायम जेल जायेंगे । इसके क्या मलतब निकाले जायें अमर या तो मुलायम को जेल जाने से बचा रहे हैं या झूठ बोल रहे हैं। ये वो नेता है जिनकी राजनीति में कभी गहरी पैठ थी । इनके शतरंजी चाल से केंद्र में सरकार बहुमत साबित करती थी । बाजपेयी की सरकार कभी गिरा दी तो कभी मनमोहन के खेवन हार बने। कभी खुद दलाली की तो आरोप दूसरों पर लगा दिया और बच दोनों गये ।

राजनीति में अब न्यापालिका और जांच एजेंसियों का दुरुपयोग आम हो चुका है । सभी नेताओं का एक ही मकसद है । सत्ता में बने रहना। क्या ऐसे गंभीर आरोपों की जांच-पड़ताल और उस पर लगाम लगाने की क्षमता वाली कोई एजेंसी है । ये केवल नमूने मात्र हैं ऐसे न जाने कितने आरोप-प्रत्यारोप है जिनकी प्राथमिकी दर्ज कराने वाला कोई नहीं । या पुलिस भी प्रथमिकी दर्ज नहीं करेगी । सत्ता इन नेताओं की जागीर बन चुकी है और लोकतंत्र एक नाटक मंच। क्या हम इस सत्ता के यथार्थ को बदल पायेंगे जो हमारी सोच को, हमारे विचार को खोखला कर रही है और देश की नई पौध इन नेताओं की नकल कर रही है ।

शोहरत का अश्लील धंधा ?

याना गुप्ता की वह तस्वीर जिसने की करोड़ों की कमाई

अश्लील शब्द को बोलना कभी अक्षम्य माना जाता था और शालीनता हर व्यापार की कुंजी हुआ करती थी । लेकिन अब अश्लीलता खुद तो व्यापार है ही साथ ही साथ हर धंधे को तेजी से फलने फूलने का मौका भी दे रही है । फ़ैशन भी इस नकारात्मक बदलाव का अहम हिस्सा बनता जा रहा है लेकिन सबसे अहम जो है वह है कि हम चाहते क्या हैं ?

बीते दिनों अभिनेत्री याना गुप्ता की एक तस्वीर सुर्खियों में आ गयी। जिसमें था कुछ भी नहीं लेकिन कहने को अश्लीलता थी । या कहें कि अब अश्लीलता एक दिमागी बीमारी भी होती जा रही है । हम ऐसा इस लिये कह रहें है कि हमारे तमाम साधु संत, जैन बंधु नंगे विचरण करते है लेकिन वो अश्लील नहीं लगते बल्कि पूजे जाते हैं । यानी कि अश्लीलता देखने वालों की आँखों में होती है । वही हाल यहां था उस तस्वीर में क्या है इससे मतलब नहीं है मतलब है कि आप देखना क्या चाहते हैं।

याना गुप्ता की अंत:वस्त्र विहीन यानी शुद्ध अंग्रेज़ी में कहें तो (panti less image) एक तस्वीर का हंगामा रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है । यहां तक कि एक विदेशी पत्रिका ने उस तस्वीर को करोड़ों में खरीदने की कोशिश की है और ऐसी तस्वीरें उससे करारा करने के बाद खिंचवाने पर मोटी कामाई का भरोसा भी दिया है।  यानी याना की बल्ले-बल्ले । एक कथित रुप से अश्लील तस्वीर किस तरह कमाई का जरिया बन जाती है वो भी करोड़ों की यह अपने आप में बदलाव का ही संकेत नहीं है तो फिर क्या है । यह  लोगों की नंगी सोच को ही दर्शाता है । नंगी देह हो या न हो लेकिन आंखों में तस्वीर नंगी बनने लगती है । यह भी दिखाता है कि अब अश्लीलता व्यापार का अहम हिस्सा हो चुकी है । इसे व्यापार से अलग कर पाना आसान नहीं होगा । यही नहीं वयस्कों के लिए किताबें छापने वाले पब्लिकेशन और वेबसाइटों ने याना से कुछ ऐसी ही तस्वीरें खिंचवाने की मांग कर रहे हैं | मतलब साफ़ है कि यह सिलसिला रूकने वाला नहीं है ।

