Tuesday, November 9, 2010
खुदकुशी की इजाज़त
यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि किसानों के देश में किसान ही खुदकुशी करने को मजबूर है । जहां एक ओर झारखंड में हज़ारीबांग ज़िले के जराड़ गांव के 2000 किसान सूखे से बेहाल राष्ट्रपति को पत्र लिख कर इच्छा मृत्यु की मांग कर रहे है वहीं दूसरी ओर हमारे देश भर के सांसद अपनी सैलरी के 300 फीसदी बढ़ोत्तरी से नाखुश है और 500 फीसदी के लिये सदन में हंगामा कर रहे है । जनप्रतिनिधि का तमगा लेकर हमारे सांसदों ने साबित कर दिया कि जनता नहीं उनके लिये उनका हित ही सर्वोपरि है । पिछले 2 साल से राज्य में पर्याप्त बारिश न होने हालात खराब है । किसानों का कहना है कि दो साल से कोई फ़सल नहीं उगी है अब लोगों को खाने के लाले पड़ने लगे है । हालात इतने खराब है कि बच्चे कुपोष्ण के शिकार हो रहे है और सरकारी मदद ऊंट के मुंह में जीरा है । ऐसे में हम भूखे कब तक रहेंगे। खनिज संपदा से भरपूर झारखंड राज्य बना तो था इस लिये कि यहां पर खुशहाली होगी और लोगों के विकास के रास्ते खुलेंगे लेकिन हुआ इसके उलट । 10 साल में झारखंड ने सात सरकारें देखी और तीन बार राष्ट्रपति शासन का दंश झेलने के बाद इस बार फिर वहां राष्ट्रपति शासन ही है । सत्ता किसी की भी रही हो लेकिन विकास की गंगा का फायदा सिर्फ नेताओं को ही मिला और आज भी वहां पर हालात जस के तस है । ऐसा नहीं कि यह दास्तांन झारखंड के कुछ जिलों की हो, बल्कि हर ज़िले में कमोबेश यही हालात है । केंद्र सरकार की एक टीम झारखंड राज्य का दौरा करने के बाद रिपोर्ट भी सरकार को सौंप चुकी है । रिपोर्ट में लिखा है कि राज्य में हालात बेहद खराब है और लोग भुखमरी से बेहाल है । लेकिन मॉनसून सत्र में पौने तीन करोड़ जनता के दर्द को सरकार के सामने रखने कोशिश किसी जनप्रतिनिधि ने नहीं की । हज़ारीबांग ज़िले के दो हज़ार लोग सरकार से पर्याप्त मदद न मिलने से आहत, राज्यपाल एमओएच फारुक के जरिये राष्ट्रपति को पत्र लिख कर आत्महत्या की इज़ाज़त मांगी है । किसानों का कहना है कि हो सकता है कि लोग हमारे इस कदम को सस्ती लोकप्रियता पाने का जरिया समझे लेकिन हालात इतने खराब हैं कि जीना दुश्वार है। क्षेत्र में भीषण सूखा पड़ रहा है और किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं।हमारे पास बच्चों को शिक्षा दिलाना तो दूर खाने तक के लिए कुछ भी नहीं है। लोकसभा में ऊंची तनख्वाह और सहूलियत के लिये लड़ रहे सांसदों के के सफेद पोशाक पर यह यह कलंक है, और कलंक है सरकार की उपलब्धियों पर जिसकी सरकार दावे करती है ।
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