Friday, August 27, 2010

कहां गये बारुद से लदे ट्रक ?

देश में हथियार बारुद और सेना के उपकरण कितने महफूज है और इनकी निगरानी किस तरह की जाती है इसकी पोल खोलने के लिये राजस्थान के धौलपुर से मध्यप्रदेश के लिये चले विस्फोटकों से लदे 164 ट्रक का गायब होना ही काफी है । डेढ़ महीने पहले चले इन ट्रकों में पुलिस के मुताबिक कुल 848 मीट्रिक टन विस्फोटक है और लाखों की संख्या में डेटोनेटर । पहले तो इनकी संख्या को लेकर ही सही आंकड़ा नहीं लगाया जा सका और यह संख्या 61 बतायी गयी लेकिन अब तफतीश करने पर यह पता चल रहा है कि गायब ट्रकों की यह संख्या 164 है । पुलिस खोज- बीन के बाद भी कोई सुराग नहीं लगा सकी है । 164 ट्रकों का विस्फोटकों के साथ गायब हो जाना यह बताता है कि हमारा सुरक्षा तंत्र किस तरह हमारी हिफाजत कर सकता है । हमारा खुफिया तंत्र कितना चौकस है और हम कितने महफूज । छोटे पैमाने पर विस्फोटकों की खेप बरामद होने पर पुलिस वाहवाही लूटने पहुंच जाती है, मीडिया को बुलाकर फोटो खिचवाई जाती है और पूरा पुलिस महकमा पुरस्कार देने और लेने की दौड़ में शामिल हो जाता है । लेकिन इतने बड़े पैमाने पर लापरवाही के बाद भी किसी विभाग को कोई ख़बर न हो यह कैसे हो सकता है । सैकड़ों मीट्रिक टन विस्फोटक और लाखों की संख्या में डेटोनेटरों का लापता होना न केवल पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाते है बल्कि देश की सुरक्षा के लिये बड़ा खतरा भी बन सकते है । गृहमंत्रालय की निगरानी में बाकायदा लाइसेंसिग प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही ऐसे सौदों को रवाना किया जाता है तथा पूरी तरह सावधानी और गोपनीयता भी बरकार रखी जाती है ऐसे में यह वाकया अपने आप में सुरक्षा तंत्र और षणयंत्रकारी तत्वों की मिली भगत की ओर ही इशारा करता है । ट्रक नंबरों और ट्रक मालिकों से भी कोई जानकारी अभी नहीं मिल सकी है । मई जून महीने में 61 ट्रक रवाना किये गये और इसके बाद 103 ट्रक की रवानगी की गयी, कुल मिलाकर 164 ट्रकों का न मिलना यह भी सवाल उठाते है कि एक महीने तक यह संख्या ही तय नहीं हो पा रही थी कि आखिर में गायब संख्या कितनी है । यानी इस पूरे विस्फोटकों के ट्रांस्पोर्टेशन में किसी माफिया का ही हाथ है । यह भी हो सकता है कि ये हथियार आतंकवादियों या नक्सलियों के हाथ लग गये हो जो एक बड़ा खतरा हो सकता है । सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में भी दो महीने बाद भी विस्फोटकों से लदे 164 ट्रकों का न मिलना हमारे देश की चौकस सुरक्षा इंतजामों के पोल ही खोलता है । ( अमर भारती दैनिक संपादकीय 28 अगस्त 2010)

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