चर्चा तो यह भी है कि पिछले दिनों हुआ विवाद अकस्मात न होकर पूर्व नियोजित था,  यानी सब कुछ पहले से तय, क्योंकि इससे याना का डूबता कॅरियर ट्रैक पर आ सकता है। इस वक्त आकार ले रहे हालात तो कम से कम यही दर्शाते हैं, कि याना को फायदा पहुंचा है। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है, इसके पहले भी विदेशी अभिनेत्रियों के ड्रेस रैम्प पर खिसकने और सुर्खियों में आने की घटनाएं तो कई बार आ चुकीं हैं । पामेला एंडरसन और जैक्सन की ड्रेस ही नहीं हमारे बॉलीवुड की मलाईका अरोरा और नेहा धूपिया की पोशाक भी गिर चुकी है। इस पर कई बार सवाल उठे हैं लेकिन इससे इन अभिनेत्रियों और माडलों को फायदा ही हुआ नुकसान नहीं, तो फिर इसे क्या माना जाए शोहरत के लिये अब अश्लीलता जरुरी हो चुकी है ? क्या अश्लीलता रैम्प से लेकर सड़क तक व्यवसाय का हिस्सा हो चुकी है ? हिस्स की किस्स सुर्खियों में रहती है तो मल्लिका शहरावत की डिमांड बढ़ जाती है । तो फिर क्या यह सही नहीं है कि अब अश्लीलता तगड़ा व्यवसाय करने की एक सीड़ी का रुप लेता जा रहा है और अश्लील तस्वीर से उत्पाद बिकने लगे हैं ।

लेकिन इस अश्लीलता की भी एक सीमा होनी चाहिये । यह कौन तय करेगा यह पता नहीं । फिल्म निर्माता और रैम्प शोज करने वालों के लिए सस्ते प्रचार और कमाई का हिस्सा हो चुकी है अश्लीला और बाद में संयोग से ऐसा हो गया कह कर बचने की आदत तो पुरानी है ही लेकिन क्या सेंसरबोर्ड का डंडा इधर भी चलेगा जिससे जानूबझ कर की गयी इस व्यवसायिक गलती की सजा तय की जा सके । यानी की नो पैंटी सीन के बाद तो लगातार मॉडल विना उसके ही नज़र आ रहीं है । नाम नहीं बताऊंगा क्यों कि पाठकगण खुद यह तय करें कि यह कौन है ? और यह क्या हो रहा है ?  इस खूबसूरत गलती पर आप के विचार क्या हैं ? आप ब्लॉग पाठकों को जरूर बताइयेगा |
अखिलेश कृष्ण मोहन
लेखक अमर भारती दैनिक के उपसंपादक/संवाददाता हैं। 



