Tuesday, July 20, 2010

महंगाई, बंद और बंद पर राजनीति यही तीन चीजें है जो आज कल आम आदमी के बीच की चीख पुकारों में सुनाई देती हैं । कोई कह रहा है कांग्रेस आई महंगाई लाई और सरकार आम आदमी की सुनने को तैयार ही नहीं, जनता महंगाई से परेशान तो है लेकिन महंगाई पर हो रही राजनीति से हैरान भी है । विपक्ष ने किया भारत बंद इसके बाद माया ने किया यूपी बंद और दो दिन बाद लालू पासवान का बिहार बंद । एक ही मुद्दे को भुनाने के लिये हर राजनीतिक पार्टियां गिद्धों की भांति एक दूसरे को देख रहीं हैं। लेकिन जिस जनता के नाम पर यह सब हो रहा है उसे इससे कोई फर्क पड़ता ही नहीं । ऐसा नहीं की जनता ने नेताओं को ऐसे में ही सुनना बंद कर दिया, बल्कि नेताओं ने आम जनता को खुद सीख दी है, कि कब तक हम राजनेताओं की सुनोंगे । और कब तक तालियां बजाओंगे। अगर है तो अपनी अकल भी थोड़ी लगाओं। कट मोंशन में सरकार की डोर काटने के लिये पहले तो तैस में सभी राजनीतिक दल आये लेकिन वक्त आया तो पीछे हट गये आम जनता टीवी देखती और अखबार पढ़ती रह गयी । कभी केवल प्याज महंगी हुयी थी और केंद्र की वाजपेयी सरकार हिल गयी थी । 1997 में दिल्ली की साहिब सिंह बर्मा सरकार प्याज के दाम बढ़ने से गिर गयी थी और आज हर सामान के दाम सातवें आसमान पर है लेकिन सरकार का बालबाकां होने वाला नहीं है । क्योंकि हर राजनेता अपना उल्लू सीधा करने में लगा है । विरोध तो केवल एक दिखावा है, महंगाई से निजात दिलाने की कोशिश नहीं, जनता को बेवकूफ बनाने की कोशिश की जा रही है । महंगाई से हर कोई तंग है सरकारी नीतियों से हर किसी को दिक्कत है लेकिन जनता के नुमाईंदे अगर बिक जायें तो जनता किस पर यकीन करे। और फिर वोट किसे करे। कमोबेश यही हालात आज देश के है । महंगाई के चूल्हें की आंच पर राजनीतिक रोटिया पकायी जा रही है । सियासत का सौदा किया जा रहा है तो आखिर जनता इस सबके बीच है कहां। भारत बंद बेसक सफल रहा हो । और मीडिया भी मजबूरी में आम आदमी के लिये विपक्ष के साथ हो लिया हो, लेकिन राजनीतिक दलों ने भारत बंद के दौरान और बाद में राज्यों में जो बंद का भौड़ा प्रदर्शन किया उससे बंद की धार कुंद हुयी है । राजनीतिक पार्टियों ने भारत बंद का सेहरा अपने ही सिर बांधने की कोशिश में लगे रहे और आम जनता राजनेताओं की नौटंकी को देखती रही । लेकिन अब 26 जुलाई से 27 अगस्त तक चलने वाले मानसून सत्र में सड़क पर हो हल्ला मचाने वाले नेताओं को अब देखना होगा कि सदन में क्या गुल खिलाते है । विपक्ष के लिये यह अच्छा मौका होगा कि जनता की आदालत में अपने जनता के दर्द को सुनाये क्यों की यह ऐसा मौका होगा कि सरकार को विपक्ष के सवालों का जवाब देना ही होगा । मानसून सत्र में यह भी पता चलेगा कि इन राजनेताओं की असली शक्ल क्या है ? साथ ही यह भी दिखाई देगा कि सरकार पर बंद का और आम जनता की फ़रियाद का कोई असर हुआ है या नहीं...
महंगी सरकार का खूनी पंजा जिसे कांग्रेस आम आदमी के साथ होने का दावा करती है, आम जनता के साथ नहीं बल्कि उसकी जेब पर है ऐसा क्यों । प्रधान मंत्री लोक लुभावन सीख के वजाय कोई ठोस उपाय सदन में सुझायेंगे इसमें संदेह है, क्यों की महंगाई की फिक्र उसे क्यों होगी जो 1 रुपये में चाय और 10 रुपयें में सदन में भर पेट खाना खा कर एसी कमरे में महंगाई की रिपोर्ट बनाता है ।

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