Saturday, December 4, 2010

लोकतंत्र बिकता है

कभी जनसेवा और देश सेवा से शुरु हुई राजनीति आज अपना लक्ष्य किस तरह खोती जा रही है यह हर पार्टी के राजनेताओं की गतिविधि में दिखाई दे रहा है । किसी एक दल का नाम लेना गलत होगा। ग्राम सभा की राजनीति से लेकर लोक सभा और राज्य सभा की राजनीति दूषित हुई है । हर सीट पर कब्जा होता जा रहा है । परिवारवाद, जातिवाद, धर्मवाद और साम्प्रदायवाद की बदबू हर राजनीतिक दल में देखी जा रही है यही नहीं अब तो हर जाति विशेष के दल भी बनने लगे हैं। राजनीति की गरिमा दिनों-दिन गिरती जा रही है इसके बारे में कुछ जानकारियां तो सभी को हैं लेकिन अब राजनेता खुद अपनी महत्वाकांक्षाओं को बताने से नहीं चूकते चाहे वह समाज के लिये, देश के लिये कलंक ही क्यों न हो। समाजवादी पार्टी से अमर सिंह निकाले गये या निकल गये मुद्दा यह नहीं सिर्फ यह है कि अमर सिंह सपा में नहीं हैं। लेकिन अब अमर का यह बयान कि सपा की सरकार बनवाने के लिये बसपा के विधायकों को तोड़ा था इसके बाद भी सपा ने बाहर का रास्ता दिखा दिया, यह दिखाता है लोकतंत्र का कलंक यानी विधायकों को तोड़ना भी अमर सिंह को एक पुरस्कार योग्य लगता है । आजकल अमर सिंह सपा को पटखनी देने की ही नियत से पूर्वांचल की मांग को लेकर विगुल फूंकने वाले हैं। इस महत्वाकांक्षा को आखिर जनता क्या समझे। जो विधायकों की खरीद फरोख्त और जोड़ तोड़ में ही माहिर है वह खुद सत्ता में बने रहने के लिये क्या नहीं कर सकता । तरकीबन यही रोग हर राजनीतिक दल में लगने लगे हैं । राज्यसभा से लेकर ग्राम पंचायत चुनावों तक एक-एक वोट खरीदे जाते हैं। जोड़ तोड़ की राजनीति होती है । कभी अधिवक्तता, अपराधी रहे लोग सदन में कब घुस जाते है किसी को पता ही नहीं चलता । उद्योगपतियों की लोकतंत्र में भरमार है । पैसा ही लोकतंत्र का आधार बनता रहा है । राजनीतिक दल चुनावों में पैसे वाले बाहुबलियों को ही टिकट देते है । हर राजनीतिक दल को अमर सिंह सरीखे बड़बोले और हर काम में माहिर उद्योगपतियों की जरुरत है तो फिर असल लोकतंत्र का सपना साकार कैसे हो । लोकतंत्र अब कहने को है लेकिन हक़ीक़त में यह नोट तंत्र में तबदील होता जा रहा है । क्या इसके लिये भी संयुक्त संसदीय समिति की मांग होगी जो सबसे जरुरी है ।

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