Saturday, August 6, 2011

राष्ट्र के लिए अन्ना हजारे का साथ देना ही होगा


क्या आप अन्ना हजारे के करप्शन के खिलाफ देश व्यापी आंदोलन में शामिल रहे हैं ? क्या आप ने अन्ना के साथ जनंतर-मंतर पर अपने अमूल्य कहे जाने वाले समय का कोई हिस्सा दिया है ? अपने राज्य, जिला या स्थानीय इलाके में ही क्या आप ने अन्ना के समर्थन में कैंडल जलाकर हो हल्ला मचाया है ? या आप सिर्फ घरों में बैठकर ही अन्ना की तरफदारी करते रहे ?

जब अन्ना भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन कर रहे थे तो पूरे देश में जो लौ जलनी चाहिए थी उसे जलाने में हम कामयाब नहीं हो सके । भ्रष्टानेताओं को डरा नहीं सके, और सरकार के साथ मिलकर देशद्रोही वाला बर्ताव कर रहे चंद नेताओं को हम सबक नहीं दे सके ताकि उनकी जुबानें बेलगाम न हों । अन्ना ने अचानक एक दिन में ही अनशन का यह फैसला नहीं कर लिया था बल्कि इसके लिये महीनों पहले सरकार को अल्टीमेटम दिया और सरकार के बहरे होने पर आंदोलन के लिए जनसमर्थन भी मांगा था । लेकिन एक अरब से अधिक की तादाद में भ्रष्टाचार पीड़ितों की संख्या होने के बाद भी हम अन्ना के इस आंदोलन का भरपूर फायदा नहीं उठा सके। जंतर-मंतर तहरीर चौक में तबदील नहीं हो सका और सरकार ने जल्दीबाजी में हां-हां कर सबको शांत कर दिया । लेकिन हक़ीक़त में अन्ना और हम सब जीते नहीं हैं बल्कि जीत षण्यंत्रकारी सरकार की हुई है बर्ना आंदोलन के समय मांद में रहने वाले कांग्रेस और बाकी दलों के दलाल मीडिया में खुलकर शेख-चिल्ल-पो करते नजर नहीं आते । हार हमारी भी है जो हमने इस आंदोलन को एक प्रोग्राम कि तरह घरों में बैठकर टीवी चैनलों पर देख कर ही खुश होते रहे ।


जिस मीडिया के नियंत्रण की कवायद लगातार चलती रहती है वह मीडिया एक बार फिर अपनी जिम्मेदारी को भलीभांति निभाने में कामयाब रहा । बीते छह महीनों में लगातार दूसरी बार है जब भारतीय मीडिया ने अपने परिपक्व होने का पूरा प्रमाण दिया है । पहली बार अयोध्या फैसले के समय और इस बार अन्ना अनशन के समय, यानी मीडिया ने अपनी जिम्मेदारी को समझा है। भारतीय लोकतंत्र में तानाशाही नहीं है लेकिन चुने जाने के बाद जनता की न सुनने का रोग पुराना है । ऐसे में यह जरूरी है कि मीडिया जन भावनाओं को इन लोकतंत्र के नुमाईंदों तक पहुंचाए। मीडिया के सहयोग कि बिना आज कोई भी जनआंदोलन अपना प्रभाव दिखा पायेगा यह कहना सही नहीं होगा । अन्ना हजारे से पहले टीन शेषन जैसा धर्मवीर, कर्मवीर, जुझारू योद्धा भी इस धरती पर भ्रष्टाचार का अंत करने की लाख कोशिश कर चुका है । तब शेषन की बातों को जन समर्थन में तबदील करने वाला मीडिया नहीं था । मीडिया की पहुंच इस स्तर तक नहीं थी जिस पैमाने पर आज है । यही वजह रही कि टीएन शेषन जैसा शक्स भी भ्रष्टाचार की जंग में हार गया । यही नहीं भ्रष्टाचार को लेकर विस्मय की लहर पैदाकरने वाला शेषन चुनावी अनाप-शनाप खर्च पर लगाम लगाने की लाख कोशिश के बाद भी कोई करिशमा नहीं दिखा पाया । अंत में थक-हार कर शेषन ने नेताओं की जमात में शामिल होकर भी अपनी मुहिम को जारी रखने की कोशिश की लेकिन वहां भी शेषन फेल रहे ।


वर्ष 1997 में वह शिवसेना के प्रत्याशी के रूप में राष्ट्रपति का चुनाव हार गए, जबकि 1999 में गांधीनगर में कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी के तौर पर लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ 1 लाख 80 हजार मतों से हारे। दो बार हारने के बाद शेषन राजनीति से रिटायर हो गए और चेन्नई में शांतिपूर्ण जीवन जी रहे हैं, जहां उन्हें रोटरी क्लब जैसी संस्थाओं द्वारा तो गले लगाया गया, लेकिन जनता द्वारा भुला दिया गया। शेषन की असफला के पीछे आज की तरह मीडिया का न होना ही सबसे बड़ी वजह रही । जो एक आदमी की आवाज को आम आदमी की आवाज बनने में माध्यम का काम करती है ।


