Monday, December 13, 2010

भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा



जब सीवीसी के मुखिया और सुप्रीम कोर्ट के जज ही भ्रष्ट हैं जिन पर भ्रष्टाचारियों पर निगरानी रखने की जिम्मेदारी है तो फिर सही जांच और सिस्टम में व्यापत विसंगतियों को दूर होने की उम्मीद कैसे की जाये। राष्ट्रमंडल खेल में हो चुके घोटाले और आदर्श घोटाले जैसे मामलों की जांच का जिम्मा भी सीवीसी के ऊपर है । लेकिन थॉमस के काले कारनामों से यह तय है कि जिस जांच में सही तथ्य सामने आने थे वह नहीं आयेंगे ।

इसके पहले वरिष्ठ अधिवक्ता व कानून मंत्री शांतिभूषण ने भी अपने बयानों से यह खुलासा कर सबको चौंका दिया था कि सुप्रीम कोर्ट के 16 मुख्य न्यायाधीशों में से 6 निश्चित रुप से रिश्वतखोर थे । उनके इस कथन पर उन पर केश भी चल रहा है । कानून मंत्री अगर ऐसा कहते हैं तो यह निश्चित रुप गंभीर मामला है । इस गंभीरता का असर यह हुआ कि शांतिभूषण के ऊपर ही कोर्ट के ऊपर टिप्पणी करने के आरोप में मुकदमा हो गया । शांतिभूषण मोरार जी देसाई सरकार में कानून मंत्री थे । शांतिभूषण ने जो सवाल उठाया उसे कोई दूसरा उठा भी नहीं सकता था । उठाता भी तो उस पर विश्वास शायद ही लोग करते। लेकिन उनके इस दावे के बाद जो हुआ उसकी भी उम्मीद नहीं थी । जिस कोर्ट के फैसले पर देश का लोकतंत्र टिका है उसी संस्था से यह बदबू आ रही है ।

बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद की हाई कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति और हाईकोर्ट से जुडे उनके सगे संबंधियों पर सवाल उठाया था । सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट से बदबू आ रही है । लेकिन सुप्रीमकोर्ट को अपने कनिष्ठ न्यायालयों की गिरती गरिमा पर टिप्पणी करने से पहले खुद को सुधारना होगा, खुद के काम-काज में पारदर्शिता लानी होगी और पहले खुद ईमानदार बनना होगा । न्याय को बिकने से बचाने के लिए आंदोलन करने होंगे । किसी एक संस्था की हालत यह नहीं है । लेकिन न्यायपालिका का काम सभी पर निगरानी रखना है ऐसे में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि न्याय तंत्र में सबसे पहले सुधार हो । यह भी कम चिंता जनक नहीं है कि जब संस्था के मुखिया ही भ्रष्टाचार में गोते लगा रहे हैं तो फिर बाकी कनिष्ठों को शिष्टाचार का पाठ कैसे पढ़ापायेंगे। दूसरों को शिष्टाचार की शिक्षा देने से पहले खुद आदर्श नमूना पेश करना होगा । लेकिन जो हालात दिखाई दे रहें हैं उससे लगता नहीं कि भ्रष्टाचार में डूबने की परंपरा बंद होगी और इसकी नई पौध तैयार नहीं होगी । एक भ्रष्टाचारी को बचाने के लिए दूसरा रिश्वत लेने को तैयार है तो फिर यह उम्मीद कैसे करें कि जल्द ही यह सिलसिला खत्म होगा ।

ऊपरी दर्जें के नेता, मंत्री और नौकरशाह जब मिलकर लूट खसोट की मुहिम चला रहे हों तो हम निचले स्तर पर इमानदार कर्मचारी की उम्मीद कैसे कर सकते हैं । सीवीसी के मुखिया थॉमस और सुप्रीम कोर्ट के जजों पर लग रहें दाग को हटा पाना मुश्किल है । यह भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा है जिसकी दवाई खोजनी ही होगी नहीं तो यह रोग कब कैंसर बन जायेगा कहा नहीं जा सकता ।

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