Wednesday, November 24, 2010

बिहार की आंधी

बिहार विधानसभा की 243 सीटों में 206 सीटें जीत कर जो करिश्मा दिखाया वह अभी तक किसी भी राज्य में शायद नहीं देखने को मिला होगा । नीतीश कुमार के 5 साल के नाकामी को विपक्ष मुद्दा बना कर सत्ता में आना चाहता था तो नीतीश कुमार विकास के नाम पर एक बार फिर मौका दिये जाने की दर्खवास्त कर रह रहें थे। नीतीश गठबंधन के सत्ता में आने की उम्मींद तो थी लेकिन वह बिहार में आंधी की तरह आएंगे और बाकी राजनीतिक पार्टियां सूखे पत्ते की तरह उड़ जायेंगी यह किसी ने नहीं सोचा था । खुद नीतीश को भी शायद यह उम्मींद नहीं रही होगी कि वह विपक्ष को उसके ही गढ़ में मात देकर 206 सीटें जीत लेंगे। बिहार में लालू के चुटकुलों को जनता अब सुनना नहीं चाहती तभी तो उनकी पत्नी और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को राघोपुर और सोनपुर दोनों सीटों से हार को सामना करना पड़ा। लालू का साथ छोड़ कर कांग्रेस की शरण में गये साधु यादव भी गोपाल गंज से चुनाव हार गये । यही नहीं बिहार को पिछड़ा और गरीब राज्य बताने वाले राहुल गांधी और सोनिया गांधी को भी बिहार की जनता ने नकार दिया है । कांग्रेस को दहाई का अंक मिलना तो दूर 5 सीटें भी नहीं मिल सकीं । कांग्रेस की यह सबसे शर्मनाक हार है उसे प्रधानमंत्री के अपील के बाद भी 4 सीटें मिली हैं । राहुल का युवा फैक्टर भी काम नहीं आया जिस युवा को राहुल अपना समझ रहें थे उसने कांग्रेस को नकार दिया । बिहार में लालू का लगातार जनाधार घटता जा रहा है । इसके पहले 2005 के विधानसभा में लालू को मात मिली ही थी । लोकसभा में भी लालू अपने आप को साबित नहीं कर पाये और अब विधान सभा में सरकार का विरोध करने के लिये उनके विधायकों की संख्या केवल 22 होगी । लोक जनशक्ति पार्टी से गठबंधन करने के बाद लालू का यह हाल है गठबंधन न होने पर तो स्थिति और भी खराब होती। कभी दलित तो कभी मुस्लिम को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने का दावा करने वाले राम विलास पासवान को तो जनता ने पूरी तरह सबक ही सिखा दिया । पिछली बार खुद लोकसभा सीट हारने के बाद लालू के साथ समझौता कर राज्यसभा पहुंचने वाले पासवान को सिर्फ 3 सीटें ही मिली हैं। बिहार विधान सभा चुनाव के नतीजों ने यह साबित कर दिया की बिहार की जनता अब विकास को ही पसंद करती है । लालू की रेल पर बैठ कर बिहार छोड़ने को कभी मजबूर होती आम जनता की पसंद अब लालू नहीं नीतीश हैं। यह एक बड़ा बदलाव है जो हर राज्य में होना ही चाहिये लेकिन नीतीश को विकास के नाम पर मिले विशाल जनाधार का गलत अर्थ नहीं लगाना चाहिए। जनता विकल्प तलाशती है । आज नीतीश विक्लप है तो कल कोई और हो सकता है । लिहाजा विकास के लिये भूखे बिहार का पेट भरना ही इस आंधी का असली मकसद होना चाहिये ।

No comments: