Tuesday, July 20, 2010

कुर्सियों की बारिश

बिहार विधानसभा में ट्रेजरी घोटाले पर बहस के दौरान कुर्सियों और मेजों की गड़गड़ाहट भरी बारिश सुनाई पड़ी । सत्ता पक्ष ने विपक्ष और विपक्ष ने सत्ता पक्ष पर मारपीट करने,गाली देने और धक्कामुक्की का आरोप लगाया । ट्रेजरी घोटाला नितीश के समय का मामला नहीं है । यह घोटाला लालू प्रसाद यादव के समय से चलता आ रहा है। लेकिन विपक्ष का तर्क है कि नितीश सरकार ने ट्रेजरी घोटाले की जांच को प्रभावित किया और सरकार ने इस महाघोटाले के प्रति उदासीनता दिखायी क्यों कि इसमें सरकार के ही मंत्री और विधायक शामिल है । पटना हाईकोर्ट ने 11 सौ करोड़ रुपये से ज्यादा के ट्रेजरी घोटाले की सीबीआई जांच कराने के आदेश दिये थे। हाईकोर्ट का यह आदेश नितीश सरकार के गले की फांस बनता जा रहा है तो विपक्ष इसे संजीवनी बूटी के रुप देख रहा है । विपक्ष पहले भी ट्रेजरी घोटाले को लेकर नितीश कुमार से मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र की मांग करता रहा है । ऐसा माना भी जा रहा था कि मॉनसून सत्र में ट्रेजरी घोटाले पर महाबहस होगी, लेकिन यह अंदाजा नहीं था कि जो सदन में हुआ वह सब होगा और लोकतंत्र की गरिमा एक बार फिर तारतार हो जायेगी । ऐसा नहीं कि यह पहली बार हो रहा है उत्तर प्रदेश विधान सभा में भी इसी तरह की दंगल हो चुकी है जूते चप्पल चल चुके है, और महाराष्ट्र विधानसभा में शपथ ग्रहण के समय तो हिंदी भाषा को लेकर अबू आजमी सरीखे नेताओं पर हाथ भी चले और माईक भी तोड़े गये । सवाल यह उठता है कि आख़िर कब तक यह होता रहेगा । सदन की गरिमा कब तक इस तरह धुलती रहेगी और इस बढ़ती मर्ज की दवा क्या है । इसके कई कारण है पहला है लोग मौलिक अधिकारों के हनन की बात करते है नेता खुद मौलिकता का पाठ पढ़ाते है लेकिन जब सदन में विपक्ष सवाल करता है तो सवालों के जवाब देना तो दूर सवालों को सुनने को भी सत्ता पक्ष तैयार नहीं होता । दूसरा है विपक्ष या बाकी दलों की जो सत्ता से दूर है किसी मुद्दे को उछाल कर ऐसी हरकत करने की जिससे लोगों का ध्यान अपनी और खीचा जा सके और जनता के सामने शेखी बघारी जा सके । दुर्भाग्य से इन सब शर्मसार कर देने वाले कारनामों के दण्ड भी नाम मात्र होते है । महाराष्ट्र विधानसभा में अनुशासन का घोर उल्लंघन करने वाले नेताओं को मांफ कर ससम्मान बहाल कर दिया गया । यह दिखाता है कि हम और आम जनता भले ही इसे लोकतंत्र का मजाक माने या लोकतंत्र को शर्मसार करने की घटना करार दे लेकिन हक़ीक़त में यह सब अब रुटीन होता जा रहा है । पार्टी कोई भी हो नेता कोई भी हो सदन कोई भी हो मर्यादा का उल्लंघन और सदन में तोड़ फोड़ की हरकतें अब आम होती जा रही है । इसे रोकना आसान नहीं है जब तक दोषी नेताओं को कठोर दंड नहीं दिया जायेगा जो नज़ीर बन सके ।

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