Saturday, December 4, 2010

रियलिटी का गोरखधंधा



रियलिटी शो का मापदंड क्या है । रियलिटी शो कि परिभाषा क्या है और रियलिटी शो के कंटेन्ट पर निगरानी कौन रखता है यह कोई नहीं जानता । रियलिटी शो गलत नहीं हैं और न ही इससे किसी को आपत्ति ही है लेकिन यह सब कुछ एक दायरें में ही होने चाहिये जो हक़ीक़त में रियल हो और रियलिटी शो लगे । लेकिन ऐसा नहीं है । रियलिटी शो का तमगा लिये कई शो आज आम आदमी के घर में टीवी कार्यक्रमों के प्रति नफ़रत पैदा कर रहें हैं । ऐसा नहीं है कि सभी रियलिटी शो एक जैसे हैं लेकिन अधिकतर कार्यक्रमों में कंटेंट घटिया हैं तो सीन किसी ए श्रेणी की फिल्म की तरह । क्या यही है रियलिटी की परिभाषा और असली जिंदगी का नाटक। रियलिटी शो का मतलब होता है असल जिंदगी का नाटक । यानी जो दिखाया जा रहा है वह हमारे जिंदगी का हिस्सा है । राखी का इंसाफ नाम के रियलिटी शो में राखी ने कई ऐसे कंटेंट का उपयोग किया जो टीवी पर सुनने लायक नहीं थे लेकिन हमने जम कर देखा । मारपीट और जूतम-पैजार भी हुई । यहां तक की राखी ने जज की भूमिका का बेजा इस्तेमाल करते हुये झांसी के एक परिवार के साथ कुछ इस तरह इंसाफ किया कि उस कार्यक्रम का एक युवक कथित रुप से सदमे से मर गया । राखी ने उसके इज्जत पर कीचड़ उछालते हुये उसे नामर्द कहा था । इतना ही नहीं राखी ने तो खुद रियलिटी शो के नाम पर शादी की ही दूसरों की शादियां भी करवा दी । बाद में पता चला कि वे जोड़े तो पहले से ही शादी कर चुके थे। राखी ने उन शब्दों का भी कई बार उपयोग किया जिसे हम शायद घर परिवार के साथ नहीं सुन सकते। तो क्या यही है रियल जिंदगी । टीवी अब आम आदमी के घर का जरुरी हिस्सा बन चुका है । हर घर में टीवी देखा जाता है और उस का अनुसरण भी होता है । लोगों को चटपटा परोसने के चक्कर में ये रियलिटी शो के नाम पर ये शो पूरा का पूरा विष ही परोसने में लगे है । एक दूसरा रियलिटी शो बिग बॉस भी अब फूहड़ और ए ग्रेड का सीरियल हो चुका है । शो में बीप-बीप की आवाज यह बताती है कि इसे सुनाया नहीं जा सकता । लेकिन जा सुनाया जा रहा है उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन बीप में कितनी गालियां होंगी। शो बच्चों पर बुरा असर तो डाल ही रहा है साथ ही साथ परिवार में बातचीत के स्तर को भी बिगाड़ रहा है । रियल जिंदगी की हक़ीक़त दिखाने का दावा करने के नाम पर फूहड़ जिंदगी को क्यों दिखाया जा रहा है दिखाना है। दिखाना ही है तो जिस तरह ए ग्रेड की फिल्में दिखाई जाती हैं उसी तरह दिखाया जायें, जो देखना चाहता है वह आसानी से देखे लेकिन छलावा करके लेवल कुछ और अंदर कुछ और करके क्यों दिखाया जा रहा है । क्या हम बच्चों को खाने वाले बिस्किट की पैकेट में तंबाकू या कोकीन रख कर शहंशाही से बेच सकते हैं ? अगर ऐसा नहीं तो फिर रियलिटी शो के नाम पर काल्पनिक शो क्यों दिखाये जा रहें है । यह रियलिटी शो के नाम पर गोरखधंधा नहीं है तो फिर क्या है ?

सामान्य ज्ञान और मनोरंजन


सामान्य ज्ञान को मनोरंजन न समझे यह जरुरी है और ज्ञान की पूर्णता के लिये अनिवार्य है । अमूमन जीवन में दो तरह के ज्ञान की जरुरत होती है। सामान्य ज्ञान और विशेषज्ञता की । कुछ बुद्धिजीवियों का विचार है कि एक्सपर्टीज ज़रुरी है । यानी किसी भी एक विषय या क्षेत्र में माहिर होना जरुरी है और हर विषय का ज्ञान विशेषज्ञता के लिए ख़तरा है ।

बहुत सारी चीजों के प्रति उत्साह आप की किसी एक विषय के प्रति गंभीरता को ख़त्म कर देती है । लेकिन इस धारणा के विपरीत सोच रखने वाले लोगों की भी कमी नहीं है । कई वरिष्ठ पत्रकारों का मानना है जैक ऑफ आल मास्टर आफ नन यानी सब कुछ जानों किसी एक क्षेत्र विषेश में सिमट कर ही न रह जाओ। इस मुद्दे पर चर्चा करते हुये एक स्मरण याद आ रहा है एक बार पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय विश्वनाथ प्रताप का फ़ैजाबाद के जनमोर्चा अख़बार के कार्यालय पर भूमण्डलीकरण को लेकर कोई कार्यक्रम में जाना हुआ जब कार्यक्रम ख़त्म हुआ तो वहां के वरिष्ठ पत्रकार केसी मिश्रा से जब हमने युवा पत्रकार की हैसियत से आशिर्वाद लेना चाहा तो उन्होंने कहा पत्रकारिता में जैक ऑफ ऑल, मास्टर ऑफ नन के सिद्धांत का पालन करो यही मूलमंत्र है । तब से मेरी धारणा बदल गयी हमने मान लिया सब कुछ जानना ही पत्रकारिता का पहला वसूल है और जीवन का भी । आज जीवन के किसी भी क्षेत्र में सर्वज्ञ होना जरुरी ही नहीं अनिवार्य भी है ।

विकास के लिये हर क्षेत्र की जानकारी जरुरी है और यही विकसित राष्ट्र के लिये अहम है । सामान्य ज्ञान को सिर्फ़ मनोरंजन समझना गलत होगा । यह सही है कि मनोरंजन सामान्य ज्ञान है लेकिन सामान्य ज्ञान मनोरंजन नहीं। आज की भागती दौड़ती जिंदगी में किसी के पास समय भले ही नहीं है लेकिन जानकारी हर क्षेत्र की है । तेज भागती युवा पीढ़ियों को तो देखो आज वह नाच गाने से लेकर खेल कूद और केबीसी में पैसे कमा रहा है ।