सवाल अन्ना का ही नहीं है सवाल हर उस शक्स का है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ या तो कभी शंखनाद कर चुका है या कर रहा है । अन्ना एक महापुरुष हो सकते हैं और उनका आंदोलन एक विचारधारा का प्रबल आंदोलन हो सकता है लेकिन भ्रष्टाचार का पालन-पोषक करने वाले भ्रष्मासुरों की कोई कमी नहीं है और न ही उनकी क्षमता पर ही कोई संदेह किया जा सकता है । क्योंकि दैत्य हमेशा देवताओं से प्रबल और धूर्त होते हैं । टीन शेषन को हरा देने वाले नेताओं की ताकत तो पहले के मुकाबले आज ज्यादा है ही, संख्या भी सैकड़ों गुणा अधिक है । ऐसे में अन्ना हजारे को भगवान राम की यह सूक्ति मान कर चलनी होगी कि "विनय न मानत जल्धि जड़ गये तीन दिन बीत, बोले राम सकोप तब भय बिनु होय न प्रीति" । यह मानकर चलाना होगा कि जिस तरह से भगवान राम के कई दिन अनुनय विनय के बाद भी जब समुद्र ने रास्ता नहीं दिया तो राम ने भय पैदा किया तब जाकर रास्ता भी मिला और समुद्र से मित्रता भी हुई । ठीक उसी तर्ज पर अगर सरकार और उसके साथ करप्शन में शामिल नेताओं में अगर डर नहीं पैदा किया गया तो ये लोग मेढ़कों की तरह ऐसे ही टर्र-टर्र करते रहेंगे और हमे बांधित करते रहेंगे। भगवान राम के साथ बानर सेना थी तो अन्ना के साथ पूरा देश है ।


हनुमान सरीखे संदेश वाहक से भी ताकतवर आज हमारा मीडिया है जो पल भर में लोकहित में खड़ा दिखाई देता है । हमें डरने की जरूरत कतई नहीं है । हमें किरन बेदी, अरविंद केजरीवाल और भूषण पिता-पुत्र का जो मेल मिला है वह हजारों साल बाद भी शायद मिलने वाला नहीं है । करपशन के खिलाफ चोट करने का यह सुनहरा मौका हमें जाया नहीं करना होगा । अगर इस बार हम चूक गये तो मानों चुक गये । फिर नेता हमारा मजाक उड़ायेंगे और कोई भी साफ सुथरी छवि का चेहरा अगुवाई करने से डरेगा । बीते अनशन में हम भले ही शामिल न रहें हों लेकिन अब अगर सरकार फिर नहीं चेतती है तो हमें विजय चौक को तहरीर चौक बनाने से पीछे नहीं हटना होगा ।


याद रहे आदमी से बड़ा उसका संदेश होता है । आप भले ही किसी स्तर पर प्रदर्शन कर रहें हों लेकिन आप का संदेश तो अमूल्य है ही । हमें लोकतंत्र का मजाक बनाने वाले मदारियों को बेनकाब करना होगा । उन्हें उन्हीं की भाषा में जवाब भी देना होगा । आज पैसे के बल पर चुनाव जीतने वाले लोकतंत्र के भष्मासुरों को चिंहित उनको चुनाव लड़ने से रोकना होगा, और चुनाव लड़ने की सोच रखने वाले स्वच्छ पढ़े लिखे युवा पीढ़ियों को आगे भी लाना होगा । तभी भ्रष्टाचार का खात्मा हो सकता है । अमर सिंह और दिग्विजय सिंह को अन्ना और उनकी टीम अगर दुश्मान नजर आ रही है तो यह नाहक नहीं है इसकी सबसे बड़ी वजह है नई पार्टी बनाकर लोकतंत्र में फिर से सिक्का जमाने की कोशिश में लगे अमर और दिग्गी का जेल जाने का डर ही है। अमर को पता है जिस दलाली के बल पर वे कुख्यात हुये हैं उसकी सजा मिलना अभी बाकी है और यह काम देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था भी नहीं कर सकती लेकिन जन लोकपाल कर सकता है ।


अगर लोकपाल बिल अपने स्वरूपों में पास हो गया और अपनी जिम्मेदारियों से काम करने लगा तो अमर सरीखे वो नेता जो पहले ही अन्ना से डरे घिघिया रहे हैं ।
नेताओं को सलाखों के पीछे होने में दो साल से अधिक का वक्त नहीं लगेगा । अन्ना टीम का विरोध करने वाले चंद नेताओं पर नकेल उनकी पार्टियां भले ही न लगा पा रहीं हो लेकिन मीडिया और हम सबको इनकी बोलती बंद करनी ही होगी वर्ना ये हमें नपुंसक ही समझेंगे। हमें आगे बढ़ कर इनका जवाब देना होगा और यह साबित करना होगा कि किसी स्तर पर भ्रष्टाचार को पनाह नहीं मिलेगी और अन्ना अकेले नहीं हैं, अन्ना के साथ एक अरब बीस करोड़ का हुजूम भी है जो किसी भी सफारी छाप नेता की एसी गाड़ी पंचर कर सकता है । हमें नेताओं के अंदर यह डर पैदा करनी ही होगी । लोकपाल बिल बनाने के लिए बनी कमेटी में सरकार की ओर से शामिल मंत्रियों की दादागिरी हम सब ने देखी है । अगर यह दादागिरी नहीं है तो फिर क्या है कि बैठकों की रिकार्डिंग को सार्वजनिक नहीं किया गया । कुल मिलाकर सत्ता पक्ष हो या विपक्ष या छोटे-छोटे राजनीतिक दल हर किसी को पता है आन्ना के लोकपाल से नेताओं की दादागिरी और अकूत कमाई पर संकट आ जायेगा । नेतागिरी एक जिम्मेदार नौकरी की तरह करनी होगी और जनता को जवाब भी देना होगा। ऐसे में अगर सरकार सही वास्तविक लोकपाल बिल जो करप्शन पर लगाम लगाये कैबिनेट में पास नहीं करती है तो 16 अगस्त से देश व्यापी प्रदर्शन के लिये हम सब को तैयार रहना चाहिए । कहीं ऐसा न हो कि एक और टीएन शेषन इस देश के इस भ्रष्टाचार रूपी दानवों से जंग हार जाये।


अखिलेश कृष्ण मोहन
संवाददादता-चैनल वन न्यूज़, नोएडा
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