Akhilesh Krishna Mohan |
दुर्घटनाबाज़ नुक़्ता
नुक़्ते को लेकर कितनी मरहमबाजी
हुई यह तो नहीं याद, लेकिन इतना ज़रूर याद है कि आज भी ऐसी दुर्घटनाएं हो ही जाती
हैं। इस लिए फ़ुरशत में हैं तो यह ज़रूर पढ़ें...
नुक़्ता जिन
अक्षरों में प्रयोग होता है, वे हैं –
क़, ख़, ग़, फ़, और ज़। यह सब उर्दू से आए हैं, केवल ज़ ऐसी
ध्वनि है जो अंग्रेज़ी में भी पाई जाती है। ड और ढ के नीचे आने वाले बिन्दु (ड़,
ढ़) अलग हैं, वे विदेशी
शब्दों को इंगित नहीं करते और उन से उच्चारण में आने वाला अन्तर हिन्दी भाषियों को
भली भान्ति मालूम है। आइए देखें क़, ख़,
ग़, फ़, और ज़ के उदाहरण।
क़ – उर्दू वर्णमाला में काफ़ (ک) और क़ाफ़ (ق)
दो अलग वर्ण हैं, और दोनों के उच्चारण में अन्तर है। क़की ध्वनि को फोनेटिक्स की भाषा में voiceless
uvular stop कहा जाता है। रोमन लिपि में उर्दू लिखते हुए इस के लिए q
का प्रयोग होता है, जबकि क के लिए k
का। पर यह केवल सुविधा के लिए किया गया है –
अंग्रेज़ी में q और k
के बीच ऐसा कोई अन्तर नहीं है, और जहाँ तक
मेरी जानकारी है, अंग्रेज़ी में क़ाफ वाली कोई ध्वनि नहीं है। पर फिर भी यदि आप किसी
उर्दू शब्द के अंग्रेज़ी हिज्जों में q का प्रयोग
देखते हैं तो आप उसे हिन्दी में लिखते हुए क़ का प्रयोग कर सकते हैं। उदाहरण –
नुक़्ता, क़रीब, क़ायदा, क़ैफ़ियत जैसे शब्दों में नुक़्ता प्रयोग होगा,
जबकि किनारा, किताब,
मुल्क, इनकार जैसे शब्दों में नहीं होगा।
ख़ – उर्दू वर्णमाला
में ख की ध्वनि के लिए काफ़ के साथ दो-चश्मी-हे (ھ) को जोड़ा जाता है (ک + ھ = کھ) , यानी क के साथ
ह को जोड़ कर ख बनता है – शायद इसलिए कि अरबी फारसी में ख की ध्वनि नहीं होती,
पर ख़ (voiceless uvular fricative) के लिए अलग
वर्ण है जिसे ख़े कहते हैं। रोमन लिपि में मैं ने इस के लिए कोई विशेष
वर्ण मानक रूप में प्रयोग होते नहीं देखा। उदाहरण – ख़रीद,
ख़ारिज, ख़ैबर, अख़बार (ख़बर, मुख़बिर),
ख़ास, कुतुबख़ाना (पुस्तकालय) आदि में नुक़्ता प्रयोग होगा। बिना नुक़्ते
के ख वाले शब्द अरबी-फारसी से नहीं हैं, इस कारण देसी
शब्दों के लिए ख और अरबी-फारसी शब्दों के लिए ख़ का प्रयोग करें,
जैसे खाना-ख़ज़ाना ।
ग़ – यहाँ अन्तर है
गाफ़ (گ) और ग़ैन (غ) का। यहाँ भी अंग्रेज़ी स्पेलिंग से कोई मदद
नहीं मिल पाएगी, हाँ कई बार ग़ैन के लिए gh का प्रयोग होता
है जैसे ghazal (ग़ज़ल)। पर इस का घ से भी कन्फ्यूजन हो सकता है,
इस कारण उच्चारण का अन्तर, या फिर उर्दू
के हिज्जे पता होने चाहिएँ। उदाहरण – ग़रीब,
ग़ायब, मग़रिब (पश्चिम), ग़ुस्सा,
आदि में ग़ प्रयोग होगा, और अलग,
अगर, गिरह, गिरेबान में ग ।
फ़ – अरबी-फ़ारसी
लिपि में फ की कमी प+ह=फ (پ +ھ = پھ)
के द्वारा पूरी की जाती है, और फ़ के लिए फ़े (ف)
का प्रयोग होता है। अंग्रेज़ी में उर्दू शब्द लिखते हुए फ के लिए ph
और फ़ के लिए f का प्रयोग होता
है। पर मुझे नहीं लगता अंग्रेज़ी भाषा में ph और f
के बीच कोई अन्तर है। इस कारण मुझे नहीं लगता कि f
वाले अंग्रेज़ी शब्दों (file, format, foot) के लिए नुक़्ते
के प्रयोग की आवश्यकता है। हाँ, उर्दू के
शब्दों के उदाहरण हैं – फ़रमाइश, फ़रिश्ता, काफ़िर, आदि। फ वाले शब्द देसी हैं, इस कारण हिन्दी
शब्दों (फिर, फल, फागुन) के लिए फ, और उर्दू शब्द
यदि अरबी-फ़ारसी से आया है, तो उस के लिए फ़ का प्रयोग करें।
ज़ – मेरे विचार में
हिन्दी भाषियों के लिए ज़ की ध्वनि पहचानना सब से आसान है,
क्योंकि इस की ध्वनि ज से काफी भिन्न है। यहाँ पर नुक़्ते का ग़लत
प्रयोग बहुत खटकता है। अन्तर है j और z
का। उर्दू में चार ऐसे वर्ण हैं जिन से ज़ की आवाज़ आती है –
ज़ाल (ذ),
ज़े (ز),
ज़ुआद (ض),
ज़ोए (ظ),
और एक वर्ण जिस से ज की आवाज़ आती है,
जीम (ج)।
कई हिन्दी भाषी उत्साह में (लिखने या बोलने में) वहाँ भी ज़ की आवाज़ निकालते हैं
जहाँ ज की आवाज़ आनी चाहिए – जैसे जलील की
जगह ज़लील, मजाल की जगह मज़ाल, जाहिल की जगह
ज़ाहिल, आदि। ऐसी ग़लती से बचना चाहिए, क्योंकि इस से
शब्द का अर्थ ही बदल सकता है – जैसे,
मैं दुल्हन को सज़ा (सजा) दूँगी। ऐसे में फिर
वही नुस्ख़ा दोहराऊँगा – जब सन्देह हो तो नुक़्ते से बचें। नुक़्ता न लगाने का बहाना है,
पर ग़लत जगह लगाने का नहीं है। ज और ज़ के कुछ और उदाहरण –
ज़रूर, ज़ुल्म, जुर्म, राज़ (रहस्य), सज़ा,
ज़बरदस्त, जमील, जलाल, वजूद, ज़ंजीर, मिज़ाज, ज़्यादा, जज़ीरा (द्वीप) आदि ।
उर्दू की लिपि
की इन विसंगतियों को देखते हुए आप को यह नहीं लगता कि उर्दू वालों को भी देवनागरी
अपनानी चाहिए? मैं तो ऐसा ही मानता हूँ, पर चलिए उस के
बारे में फिर कभी बात करते हैं। इस लेख, यानी नुक़्ते
की बात, पर आप के ख़्यालात मुख़्तलिफ़ हों, या आप कोई
नुक़्ताचीनी करना चाहते हों तो टिप्पणियों के डिब्बे का प्रयोग करें।
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