Saturday, December 18, 2010

क्या भारत को चाहिए एक और गांधी ?

63वीं पुण्य तिथि पर बापू जी को नमन


मोहनदास करमचन्द गांधी यानी महात्मा गांधी के सत्य, अहिंसा और सादगी के दर्शन को आदर्श मानने वालों की भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में बड़ी तादाद है । लेकिन गांधी जहां पैदा हुए और जहां से देश दुनिया को संदेश दिया वहीं पर आज गांधी सिर्फ़ पोस्टर और स्टैट्यू बनकर रह गये हैं  ?

आज गांधी की ६३ वीं पुण्यतिथि पर उनकी समाधि पर नेताओं और मंत्रियों का हुजूम उनके जयंती पर फोटो खिचवाने के लिये इकट्ठा होता है। प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक चंद मिन्टों के लिये उन्हें याद करते हैं लेकिन यह स्वार्थ के तराजू पर किस तरह तौला जाता है इसे आप हम सभी जानते होंगे । इस बार भी कमोबेस गांधी जी की पुण्य तिथि पर यही देखने को मिला । सभी उनकी समाधि पर जूटे थे लेकिन उनका आदर्श कहीं भी दिखाई नहीं दे रहा था। हर कोई महंगी गाड़ियों से सज-धज कर आया था ऐसा लगा कि मानों किसी नेता जी के लाडले की शादी हो ।

  अब आते हैं उनकी जयंती पर 2 अक्टूबर को उनकी जयंती बड़े ही नाटकीय ढंग से मनाई जाती है । मानों गांधी हमारे बीच ही विराजमान हो । यह सही भी है गांधी जी होते तो हैं लेकिन हमारी जेबों में गुलाम बन कर न कि हमारे प्रेरणा श्रोत। 2 अक्टूबर से लेकर 3 महीने तक गांधी जयंती के उपल्क्षय में खादी ग्रामोंद्योग संस्थान भारी छूट भी देता है । मतलब यह है कि गांधी के नाम से सामान भी बिकता है लेकिन गांधी का दर्शन नहीं। गांधी जयंती पर गांधी की प्रतिमा पर फूल मालाएं तो चढ़ाई जातीं हैं लेकिन इसमें भी स्वार्थ होता है । गांधी बिकते हैं, गांधी की तस्वीरें बिकतीं है, उनके चश्में भी बिकते है, लेकिन उनका आदर्श नहीं बिकता ।

        वैसे तो गांधी की तस्वीर जब से पैसों पर छपी उसके पहले से ही गांधी के बिकने का और गांधी को खरीदने का सिलसिला शुरु हो गया था । जवाहरलाल नेहरु ने आज़ादी के पहले ही जान लिया था कि देश में सत्ता की बागडोर पाने के लिये गांधी को अपना बनाना होगा । यही नहीं जवाहरलाल ने तो अपनी बेटी का नाम भी इंदिरा गांधी रखा । ताकी गांधी के नाम का फायदा लिया जा सके । बड़ा सवाल यह है कि क्या आज हमें एक और गांधी की जरूरत आ पड़ी है  ।

जब देश में लोकतंत्र और तानाशाही में कोई अंतर न रह गया हो और कोर्ट से लेकर जांच एजेंसिया गांधी छाप नोट ही हमेशा देखती हों, और गांधी को नहीं बल्कि गांधी छाप नोट की ही ख्वाहिश रखती हों तो ऐसे में सवाल यह है कि क्या गांधी आज की जरुरत बन चुके हैं। जो गांधी छाप नोटों की भूख को कम कर सकें । हमें आप के विचार चाहिए आप गांधी के बारे में क्या सोचते है । क्या आज भारत को एक और गांधी की जरुरत है ???
आप कमेंट जरूर की जिएगा हमें आपकी भावनायुक्त शब्दों का इंतजार रहेगा । 


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अखिलेश कृष्ण मोहन 
लेखक अमर भारती दैनिक के उपसंपादक/संवाददाता हैं।


1 comment:

Unknown said...
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