Wednesday, January 19, 2011

काश नीमा को हम बचा पाते !




बीते एक साल में एनआरआई लड़कों से शादी करने की दिवानगी लड़कियों में जिस तरह से जोर  पकड़ रही है उसने सुख की चाह में उनके जीवन को ही निगलना शुरु कर दिया है । दिल्ली की नीमा के साथ भी ऐसा ही हुआ, आज वह दुनिया में नहीं है काश हम नीमा की जिंदगी को बचा पाते । सवाल यह भी है कि क्या नीमा की मौत से विदेशों की ओर रुख़ कर रहीं लड़कियां कोई सीख लेंगी  बता रहें  हैं अखिलेश कृष्ण मोहन

एनआरआई लड़कों से शादी करने और विदेशों में बसने की बीमारी काफी तेज़ी से भारतीय परिवारों को जकड़ने लगी है । पढ़ा लिखा और उच्चवर्गीय परिवार अपने बेटे और बेटियों को देश में नहीं विदेश में भेज कर ही खुश हो रहा है । विदेशों में बसना धनाड्य होने की एक निशानी भी है । लेकिन यह रोग सुख-शान्ति और जीवन को किस तरह घातक बन रहा है यह जानने कि लिये इंटरनेशनल सेंटर फॉर जिनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नॉलजी(आईसीजेईबी) की साइंटिस्ट नीमा की मौत और लाखों नीमा जैसी लड़कियों की हक़ीक़त को समझना होगा । नीमा कोई कम पढ़ी लिखी नहीं थी और न ही उसके माता-पिता अनपढ़ थे। कालकाजी एक्सटेंशन में रहने वाले डीयू के रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. वीरेंद्र अग्रवाल की बेटी थी । डॉक्टर अग्रवाल ने भी वही किया जो आज हो रहा है । बेटी ने भी एक सांइटिस्ट पुष्पेंद्र को जीवन साथी चुना, जो विदेश में सेटल हो चुका था, और शायद वह किसी भारतीय भोली-भाली लड़की के शिकार की फिराक में था । बताया जाता है इसकी शुरुआत यहां से हुयी, नीमा की सहेली ने  उस वक्त पुष्पेंद्र के एक दोस्त  से शादी की थी और दोनों अमेरिका में खुशहाल रह रहे थे। उन्होंने ही नीमा के सामने पुष्पेंद्र से शादी का प्रस्ताव रखा था । इंटरनेट और फोन पर नीमा और पुष्पेंद्र की बातचीत शुरु हुई और दोनों ने शादी का फ़ैसला किया । दोनों के परिजन भी शादी को राजी हो गये और शादी हो गयी । नीमा के पिता डॉ. वीरेंद्र अग्रवाल का कहना है कि शादी के पहले पुष्पेंद्र के परिजनों ने कोई भी डिमांड होने से इंकार किया था । लेकिन नीमा के ससुराल जाने जाने के बाद से ही दहेज कम लाने जैसे आरोप लगने लगे और नीम को परेशान किया जाने लगा । नीमा के पिता ने नीमा के ही हाथ दो लाख रुपये भी पुष्पेंद्र को भिजवाए । इसी बीच नीमा को अमेरिका का वीजा मिल गया और वह अमेरिका चली गयी । सवाल यहां दो लाख का नहीं था सवाल उस सोच का था जो पुष्पेंद्र के एक साइंटिष्ट होने के बाद भी नहीं बदली थी । बताया जाता है कि नीमा की सास हर वक्त दहेज की बात पर ख़रीखोटी सुनाया करती थी । इसी बीच साल 2008 में नीमा ने एक बेटी को जन्म दिया और इसी साल नीमा को न्यू जर्सी में जॉब मिल गयी । यानी नीमा भी अब पुष्पेंद्र के उपर निर्भर नहीं रही वह खुद कमाने और अपना खर्च उठाने वाली आत्मनिर्भर महिला बन चुकी थी । नीमा के आत्मनिर्भर होने के बाद भी पुष्पेंद्र-नीमा के बीच तारतम्य ठीक नहीं था और नीमा के पिता की माने तो आगामी 8 फ़रवरी को नीमा बेटी के साथ वापस इंडिया आना वाली थी । लेकिन अचानक 9 जनवरी को ही पुष्पेंद्र ने नीमा के खुदकुशी करने की ख़बर दी । जब