हर मुद्दे पर वाजिब तर्क के साथ वार्ता को तैयार युवा सर्वगुण सम्पन्न है । अब यह धारणा गलत साबित हो रही है कि पढ़ोंगे लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे होगे ख़राब । इतना ही नहीं काम करने की ललक में और जिज्ञासा ने आज तमाम बेड़ियों को तोड़ दिया है। सर्वगुणे शक्ति कलियुगे।

लोकतंत्र बिकता है

कभी जनसेवा और देश सेवा से शुरु हुई राजनीति आज अपना लक्ष्य किस तरह खोती जा रही है यह हर पार्टी के राजनेताओं की गतिविधि में दिखाई दे रहा है । किसी एक दल का नाम लेना गलत होगा। ग्राम सभा की राजनीति से लेकर लोक सभा और राज्य सभा की राजनीति दूषित हुई है । हर सीट पर कब्जा होता जा रहा है । परिवारवाद, जातिवाद, धर्मवाद और साम्प्रदायवाद की बदबू हर राजनीतिक दल में देखी जा रही है यही नहीं अब तो हर जाति विशेष के दल भी बनने लगे हैं। राजनीति की गरिमा दिनों-दिन गिरती जा रही है इसके बारे में कुछ जानकारियां तो सभी को हैं लेकिन अब राजनेता खुद अपनी महत्वाकांक्षाओं को बताने से नहीं चूकते चाहे वह समाज के लिये, देश के लिये कलंक ही क्यों न हो। समाजवादी पार्टी से अमर सिंह निकाले गये या निकल गये मुद्दा यह नहीं सिर्फ यह है कि अमर सिंह सपा में नहीं हैं। लेकिन अब अमर का यह बयान कि सपा की सरकार बनवाने के लिये बसपा के विधायकों को तोड़ा था इसके बाद भी सपा ने बाहर का रास्ता दिखा दिया, यह दिखाता है लोकतंत्र का कलंक यानी विधायकों को तोड़ना भी अमर सिंह को एक पुरस्कार योग्य लगता है । आजकल अमर सिंह सपा को पटखनी देने की ही नियत से पूर्वांचल की मांग को लेकर विगुल फूंकने वाले हैं। इस महत्वाकांक्षा को आखिर जनता क्या समझे। जो विधायकों की खरीद फरोख्त और जोड़ तोड़ में ही माहिर है वह खुद सत्ता में बने रहने के लिये क्या नहीं कर सकता । तरकीबन यही रोग हर राजनीतिक दल में लगने लगे हैं । राज्यसभा से लेकर ग्राम पंचायत चुनावों तक एक-एक वोट खरीदे जाते हैं। जोड़ तोड़ की राजनीति होती है । कभी अधिवक्तता, अपराधी रहे लोग सदन में कब घुस जाते है किसी को पता ही नहीं चलता । उद्योगपतियों की लोकतंत्र में भरमार है । पैसा ही लोकतंत्र का आधार बनता रहा है । राजनीतिक दल चुनावों में पैसे वाले बाहुबलियों को ही टिकट देते है । हर राजनीतिक दल को अमर सिंह सरीखे बड़बोले और हर काम में माहिर उद्योगपतियों की जरुरत है तो फिर असल लोकतंत्र का सपना साकार कैसे हो । लोकतंत्र अब कहने को है लेकिन हक़ीक़त में यह नोट तंत्र में तबदील होता जा रहा है । क्या इसके लिये भी संयुक्त संसदीय समिति की मांग होगी जो सबसे जरुरी है ।

