Tuesday, November 30, 2010

विकीलीक्स की गिरफ्त में अमेरिकी दोहरापन


विकीलीक्स के नए दस्तावेज़ों ने फिर से हंगामा खड़ा कर दिया है विकीलीक्स पर दस्तावेज़ जारी किए जाने को 'आपराधिक कार्रवाई' बताकर उसकी निंदा की गई है लेकिन खोजी पत्रकारिता के भविष्य के रुप में उसकी तारीफ़ भी उतनी ही की गई है। विकीलीक्स के काम करने का तरीक़ा भविष्य की पत्रकारिता और पारदर्शिता को रेखांकित करता है तो अमेरिका की हक़ीक़त भी बयान करता है। अमेरिका की जो चाल हम कभी समझ ही नहीं पाये उसे विकीलीक्स के एक खुलासे ने पूरी दुनिया के सामने रख दिया । लोगों की आँखें फटी की फटी रह गयी । अमेरिका की नीयति के बारे में बात करने से पहले विकीलीक्स के बारे में जान ले जिसने अमेरिका के दोहरापन को उजागर किया है । विकीलीक्स वह वेबसाइट है जो वैसे तो हर विषय पर टिप्पड़ी करती रही है दुनिया भर में अपने खुलासों से खलबली मचाने वाली विकीलीक्स एक ऐसी वेबसाइट है जो विभिन्न देशों और उनकी सरकारों के बारे में ऐसी महत्वपूर्ण खुफिया सूचनाएं इंटरनेट पर उपलब्ध कराती है जो अमूमन लोगों को पता नहीं होती । विकीलीक्स उस समय सुर्खियों में आई जब उसने अफगानिस्तान युद्ध महत्वपूर्ण सूचनाएं लीक कीं । इन दस्तावेजों में खुलासा किया गया था कि पाक अफगानिस्तान में तालिबानियों को मदद देता रहा है। जुलाई में विकीलीक्स ने अफगान वार डायरी को जारी किया था जिसमें 76,900 पृष्ठों को उपलब्ध कराया गया था विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांज हैं। इसी साल अप्रैल में विकीलीक्स ने एक वीडियो जारी किया था जिसमें दिखाया गया था कि बगदाद में 2007 में अमरीकी सैन्य हेलिकॉप्टर से नागिरकों की मौत हुई थी। अफ़ग़ानिस्तान के युद्ध के बारे में वर्ष 2004 से 2009 तक के क़रीब 90 हज़ार दस्तावेज़ विकीलीक्स पर जारी किए गए हैं लेकिन जनहित में मुखबिर का काम करने वाली यह वेबसाइट अपने किसी स्रोत की पहचान ज़ाहिर नहीं करेगा । विकीलीक्स की नीति है कि वह अपने स्रोत के बारे में कोई जानकारी नहीं देती। न तो यह कि कितने लोगों से यह जानकारी मिली और न ये कि ये जानकारियाँ उन्हें कब मिलीं। अभी तक मीडिया अनुमान लगा रहा है कि इसके पीछे 22 वर्षीय ब्रैडली मैनिंग है जो सेना के लिए ख़ुफ़िया सामग्री का विश्लेषण करते रहे हैं और उन पर गोपनीय दस्तावेज़ों के साथ छेड़छाड़ करने और उन्हें लीक करने का आरोप है। उन्हें इराक़ में काम करने के दौरान गिरफ़्तार किया गया था और इस समय वे क़ुवैत के बंदी गृह में हैं। लेकिन विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांज कहते हैं, "जहाँ तक हमारी जानकारी में है इनमें से कोई भी सूचना स्पेशलिस्ट मैनिंग के ज़रिए प्राप्त नहीं हुई हैं।" इतिहास में पहली बार इतनी जानकारियाँ सार्वजनिक हुई हैं लेकिन यह तय है कि यह जानने की उत्सुकता सिर्फ़ अमरीका को नहीं बल्कि हर देश यह जानना चाहता है कि आखिर अमेरिका दोहरेपन की किस हद तक जा सकता है । तमाम जानकारियों को सार्वजनिक करने से पहले विकीलीक्स ने तीन अख़बारों को ये दस्तावेज़ उपलब्ध करवा दिए थे, न्यूयॉर्क टाइम्स, डेर स्पीजेल और द गार्डियन। सूचनाएँ लीक करने वाले तो हर समय रहे हैं लेकिन तकनीक ने इसे बहुत आसान कर दिया है प्रिंट मीडिया से ज्यादा तो इलेक्ट्रानिक और वेबमीडिया ने इन दस्तावेज़ों के आधार पर ताबड़तोड़ ख़बरें प्रकाशित किया लेकिन साथ में ये सवाल भी पूछे गए कि इन जानकारियों का स्रोत कौन है ? विकीलीक्स ने हर जानकारी को घर-घर तक पहुंचा दिया है । इन दस्तावेज़ों के लीक होने में सबसे बड़ी भूमिका टेक्नॉलॉजी या तकनीक की है इससे इनकार नहीं किया जा सकता लेकिन यह भी तय है ये खुलासे पत्रकारिता की रीढ़ हैं ही साथ ही अपनी धार खोती पत्रकारिता के लिये अहम भी । विकीलीक्स की इसके लिए जितनी भी प्रसंशा की जाये उतनी कम है । इसे दुनिया का पहला समाचार संस्थान कहा गया है जो किसी देश का नहीं है। विकीलीक्स के सर्वर स्वीडन और बेल्ज़ियम जैसे देशों में हैं क्योंकि वहाँ के प्रेस गोपनीयता क़ानून के तहत उसे सुरक्षा की गारंटी मिलती है। इस वेबसाइट को शुरु करने के पीछे उद्देश्य था पारदर्शिता को बढ़ावा देना। इस बेससाइट पर कोई भी व्यक्ति कुछ भी सामग्री अपलोड कर सकता है। इन सामग्रियों की कुछ कार्यकर्ता जाँच करते हैं फिर इसे वेबसाइट पर प्रकाशित किया जाता है। ये सभी कार्यकर्ता पत्रकार हैं। और इन्हीं पत्रकारों ने आज अमेरिका के लिये सिरदर्द खड़ा कर दिया है । विकीलीक्स के गोपनीय दस्तावेज के खुलास से अमेरिका का दोहरापन उजागर हो चुका है । हालात तो यह है कि अमेरिका अब सफाई देने की हालत में भी नहीं है । कुल मिलाकर देखे तो भारत के संयुक्त सुरक्षा परिषद् में सदस्यता से लेकर आतंकवाद समेत हर मसले पर अमेरिका भारत का मजाक उड़ाता रहा है । इन सबका खुलासा भी विकीलीक्स में किया गया है । विकीलीक्स ने जो काम किया है उसका सभी तो स्वागत करना चाहिए और विकीलीक्स पर गर्व भी क्योंकि पादर्शिता की चमक को बढ़ाने वाली ऐसी मिसाले कम ही मिलेंगी ।

1 comment:

honesty project democracy said...

पूरी दुनिया दोगलापन और धोखाधारी पे चल रही है.......खासकर भारत जैसे देश में भी साले भ्रष्ट उद्योगपतियों ने पूरे देश और समाज में नैतिक पतन और सामाजिक व्यवहार को अपने लोभ लालच के निचे दफ़न करने का काम किया है.......इन सालों को भी नंगा कर सरे आम फांसी पे चढ़ाया जाना चाहिए काश विकीलीक्स की तरह कोई इनके खिलाप सबूत को जगजाहिर करे तब ...