नीमा के पिता अमेरिका पहुंचे तो नीमा के स्यूसाइड नोट को देख कर चौक गये स्यूसाइड नोट पर न तो नीमा के हस्ताक्षर थे और न ही उसकी लिखावट नीमा की हैंडराइटिंग से मिल रही थी । इतना ही नहीं पुष्पेंद्र नीमा का दाह संस्कार भी वहीं करवाना चाहता था । लेकिन नीमा के पिता के राजी न होने पर लाश दिल्ली लाई गयी । अमेरिकी अधिकारियों ने भी नीमा के पिता वीरेंद्र अग्रवाल को यह कहते हुये कुछ भी बताने से इनकार कर दिया कि वह पुष्पेंद्र से बात कर चुके हैं । नीमा के पति का कहना है कि उसने खुदकुशी की है लेकिन नीमा के माता-पिता का कहना है कि उसकी हत्या की गयी है या तो उसे खुदकुशी के लिये उकसाया गया है । कुल मिलाकर नीमा की मौत अब हत्या और आत्महत्या में उलझ चुकी है । और अमेरिकी जांच अधिकारी कुछ भी बताने को तैयार नहीं है । अब सवाल यह उठता है कि आख़िर इन सबके पीछे वजह क्या होती है कि हर साल हजारों भारतीय लड़कियां एनआरआई लड़कों से शादी कर घर बसाने के चक्कर में मौत के घाट उतारीं जा रहीं हैं । इसके पीछे एक सबसे बड़ा कारण रहा है कि अमेरिका या बाकी विदेशों में बसे लोग अपने आप को एकायक एलीट वर्ग में महसूस करता है । सोच बदल जाती है वह भौतिक संसाधनों को ही सबकुछ मान बैठते हैं । लड़कियां हर दिन चेंज होते शरीर के कपड़ों की तरह बदलने लगती हैं और दूसरों की ज़िंदगी हाथ के खिलौने की तरह लगने लगती है, जब चाहा तोड़ दिया और जब मन किया तो ख़रीद लिया । हर साल ऐसी हजारों घटनाएं हो रही हैं लेकिन फिर भी विदेशों में शादी करने का ट्रेड़ कम नहीं हो रहा । परिवार की मर्जी हो या न हो हर लड़की की किसी एनआरआई से शादी पहली प्राथमिकता होती है । विदेश में बसे भारतीय यहां कि लड़कियों से शादी तो करना चाहते हैं लेकिन शादी के बाद जल्द ही उनकी सोच बदल जाती है । पैसा ही उनकी प्राथमिकताओं में शामिल हो जाता है । जल्द ही वे दूसरी लड़कियों के चक्कर में पड़ जाते है । और बीवियां उन्हें तरक़की में बांधक दिखाई देने लगती है । फिर शुरु होता है कम दहेज़ की आड़ में उत्पीड़न हक़ीक़त में यहां दहेज अहम वजह नहीं होती लेकिन प्रताड़ित किये जाने और घर में उपेक्षा को महसूस जरूर कराती है । और अंत में यही प्रताड़ना इतनी कष्टदायक हो जाती है कि या तो लड़कियां खुदकुशी करने को मजबूर होतीं हैं या उनकों मौत के घाट उतार दिया जाता है । और फिर शुरू होती है हत्या को आत्महत्या और हादसा का रुप देने की साजिश । नीमा के मामले में भी सब कुछ ऐसा ही है । सवाल सबसे बड़ा है कि एक पढ़ी लिखी लड़की 2 साल की बच्ची को इस दुनिया में छोड़ कर आख़िर खुदकुशी क्यों करेगी । नीमा की हत्या की गयी या स्यूसाइड के लिये मज़बूर किया गया इससे तो शायद कभी भी पर्दा न उठे क्यों कि जो अधिकारी नीमा के पिता को कुछ भी बताने को तैयार नहीं हैं वह क्या जांच करेंगे। लेकिन सबसे बड़ा सवाल देश की नौजवान पीढ़ी से है जो तरककी के फेर में ज़िंदगी को पीछे छोड़ रही है । लड़कियों को एनआरआई लड़कों की लालच को छोड़ना होगा । जिंदगी का एक मकसद बनाना होगा और इन्हें सबक भी सिखाना होगा नहीं तो एक नीमा नहीं न जाने कितनी नीमा बे मौत मारी जाती रहेंगी।

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