Wednesday, December 1, 2010

सब्र कीजिए खुलासे बाकी हैं



विकीलीक्स के कई खुलासों से अमेरिका पहले ही परेशान था लेकिन इस बार के खुलासे से अमेरिका ही नहीं बल्कि आतंकवाद के खात्में और मद्द का ढोंग करने वाले राष्ट्रों की कलई भी खुल चुकी है। खुलासे से साफ हुआ है कि अमेरिका ने संयुक्तराष्ट्र में भारत के राजनयिकों की जासूसी के आदेश दिए थे। संदेशों से साफ है कि अमेरिका ने इसके अलावा चीन और पाकिस्तान के राजनयिकों की जासूसी करवाई है। हालांकि, अब तक सामने आए संदेशों से में इस बारे में ज़्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। विकीलीक्से ने इस बार अमरीकी दूतावासों की ओर से भेजे गए जिन करीब ढाई लाख संदेशों को सार्वजनिक किया है, उनमें से 3038 संदेश नई दिल्लीं स्थित अमेरिकी दूतावास से भेजे गए हैं।
विकीलीक्स द्वारा जारी किए गए संदेशों में पाकिस्तान और ईरान से होकर गुजरने वाली गैस पाइपलाइन परियोजना को लेकर भी अमेरिका ने आशंका जाहिर की है। अमेरिकी संदेशों के मुताबिक पाकिस्तान और ईरान द्वारा गैस परियोजना पर हस्ताक्षर करने के बावजूद इस पूरे परिजनाओं पर संकट छाया हुआ है। यह आशंका पहले ही थी कि इस परियोजना के पूरे होने पर भारत को काफी फायदा हो सकता है।
विकीलीक्सस के खुलासे के मुताबिक पाकिस्ता न को खुश करने के लिए तुर्की ने इस साल की शुरुआत में अपने यहां आयोजित अहम बैठक में भारत को नहीं बुलाया। आतंकवाद के मसले पर आपसी सहयोग के लिए बातचीत के लिए इस्तांकबुल में बुलाई गई इस बैठक में पाकिस्तािन के राष्ट्र पति आसिफ अली जरदारी, अफगानिस्तािन के राष्ट्ररपति हामिद करजई के अलावा अमेरिका के प्रतिनिधियों ने हिस्सात लिया था।

हमारे विदेश मंत्री एस। एम। कृष्णाक ने कहा है कि विकीलीक्सि के खुलासे से भारत को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन उन्हों ने यह जरूर कहा कि हमारी उत्सुहकता इस बात को लेकर है कि आखिर अमेरिकी प्रशासन भारत के बारे में क्यात सोचता है। इन खुलासों से अमेरिका को भारत के साथ रिश्ते खराब होने का डर सता रहा है। अमेरिका की यह चिंता वाजिब भी है और हैरान करदेने वाली भी कि जिस देश के राष्ट्राध्यक्ष के आगमन को दीवाली की तरह मनाया जाता हो और उसके हर शब्द को ब्रम्हा का वाक्य मानकर विश्वास किया जाता हो वह देश जब इस तरह की गतिविधियों में संलग्न है तो फिर यह दीवाली किस काम की, और ऐसी कोरी भाषणबाजी क्यों हो ।

श्रीलंका दौरे से नई दिल्लीक लौटते हुये हमारे विदेश मंत्री कृष्णास ने पत्रकारों से कहा, ' भारत सरकार इन दस्तातवेजों को लेकर वाकई चिंतित नहीं है लेकिन यह रोचक होगा कि इनमें क्यात खुलासा होता है क्यों कि विकीलीक्सम ने चार लाख संदेश जारी करने को कहा है।' विदेश राज्य मंत्री परिणीत कौर कहा कि अमेरिका ने सतर्क किया था कि इस तरह के दस्तावेज जारी होने वाले हैं और अमेरिका के साथ हमारे अच्छे द्विपक्षीय संबंध हैं। यह काफी संवेदनशील मामला है । अभी सब्र की जिए विकीलीक्स के खुलासे से अमेरिका की नीति और राजनीति ही नहीं उसकी अर्थव्यवस्था भी हिल जायेगी।

