Tuesday, November 9, 2010

क्या ओबामा से कुछ सीखेंगे नेता

क्या ओबामा से कुछ सीखेंगे नेता

ओबामा की भारत यात्रा और ख़ास कर मुम्बई में उनके डेढ़ दिन की गतिविधियों से क्या हमारे नेता मंत्री और प्रशासक कुछ सीख लेंगे या नहीं यह एक बड़ा सवाल है । वैसे तो कई राजनेता भारत आते है और राजनेता ही बने रहते है लेकिन ओबामा ने मुम्बई की धरती पर जो छाप छोड़ी है वह अदभुद है और सीख लेने योग्य है । सीखने योग्य क्या है यह शायद नेतागण समझ पाये हो या न लेकिन हमारे बड़े नेताओं में भी वो सरलता और सहजता खास कर आम लोगों से बात करते समय या मीडिया के सवालों को जवाब देते समय कभी भी देखने को नहीं मिलती
ओबामा का पहला भारत दौरा है। लेकिन मुम्बई के सेंट जेवियर स्कूल में अपने संबोधन में ओबामा ने कभी भी मुम्बई को बंबई नहीं कहा यानी कभी भी जबान नहीं फिसली । जब की रास्ट्रमंडल खेलों के उद्धाटन और समापन समारोह में आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी की जुबान कई बार फिसली थी यहा तक की महारानी कैमिला पारकर को दिवंगत महारानी डायनद्म ही नहीं बल्कि अपने ही देश के पूर्व राष्टऊपति अब्दुल कलाम आजाद को अबुल कलाम कह कर संबोधित किया था। इसके अलावा कई नेता गलत उच्चारण कर सुर्खियों में रहे है लेकिन भाषा और शहर से अंजान ओबामा ने न केवल मुम्बई को मुम्बई कहा बल्कि आम मुम्बई वालों को मुम्बईकर कहकर भी उनका दिल जीता ।
क्या इसे हमारे नेता समझ सकेंगे आम लोगों को संबोधित करते समय सवाल जवाब में सबसे बड़ा भय यह होता है कि कौन क्या सवाल कर दे जिसका जवाब देना मुश्किल हो लेकिन ओबामा की पत्नी ने तो लोगों से बाकायदा अनुरोध किया कि सबसे कठिन सवाल पूछियेगा । यह एक यह एक गज़ब का आत्मविश्वास है ।
जो शायद भारतीय नेताओं में देखने को नहीं मिलेगा । सवाल जवाब में ओबामा ने हर किसी के सवालों का माकूल जवाब भी दिया । हमारे चिट्टा छाप नेताओं को उनसे कुछ सीख तो लेनी ही चाहिये । जब अयोध्या मुद्दे पर जमीनी मालिकाना हक़ का फैसला आना था तो गृहमंत्री पी.चिदंबरम ने अपने अभिभाषण में गांधी की एक सूक्ति की चर्चा की थी कि गांधी जी ने कहा था कि ईश्वर अल्ला तेरो नाद्ग सब को समति दे भगवान । लेकिन इस एक पंक्ति को भी चिदंबरम ने स्क्रिपट पढ़ कर ही दिया ।
ऐसा लगा की यह सूक्ति भी उन्हें पहली बार मिल रही है । इसके अलावा वित्त मंत्री या तमाम मंत्रीगण प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों के साथ आत्मीय संबंध बनाना और सवाल पूछने को प्रोत्साहित करना तो दूर उनके सवालों का सामना भी करना नहीं चाहते । जब कि ओबामा ने मुम्बई में न केवल कठिन सवालों को दिया बल्कि सरल भाषा में नमस्ते कर सभी को चौंका दिया । आध्यात्म से लेकर पाकिस्तान संबंधों पर और गांधी दर्शन से लेकर भारत के विकास तक हर मुद्दे पर ओबामा की राय पहले से तय थी । यही है एक मझे हुये और कुशल नेता के गुण और यही है असल में नेतागिरी भी जिसे जनता चाहती है । 5० साल के ओबामा से हमारे उम्रदराज नेताओं को कुछ सीख तो लेनी ही चाहिएं । मसलन कठिन सवालों का आसान जवाब देने की कला । हर मुद्दे पर सटीक राय देने का गुण और सहजता ।
क्या हमारे यहां कोई नेता सर्ट की बांह मरोड़ कर आम लोगों से मुखातिब हो सकता है यह कहना शायद मुस्किल हो सकता है। क्या हमारे नेता किसी रणनीति के तहत कोई यात्रा करते है । शायद यह जान कर हर किसी को हैरानी हो कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ही अब तक के सबसे ज्यादा यात्रा करने वाले पीएम हैं । अमेरिका समेत कई देशों की यात्राएं मनमोहन सिंह ने कई बार की है लेकिन न तो वहा कोई छाप छोड सके और न ही अपने यहां कुछ बता सके की आखिर कौन से समझौते और मसौदे को पुखता कर वापस आये है । यह है हमारे नेताओं की कमजोरी जो शायद आईने में न दिखे लेकिन अमेरिकी राष्टपति ओबामा ने उन्हें अपनी नेतागिरी के तौर तरीकों पर फिर विचार करने की जरुरत की ओर इशारा तो कर ही दिया है ।
(akhileshnews@gmail.com)

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