Monday, December 13, 2010

खोखला लोकतंत्र



उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने कुछ दिनों पहले ही एक खुलासा किया था कि साल 2004 के लोकसभा चुनाव के पहले कांग्रेस ने उन्हें ब्लैकमेल करने की कोशिश की थी । कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव मिल कर लड़ने के बदले ताज क्वारीडोर व आय से अधिक संपति मामलों में बचाने का लालच दिया था । लेकिन मैने ठुकरा दिया ।

मायावती का यह खुलासा भले ही अखबारी शुर्खियां बन कर रह गया हो लेकिन हमारी राजनीति, जांच प्रणाली और न्यायपालिका को किस तरह प्रभावित हो रही है यह उसी का एक कड़वा सच है । यह वह सच है जो सामने आ गया वो भी 6 साल बाद । सवाल यह है कि ऐसे बयानों को गंभीरता से क्यों नहीं लिया जाता । क्या ये मुद्दे जनहित में नहीं हैं । क्या इनसे आम आदमी का सरोकार नहीं है या ऐसे मामलों की जांच के लिये हमारे पास कोई प्रणाली है ही नहीं । सवाल यह भी है कि मायावती ने यह खुलासा 6 साल बाद क्यों किया ।

6 साल के बाद यह खुलासा दिखाता है कि यह भी किसी बड़ी साजिश के चलते ही किया गया होगा । निश्चित रुप से अगर जांच हो तो न तो मायावती और न ही कांग्रेस का कोई दलाल तैयार होगा यह स्वीकारने के लिये कि ऐसा कभी हुआ था । यानी ऐ सब बयान हवा में ही दिये जाते हैं और हवा में ही गुम हो जाते हैं । आरोप गंभीर होते हैं लेकिन जांच कभी भी नहीं होती । इसका देश व समाज पर गंभीर असर पड़ता है । आम आदमी की यही धारणा बनती जा रही है कि नेता और मंत्री कानून को अपनी जेब़ में रखते हैं । ऐसा होता भी है तो क्या इसका प्रचार करना जरुरी है ।

ऐसे आरोप प्रत्यारोप कई बार लगते रहते है लेकिन इन पर न तो कार्रवाई होती है न ही लगाम लग पा रही है । आज कल सपा से निकले अमर सिंह मुलायम को जेल भेजने की बात कह कर मुलायम को ब्लैकमेल करने की कोशिश में हैं । उनका कहना है कि अगर खुलासे हुए तो मुलायम जेल जायेंगे । इसके क्या मलतब निकाले जायें अमर या तो मुलायम को जेल जाने से बचा रहे हैं या झूठ बोल रहे हैं। ये वो नेता है जिनकी राजनीति में कभी गहरी पैठ थी । इनके शतरंजी चाल से केंद्र में सरकार बहुमत साबित करती थी । बाजपेयी की सरकार कभी गिरा दी तो कभी मनमोहन के खेवन हार बने। कभी खुद दलाली की तो आरोप दूसरों पर लगा दिया और बच दोनों गये ।

राजनीति में अब न्यापालिका और जांच एजेंसियों का दुरुपयोग आम हो चुका है । सभी नेताओं का एक ही मकसद है । सत्ता में बने रहना। क्या ऐसे गंभीर आरोपों की जांच-पड़ताल और उस पर लगाम लगाने की क्षमता वाली कोई एजेंसी है । ये केवल नमूने मात्र हैं ऐसे न जाने कितने आरोप-प्रत्यारोप है जिनकी प्राथमिकी दर्ज कराने वाला कोई नहीं । या पुलिस भी प्रथमिकी दर्ज नहीं करेगी । सत्ता इन नेताओं की जागीर बन चुकी है और लोकतंत्र एक नाटक मंच। क्या हम इस सत्ता के यथार्थ को बदल पायेंगे जो हमारी सोच को, हमारे विचार को खोखला कर रही है और देश की नई पौध इन नेताओं की नकल कर रही है ।

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