मजाक कब तक



अमेरिका विकीलीक्स के खुलासे में भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध होने के हालात में पाकिस्तान को भी दोयम दर्ज़े का नहीं मान रहा है। यह वही अमेरिका है जो हमेशा पाकिस्तान को आतंक पर लगाम लगाने की झूठी गुजारिश करता है । भारत पहले भी अमेरिका की पाकिस्तानी नीति पर सवाल उठा चुका है कि अमेरिका से मिली मदद का पाक सैन्य ताकत बढ़ाने और आतंकवाद को पालने पोसने में कर रहा है लेकिन यह अमेरिका की नीति का ही हिस्सा था कि उसे मदद की भारी खेप जारी रही और पाक की आतंकियों और दहशतगर्दों को हर तरह से समर्थन । विकीलीक्स के खुलासे की माने तो अमेरिका भारत-पाक के बीच के तनाव से वाकिफ था और उसे युद्ध की स्थिति में पाक को भी मजबूत माना । विदेशमंत्री और सरकार भले ही कहे कि विकीलीक्स के खुलासों से भारत और अमेरिका के संबंधों पर असर पड़ने वाला नहीं है लेकिन सही मायने में यह भारत की वास्तविक हालात को नकारना ही है । अमेरिका विकीलीक्स के खुलासे के बाद बैकफुट पर आ चुका है । उसकी हर चाल उल्टी पड़ती जा रही है । भारत और बाकी देशों के खिलाफ़ अमेरिका और अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन की नीति का खुलासा हो चुका है । इसे भारत को गंभीरता से लेना चाहिए । विकीलीक्स की सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता । अगर खुलासे गलत हैं तो फिर अमेरिका गुप्त दस्तावेजों को लीक करने वालों पर कार्रवाई करने का मन क्यों बना रहा है। गलत खुलासे की सजा तो विकीलीक्स के मालिक को मिलनी चाहिए । यह भारत के लिये सुनहरा मौका है । जब अमेरिका की घेरा बंदी कर उसे संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद् में बेनकाब किया जा सकता है । जिस अमेरिका के साथ भारत आतंकवाद समेत कई मुद्दों पर खुल कर चर्चा करता है । उस अमेरिका के ही विदेश मंत्री ने भारत की सुरक्षा परिषद् में दावेदारी का मजाक उड़ाया। भारत को समझना होगा, हमें अमेरिका की मजाकेदार घोषणाओं पर तालियां बजाने और खुश होने की वजाय स्थिति को समझना होगा नहीं तो फिर कोई ओबामा भारत आयेगा और हमारे संसद में भाषणबाजी कर चला जायेगा और हम सालों खुश होते रहेंगे और अमेरिका हमारा मजाक उड़ाता रहेगा ।

मजाक कब तक



मजाक कब तक
अमेरिका विकीलीक्स के खुलासे में भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध होने के हालात में पाकिस्तान को भी दोयम दर्ज़े का नहीं मान रहा है। यह वही अमेरिका है जो हमेशा पाकिस्तान को आतंक पर लगाम लगाने की झूठी गुजारिश करता है । भारत पहले भी अमेरिका की पाकिस्तानी नीति पर सवाल उठा चुका है कि अमेरिका से मिली मदद का पाक सैन्य ताकत बढ़ाने और आतंकवाद को पालने पोसने में कर रहा है लेकिन यह अमेरिका की नीति का ही हिस्सा था कि उसे मदद की भारी खेप जारी रही और पाक की आतंकियों और दहशतगर्दों को हर तरह से समर्थन । विकीलीक्स के खुलासे की माने तो अमेरिका भारत-पाक के बीच के तनाव से वाकिफ था और उसे युद्ध की स्थिति में पाक को भी मजबूत माना । विदेशमंत्री और सरकार भले ही कहे कि विकीलीक्स के खुलासों से भारत और अमेरिका के संबंधों पर असर पड़ने वाला नहीं है लेकिन सही मायने में यह भारत की वास्तविक हालात को नकारना ही है । अमेरिका विकीलीक्स के खुलासे के बाद बैकफुट पर आ चुका है । उसकी हर चाल उल्टी पड़ती जा रही है । भारत और बाकी देशों के खिलाफ़ अमेरिका और अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन की नीति का खुलासा हो चुका है । इसे भारत को गंभीरता से लेना चाहिए । विकीलीक्स की सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता । अगर खुलासे गलत हैं तो फिर अमेरिका गुप्त दस्तावेजों को लीक करने वालों पर कार्रवाई करने का मन क्यों बना रहा है। गलत खुलासे की सजा तो विकीलीक्स के मालिक को मिलनी चाहिए । यह भारत के लिये सुनहरा मौका है । जब अमेरिका की घेरा बंदी कर उसे संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद् में बेनकाब किया जा सकता है । जिस अमेरिका के साथ भारत आतंकवाद समेत कई मुद्दों पर खुल कर चर्चा करता है । उस अमेरिका के ही विदेश मंत्री ने भारत की सुरक्षा परिषद् में दावेदारी का मजाक उड़ाया। भारत को समझना होगा, हमें अमेरिका की मजाकेदार घोषणाओं पर तालियां बजाने और खुश होने की वजाय स्थिति को समझना होगा नहीं तो फिर कोई ओबामा भारत आयेगा और हमारे संसद में भाषणबाजी कर चला जायेगा और हम सालों खुश होते रहेंगे और अमेरिका हमारा मजाक उड़ाता रहेगा ।