Monday, January 31, 2011

खाद्य सुरक्षा का दावा पंक्चर

खाद्य सुरक्षा का दावा पंक्चर



सोनिया गांधी की अध्यक्षता में बनी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् ने खाद्य सुरक्षा देने का जो दावा किया था उसका अब साकार होना तो दूर, उसके सुझाये विधेयक का कानून बन पाना भी असंभव लग रहा है । खाद्य सुरक्षा समिति की मांगों को प्रधानमंत्री द्वारा गठित रंगराजन समिति ने अव्यवहारिक पाया है और कहा है कि गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को दी जाने वाली सुविधाएं 75 फ़ीसदी लोगों तक नहीं दी जा सकतीं । उसने कहा है कि विधेयक को कानून बनाने से पहले ज़रुरी है कि पैदावार बढ़ायें जाएं। समिति यह नहीं कहा कि आख़िर पैदावार कितनी बढ़ाने की ज़रूरत है । सरकार किस कदर अकर्मण्य हो चुकी है और आम जनता के सरोकारों से कितनी दूर है इसे बड़े ही आसानी से समझा जा सकता है । बेतहाशा बढ़ती महंगाई के बीच संयुक्त राष्ट्रसंघ खाद्य एवं कृषि संगठन ने घोषणा की है कि अगर अनाज उत्पादन पर पर्याप्त रूप से ध्यान नहीं दिया गया तो 2011 में विकासशील देशों में अनाज और महंगे हो सकते हैं । इसी बीच खाद्य एवं कृषि राज्य मंत्री के जरिये यह तथ्य भी सामने आया कि पर्याप्त संख्या में कोल्ड स्टोरेज नहीं होने के कारण भारत में हर साल करीब 6 करोड़ टन फल एवं सब्ज़ियां बर्बाद हो जातीं हैं । क्या सरकार इस ओर भी ध्यान देगी । ध्यान देने की बात तो यह भी है कि देश में 5400 कोल्ड स्टोरेज़ हैं, जिसमें से 525 ही सरकारी, बाकी निजी क्षेत्रों के हैं । कुल मिला कर यह अपर्याप्त है, फिर भी केंद्र सरकार ने इनकी संख्या बढ़ाने की ओर सोचने का काम अभी शुरू भी नहीं किया है । खाद्य और कृषि संगठन ने इस ओर ध्यान दिया कि नहीं, इसे इससे ही समझा जा सकता है कि अगर ध्यान दिया होता तो अनाज उत्पादन से अधिक वह अनाज के भंडारण पर ज्यादा ध्यान देता और वितरण पर भी न कि केवल पैदावार कम होने का करूणक्रंदन करने का नाटक करता। 

        कुल मिलाकर राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् और खाद्य सुरक्षा समिति अपनी ज़िम्मेदारियों को किस तरह ले रही है, इसे इससे ही समझा जा सकता है कि एक तरफ़ अनाज सड़ रहे हैं तो दूसरी तरफ़ महंगाई की वजह सरकार पैदावार कम होना बता रही है । ऐसा नहीं है कि सरकार अनाजों के सड़ने की ख़बर से अंजान हो। सुप्रीम कोर्ट ने भी सड़ रहे अनाजों को गरीबों और ज़रुरत मंदों में मुफ़्त देने का आदेश दे चुका है, लेकिन सरकार ने न तो अनाजों की सुरक्षा के लिए ही कोई क़दम उठाएं हैं और न ही अनाज़ों का आदेशों के अनुसार वितरण ही किया गया। दूसरी बार यूपीए सरकार बनने पर केंद्र सरकार के मसौदों में खाद्य सुरक्षा नीति ही सबसे अहम थी लेकिन अब वह प्राथमिकता नहीं रही, बल्कि यह विधेयक अब हाशिये पर जा चुका है । 

       खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ने की असली वजह कम उत्पादन नहीं बल्कि पैदा हुये अनाजों के ख़राब रख-रखाव, कालाबाज़ारी और सरकारी वितरण केंद्रों के इतर निजी गोदामों में जमा होना भी है। सरकार को इसे समझना होगा । प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की रंगराजन समिति और युपीए सरकार के बीच जो मतभेद उभर कर समाने आये हैं वो भी चौकाने वालें हैं यह प्रतीत होता है कि सरकार के एजेंडे में आम आदमी को भोजन उपलब्ध करवाना अब नहीं रहा। बेहतर होता यूपीए सरकार अनाज की आर्थिक घपला बाज़ारी को समझती और अपने ही उन दावों पर ख़रा उतरती जो कि उसने चुनाव से पहले और चुनाव के समय पर किये थे।

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अखिलेश कृष्ण मोहन
लेखक दैनिक अमर भारती में उपसंपादक/संवाददाता हैं। 

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